भारत में भूमि जिहाद, लव जिहाद, बॉलीवुड जिहाद आदि के बाद विज्ञापन जिहाद शुरू हो गया है। यह जिहाद उन कंपनियों ने शुरू किया है, जिनके उत्पादों के अधिकतर खरीदार हिंदू हैं। इनमें वे कंपनियां भी शामिल हैं, जो वामपंथी और कट्टरवादी तत्वों के गुप्त एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगी हैं। दशकों से कुछ कथित सेकुलर ताकतें हर हिंदू मान्यता, त्योहार, रीति-रिवाज, खान-पान पर हमला बोलती रही हैं, यह उसी का विस्तार है। कुछ लोग नवरात्र के समय गर्भ-निरोधक गोलियों और ‘कंडोम’ को अधिक से अधिक बेचने की बात करते हैं। करवाचौथ पर समलैंगिकता के संदेश देते हैं। ऐसे लोगों को दीपावली के पटाखों से जलन होती है। यही लोग कुंभ को बूढ़े बाप को धक्का देने का अवसर बताते हैं। गणपति पूजा पर हिंदू को इस्लामोफोबिक दर्शाया जाता है।
क्या कोई दूध देने वाली गाय को लात मारता है? जी हां! मार सकता है। अगर गाय यह न समझे कि लात मारने वाला मेरे ही दिए हुए दूध पर पल रहा है। ठीक यही हालत हिंदू समाज की है। भारतीय बाजारों में सबसे अधिक क्रय-शक्ति वाला उपभोक्ता वर्ग हिंदू ही है। हिंदू पर्व, उत्सव भारतीय अर्थव्यवस्था का र्इंधन हैं। इसके बावजूद भारतीय उद्योग जगत हिंदू त्योहारों पर हिंदुओं को ही नीचा दिखाकर कमाई करता है। ताजा उदाहरण डाबर इंडिया का है। एक विज्ञापन के जरिए करवाचौथ पर एक समलैंगिक जोड़े को त्योहार मनाता दिखाकर डाबर इंडिया क्या संदेश देना चाहती है?
यही कि सनातन परंपराओं को गाली देकर वह हिंदुओं को ही अपना उत्पाद बेचना चाहती है। डाबर इंडिया यह सोच सकती है, क्योंकि ‘सीएट’ से लेकर ‘फेब इंडिया’ तक सभी कंपनियां यही तो कर रही हैं। और इसलिए कर पा रही हैं कि हिंदू समाज प्रतिकार नहीं कर रहा, इन्हें जवाब नहीं दे रहा। डाबर ने समलैंगिकता की पैरवी और इसे उत्सव का अवसर बना डाला। सनातन त्योहार, जो महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के साथ रखती हैं। निर्जल व्रत रखती हैं। चाहे किसी परिवेश की हों। चाहे वह शहर हो या गांव। बिना किसी वर्गभेद। यही सनातन की ताकत है और यही उद्योग जगत में बड़े पदों पर बैठे वामपंथियों और विज्ञापन एजेंसियों का रूप धरे हिंदू विरोधियों की आंख में खटकता है।
विदेशी खाते, विदेशी निवेशक
डाबर का मालिक है बर्मन परिवार। यह परिवार विदेशी खातों के आरोपों में उलझा है। विदेशी निवेशकों के दबाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता। समलैंगिकता का पाठ पढ़ाने वाली डाबर इंडिया दूध की धुली नहीं है। इसके उत्पाद सवालों के दायरे में रहे ही हैं। इसके प्रमोटर भी कानून के शिकंजे में हैं। डाबर इंडिया के प्रमोटर प्रदीप बर्मन का नाम उस सूची में शामिल है, जो भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी है। इसमें ऐसे लोगों के नाम हैं, जिनकी काली कमाई विदेशी बैंकों में जमा है। प्रदीप बर्मन पर आरोप है कि उन्होंने अपनी ‘टैक्स रिटर्न’ में जान-बूझकर विदेशी खाते का खुलासा नहीं किया। यह साफ-साफ कर चोरी का भी मामला है। कंपनी की सफाई यह है कि वे एनआरआई यानी आप्रवासी भारतीय हैं। अपनी भारतीय जड़ें जो काट चुके हों, उन पर किस तरह के दबाव हो सकते हैं, समझा जा सकता है। दूसरा मसला कंपनी के शेयर से जुड़ा है। बर्मन परिवार के पास कंपनी के अधिकांश शेयर हैं। लेकिन कंपनी में विदेशी संस्थागत निवेशकों की हिस्सेदारी भी 21 फीसद से अधिक है। ऐसे में विदेशी आकाओं को भी खुश रखना कंपनी की मजबूरी हो सकती है।
घर-घर में त्योहार कैसे मनता है, यह विज्ञापन का विषय नहीं है। विज्ञापन में एक महिला दूसरी महिला को क्रीम लगाते हुए कहती है, ‘‘ये लग गया तेरा फेम क्रीम गोल्ड ब्लीच।’’ दूसरी महिला जवाब देती है, ‘‘धन्यवाद! तुम सबसे अच्छी हो।’’ वह पूछती है, ‘‘करवा चौथ का इतना कठिन व्रत क्यों रख रही हो?’’ इस पर महिला जवाब देती है, ‘‘उनकी खुशी के लिए।’’ इसी सवाल पर दूसरी महिला कहती है, ‘‘उनकी लंबी उम्र के लिए।’’ इस जोड़े को पहली करवाचौथ के तोहफे के रूप में साड़ियां मिलती हैं। और फिर वे रात में चांद को व एक-दूसरे को देखते हुए दर्शाई जाती हैं।
विज्ञापन दर्शाता है कि यह समलैंगिक जोड़ा पहली करवाचौथ मना रहा है। और जिस तरह से उन्हें तोहफा मिलता है, वह यह बताने की कोशिश है कि हिंदू समाज में इस जोड़े को मान्यता प्राप्त है, स्वीकारा गया है। विवाद बढ़ने पर डाबर ने बाकी कंपनियों की तरह माफी मांग ली और विज्ञापन हटा दिया, लेकिन करवाचौथ बीतने के बाद। यानी डाबर ने अपना काम पूरा किया और फिर कदम वापस खींच लिए। सनातन विज्ञान आयुर्वेद के मूल से निकली डाबर जैसी परंपरागत वैदिक उत्पाद बेचने वाली कंपनी को इसकी जरूरत क्यों पड़ी? आप कंपनी में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी और बर्मन परिवार की काली कमाई के बारे में पढ़ेंगे, तो समझ जाएंगे (देखें बॉक्स-1)।
लेकिन क्या बात बस इतनी ही है? कारपोरेट और विज्ञापन जगत के लिए यह जांचा-परखा हथकंडा बन चुका है। दीपावली के संदर्भ में फेब इंडिया ने भी ऐसी ही हरकत की। दीपावली प्रकाश का पर्व है। तिमिर पर प्रकाश की विजय का उत्सव। राम की अयोध्या वापसी का महोत्सव। लेकिन कपड़ों के एक ब्रांड ‘फेब इंडिया’ को यह जश्न-ए-रिवाज नजर आया। विशुद्ध उर्दू में एक सनातन पर्व का इस्लामीकरण करने की कोशिश की गई।
विज्ञापन में परिवेश और परिधान परंपरागत हैं, लेकिन मॉडलों की बिंदी गायब है। स्वाभाविक है बिंदी हिंदू महिला की अस्मिता है। मतलब कि कपड़े हिंदुओं को बेचने हैं, लेकिन त्योहार का इस्लामीकरण करना है। सोशल मीडिया पर ‘फैब इंडिया’ के खिलाफ भी अभियान चला। लोगों ने इसकी जमकर आलोचना की, लेकिन क्या फर्क पड़ता है। ‘फैब इंडिया’ की चर्चा ही हुई और कंपनी यही चाहती थी। जिस कंपनी की जड़ें सीआईए में हों, उसका उद्देश्य कम से कम दीपावली पर कपड़े बेचना नहीं हो सकता। ‘फैब इंडिया’ एक मोहरा है। (पढ़ें बॉक्स-3)
आरपीजी ग्रुप की कंपनी सीएट पर भी हिंदुओं को नसीहत देने का शौक चढ़ा है। इसके लिए इस ग्रुप की स्वाभाविक पसंद अभिनेता आमिर खान हैं। वही आमिर खान, जो खुद को बहुत बड़ा समाज सुधारक समझते हैं। ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम में सामाजिक बुराइयों पर ज्ञान बघारने वाले आमिर ने कभी हलाला, तीन तलाक, मुताह निकाह, खतना जैसे मसलों पर कुछ नहीं कहा। लेकिन सीएट टायर के विज्ञापन में वे सलाह देते हैं कि सड़कें वाहन चलाने के लिए हैं, पटाखे चलाने के लिए नहीं। ऐसे ही एक बारात को सलाह देते हैं। उनकी सारी सलाह हिंदुओं के लिए है। भाजपा सांसद अनंत हेगड़े ने सीएट के सीएमडी को पत्र लिखकर कहा कि ऐसा ही एक विज्ञापन बनना चाहिए, जिसमें संदेश हो कि सड़कें वाहन चलाने के लिए हैं, नमाज पढ़ने के लिए नहीं। उनके पत्र का न तो सीएट ने जवाब दिया और न ही कभी यह विज्ञापन आने वाला है। आरपीजी समूह को वामपंथियों को भी खुश रखना पड़ता है। ईस्ट इंडिया के समय की एक कंपनी के जरिए इस समूह ने केरल में अरबों रुपए की बेशकीमती जमीन कब्जा रखी है। इस पर मुकदमा भी चल रहा है। आरपीजी समूह को इसी मजबूरी के चलते समय-समय पर केरल की वामपंथी सरकार की आरती भी उतारनी पड़ती है। (पढ़िए बॉक्स 2)
हिंदू मान्यता और भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने वाला सबसे बड़ा समूह है हिंदुस्तान यूनिलीवर यानी एचयूएल। दरअसल इस कंपनी की जड़ें अंग्रेज और डच मूल में हैं। लीवर ब्रदर्स नाम से इस कंपनी की स्थापना 1933 में हुई। हालांकि हिन्दुस्तान यूनिलीवर रूप 2007 में सामने आया। इसकी हिमाकत पर गौर करने से पहले जरा इस बात पर नजर डालिए कि यह कमाती कैसे है। यह कंपनी बीस श्रेणी में 35 उत्पाद बेचती है, जिसमें अधिकतर उत्पाद हाथों-हाथ खरीदे जाने वाले हैं। यह कंपनी 3,500 करोड़ रुपए से ज्यादा अपने उत्पादों के विज्ञापन पर खर्च करती है। ये उत्पाद नब्बे फीसद हिंदू घरों में इस्तेमाल होते हैं। लेकिन यही कंपनी सबसे ज्यादा हमले हिंदू धर्म पर करती है। या यूं कहें कि इस पूरे विज्ञापन जिहाद की जनक हिंदुस्तान यूनिलीवर है। इसके कुछ विज्ञापनों पर गौर कीजिए।
इस कंपनी के एक विज्ञापन के अनुसार कुंभ मेले का प्रयोग हिंदू अपने बुजुर्गों को भीड़ में लावारिस छोड़ देने के लिए करते हैं। विज्ञापन दर्शाता है कि एक युवक अपने बुजुर्ग पिता से पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें कुंभ मेले की भीड़ में लेकर जाता है। फिर वह देखता है कि एक बाप अपने बेटे की फिक्र कर रहा है कि वह भीड़ में न खो जाए। फिर उसकी बुद्धि जाग्रत होती है कंपनी की बनाई रेड लेबल चाय पीकर। यानी रिश्तों की अहमियत चाय के घूंट के साथ समझ आती है। कुंभ स्नान किसी भी सनातनी हिंदू का सपना है।
यह अमृत वर्षा का समय है। भवसागर के पार जाने की अनंत कामना व श्रद्धा का प्रतीक है, लेकिन कंपनी के लिए कुंभ क्या है। हद तो तब हुई, जब एचयूएल ने क्लोज अप टूथपेस्ट के विज्ञापन का इस्तेमाल लव जिहाद को बढ़ावा देने के लिए किया। 2018 में आया यह विज्ञापन घनघोर आपत्तिनजक था और एक हिंदू महिला को केंद्रित करके बनाया गया था। फिर भी हम क्लोज अप खरीद लेते हैं। एक अन्य विज्ञापन में एक हिंदू गणपति पूजन के लिए मूर्ति लेने जाता है। लेकिन मूर्तिकार मुसलमान है, तो झिझक जाता है। उसकी झिझक एचयूएल की चाय पीकर दूर होती है। एक अन्य विज्ञापन में इसी तरह का इस्लामफोबिक एक बुजुर्ग दंपति को दिखाया गया, जिसमें हिंदू बुजुर्ग को मुस्लिम महिला के घर चाय पीने में हिचक होती है। और चाय के घूंट के साथ उसकी हिचक गायब हो जाती है। होली पर एक हिंदू लड़की मुस्लिम बच्चे को रंगों से बचाते हुए नमाज पढ़वाने ले जाती है।
केरल में फंसी है गर्दन
फैब इंडिया का सीआईए से नाता
कितनी लंबी हैं इस कुर्ते की बांहें
हिंदुस्तान यूनिलीवर हो या सीएट, सबका ज्ञान, सबके उपदेश, सबकी सामाजिक जिम्मेदारी हिंदू त्योहारों पर ही जागती है। यह हमला है। नायका जैसी आॅनलाइन कंपनी नवरात्रि में कंडोम की विशेष सेल लगाती है। यूएन अकादमी जैसी कंपनी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में रामायण पर एक मुस्लिम छात्र द्वारा तैयार किए गए विद्रूप को ‘स्पांसर’ करती है। इसमें मंथरा राम के राजतिलक को लेकर कैकेयी को कह रही है ‘‘अगर राम गद्दी पे आ गया, तो तेरी इज्जत तो दारू के चखने जैसी रह जाएगी।’’ यह क्या है। असल में हर कंपनी की अपनी प्रेरणाएं हैं, मजबूरियां हैं, लेकिन लक्ष्य साझा है।
लक्ष्य है हिंदू, उसकी आस्था, प्रतीक, मान्यताएं, पर्व।
आखिर किसी कंपनी के विज्ञापन का उद्देश्य क्या होता है? जाहिर है, अपने उत्पाद का प्रचार। कुछ इस तरह से प्रचार कि यह जन-जन तक पहुंचे। लेकिन समलैंगिकता, दीपावली का नाम बदल डालना, कुंभ का मजाक उड़ाना ये सब कहां तक उचित है? ईद, क्रिसमस या अन्य ऐसे पर्वों पर आपको ऐसा कोई विज्ञापन नहीं मिलेगा। मुसलमानों या ईसाइयों को ज्ञान देने वाला भी नहीं। अच्छा बताइए कभी आपने ईद पर सुनी है ‘बिग बिलयन सेल’, लेकिन दीपावली पर फ्लिपकार्ट चंद घंटों में 600 करोड़ रुपए का सामान बेच डालता है।
दिक्कत यह है कि हिंदू अपनी ताकत को नहीं जानते। अपनी ताकत को पहचानने के लिए जरा मौजूदा आर्थिक आंकड़ों पर गौर कीजिए। भारत में त्योहारों, आयोजनों का मौसम शुरू होते ही आर्थिक सुस्ती गायब हो गई। सितंबर के आंकड़े तो दुनिया भर के लिए चौंकाने वाले हैं। यह किसी क्रिसमस या रमजान से नहीं हुआ है। जीएसटी से लेकर पीएमआई, सब रिकॉर्ड स्तर पर है और दीपावली के बाद के अनुमान तो भारत की अर्थव्यवस्था को ऊंचाइयों पर ले जाने वाले हैं। कार बाजार में बढ़त है। रियलिटी में रौनक वापस आ गई है। एफएमसीजी में मांग रिकार्ड तोड़ रही है। इलेक्ट्रॉनिक बाजार कोविड के झटके को धो डालने के लिए तैयार है। फेस्टिवल आॅफर, दीवाली आॅफर सब तरफ छाए हुए हैं, लेकिन यह बाजार है। आप अगर हिंदू, हिंदू पर्व की बात करेंगे, तो सांप्रदायिक होंगे। बाजार अगर दीपावली सेल के बैनरों से सज जाएगा, तो कोई बात नहीं। मिठाई और गिफ्ट पैक से पटा यह बाजार क्रिसमस या ईद के लिए नहीं है। गारमेंट्स की सजी दुकानें नए वर्ष का इंतजार नहीं कर रही।
हिंदू परिवारों की ताकत उनकी बचत की ताकत है। उससे भी बड़ी ताकत उनकी क्रय शक्ति है। त्योहारों में भी सबसे ज्यादा हिंदुओं की गाढ़ी कमाई का पैसा दीपावली पर बाजार में जाता है। तो क्या बाजार को हिंदू पर्व, प्रतीकों, आस्था चिह्नों, परंपराओं का सम्मान नहीं करना चाहिए? डाबर, सिएट, फैब इंडिया, सर्फ एक्सल जैसे तमाम ब्रांड कैसे ये सोच सकते हैं कि वे हमारे धर्म, परंपरा, रीति-रिवाज, त्योहार का मजाक बनाकर हमें ही सामान बेच लेंगे।
हिंदुओं के विरोध का असर
दशकों से कंपनियां भारत में हिंदू परंपराओं, त्योहारों और आस्था पर चोट करती रही हैं, लेकिन अब सोशल मीडिया की दुनिया है। हिंदू समाज जाग्रत होता जा रहा है। वह प्रतिकार करने लगा है। डाबर इंडिया का विवाद जैसे ही शुरू हुआ, कंपनी के शेयर में एक कारोबारी सत्र में डेढ़ प्रतिशत की गिरावट देखने में आई। तनिष्क ने जब लव जिहाद से प्रेरित विज्ञापन बनाया था, तब टाइटन के शेयर में एक दिन में ढाई फीसद की गिरावट आई थी। सर्फ एक्सल के विज्ञापन का भी हिंदुस्तान यूनीलीवर के शेयर पर असर देखने में आया था।
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