उत्तर प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘अब्बा जान’ शब्द पर व्यंग्य किया. मानसून सत्र के दौरान योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘अब्बा जान’ शब्द कब से असंसदीय हो गया ? इस शब्द से सपा के लोगों को परहेज क्यों है? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संबोधन के बीच में ही नेता विरोधी दल अहमद हसन ने कहा कि इस भाषा से उन्हें तकलीफ पहुंची है. इसके बाद सपा ने इस वक्तव्य को सदन की कार्यवाही से निकालने की मांग की.
कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि “अखिलेश यादव के अब्बा जान कहते थे कि अयोध्या में परिंदा पर नहीं मार सकता.” इस वक्तव्य में अब्बाजान शब्द प्रयोग किये जाने को लेकर अखिलेश यादव ने नाराजगी जाहिर की थी. अखिलेश यादव ने कहा था कि "उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, मेरे पिता के बारे में कुछ कहेंगे तो खुद भी सुनने के लिए तैयार रहें."
उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री एवं प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने अपने बयान में कहा था कि " अखिलेश अपने पिता को पिता जी तो कहते नहीं हैं. डैडी कहते हैं. अंग्रेजी के शब्द से उनको दिक्कत नहीं है मगर उर्दू से दिक्कत है. उनके पिता मुलायम सिंह यादव भी अखिलेश यादव को टीपू कहकर बुलाते हैं "
सिद्धार्थ नाथ सिंह ने यह भी कहा था कि " पिता के लिये कहे जाने वाले आदर सूचक सम्बोधन शब्द ‘अब्बा’ से मिर्ची नहीं लगनी चाहिए. यह शब्द तो तहजीब का प्रतीक है.उनको अपने नजरिए और सोच को बदलने के साथ बातों को समझने और उनका सही अर्थ निकालने की जरूरत है. बिना सोचे-समझे कुछ भी बोलने वालों के मुंह से भाषा में संतुलन की बात हजम नहीं होती है. ड्राइंग रूम में बैठकर ट्वीट करने वालों को अब भाषा में भी दोष नजर आने लगा है. भाजपा की बढ़ती ताकत और जनाधार सपाइयों को रास नहीं आ रहा है. वो सहमे हुए हैं. इसलिये आदर सूचक और सम्मानजनक शब्दों की पहचान करना भूल गये हैं .
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