प्रतीकात्मक तस्वीर
वर्ष 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता अधिग्रहण किया था, तो उस समय कई ऐसे भी लोग वहाँ पर थे, जिन्होंने ब्रिटेन और अमेरिका की सहायता की थी। ब्रिटेन द्वारा ऐसे अफगानिस्तानियों के लिए शरण की योजना बनाई गई थी, जिसमें ब्रिटेन की सहायता करने वाले अफगानिस्तानी नागरिकों को ब्रिटेन में शरण दी जानी थी।
और इसी आधार पर हजारों अफगानी नागरिकों को ब्रिटेन में शरण भी दी गई थी। मगर अब एक डेटा लीक के कारण ऐसा लग रहा है कि सब गड़बड़ हो गया है। जो डेटा लीक हुआ है, उसमें कई ऐसे अफगानी नागरिकों के नाम हैं, जो अभी भी अफगानिस्तान में हैं और जो लोग अफगानिस्तान से ब्रिटेन आए हैं, उनमें से कई ऐसे हैं, जिन्होंने कभी ब्रिटेन की मदद की ही नहीं थी।
अब जो लोग अफगानिस्तान में रह गए हैं, वे तालिबानियों के निशाने पर आ गए हैं और छिपकर रह रहे हैं। टेलीग्राफ ने एक चौंकाने वाली रिपोर्ट में एक पीड़ित के हवाले से लिखा कि “जिन्हें बचाया गया है, उनमें से केवल 20 प्रतिशत ही वास्तविक पीड़ित लोग हैं, जिन्होंने अफगानिस्तान में ब्रिटिश सेना के साथ काम किया ही नहीं है।“
इसमें लिखा है कि जो पीछे छूट गए हैं, वे कर्नल, कमांडर और डिप्टी कमांडर जैसे लोग हैं, जबकि उनके ड्राइवर, रसोइये, माली, मालिश करने वाले और जूता पॉलिश करने वालों को निकाल लिया गया और वे अब ब्रिटेन में हैं। ऐसा ही दावा कई लोग और कर रहे हैं। आँकड़े बताते हैं कि हजारों की संख्या में वे अफगानी ब्रिटेन में रह रहे हैं, जिनके विषय में यह कहा जा रहा है कि उन्होंने ब्रिटेन की सहायता की थी, मगर दुर्भाग्य से उन्हें अंग्रेजी बोलना ही नहीं आता है।
टेलीग्राफ ने एक पीड़ित और काल्पनिक नाम जमालुद्दीन के हवाले से बताया कि एक ऐसा ड्राइवर जो यूके द्वारा उन्हें दिए गए ग्रेनेड्स और बुलेट्स को चुराकर तालीबानियों को बेच दिया करता था, वह खुद तो ब्रिटेन गया ही है मगर साथ ही वह 150 अपने रिश्तेदारों को लेकर चला गया है। जमाल का कहना है कि वह अच्छा आदमी नहीं है और उसे तब बाहर निकाला गया, जब डेटा लीक वाला हंगामा मचा।
जमालुद्दीन ने कहा कि “ऐसे भी लोग हैं जो अपने साथ 70, 40, 50 परिवार के सदस्यों को ब्रिटेन ले गए: सास, चचेरे भाई-बहन। मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो अपनी बहन के पति के भाई के बेटे के ससुराल वालों को ले गया। यह पूरी तरह से अराजकता है।”
जो लोग ऊंचे रैंक पर थे, वे सैकड़ों लोगों, दोस्तों और रिश्तेदारों को सूची बनाकर ले गए और कई ऐसे भी लोग ब्रिटेन में इस दावे के साथ चले गए हैं, जिन्होंने एक भी कारतूस नहीं दागा था। जमाल के अनुसार एक बेस में एक ऐसा व्यक्ति जो लोगों को चाय दिया करता और या फिर मेंजे साफ किया करता था, वह अभी ब्रिटेन में है, मगर उस बेस का कमांडर अभी अफगानिस्तान में ही कहीं छिपा हुआ है। जो लोग तालिबान के साथ लड़े, वे अभी अफगानिस्तान में ही हैं, मगर खराब पृष्ठभूमि वाले ड्राइवर और क्लीनर सभी ब्रिटेन में पहुँच गए हैं।
हालांकि डेटा लीक 2022 में हुआ था और जल्दी ही वह तालिबानियों के हाथों में चला गया था। मीडिया को यह एक साल बाद पता चला था, मगर उसके बाद भी बहुत हलचल नहीं हुई। इस डेटा लीक के बाद अफगानिस्तान से लोगों को जल्दी-जल्दी निकाला गया और लगभग 20,000 से अधिक अफगानिस्तानियों को ब्रिटेन में शरण दी गई। इन दिनों यह डेटा लीक इसलिए और चर्चा में है क्योंकि अब पता चल रहा है कि जिन लोगों ने बोगस दावे किये, उन्हें उनके दसियों परिजनों के साथ ब्रिटेन में शरण दे दी गई है, और वह भी उन्हें जिनकी छवि अच्छी नहीं थी। इस डेटा लीक के बाद आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 16,000 अफगानी नागरिकों को यूके में बसाया गया और जबकि अभी 25,000 लोग कतार में है।
इस पर लागत 7 बिलियन यूरो की लागत आने वाली थी, मगर बाद में इसे कम किया गया। सरकार ने अनुमान लगाया कि प्रत्येक पात्र व्यक्ति को पुनर्वास के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा के अतिरिक्त खर्चों के साथ, प्रति वर्ष कम से कम £20,000 की आवश्यकता होगी।
सबसे हैरानी की बात यह है कि इस पूरे बचाव अभियान को पूरी तरह से गुप्त रूप से किया गया। इसके विषय में संसद को भी सूचना नहीं दी गई, और न ही बर्कशायर के ब्रैकनेल और विल्टशायर के लार्कहिल आर्मी कैंप जैसे स्थानों के समुदायों को, जहाँ कई अफ़गानों को ठहराया गया था। औसतन, प्रत्येक प्रमुख आवेदक अपने साथ सात पारिवारिक सदस्य लेकर आया था। कुछ तो इससे भी ज़्यादा लोग लेकर आए।
यूके में आने वाले एक अफगानी नागरिक को 22 लोग साथ लाने की अनुमति दी गई जबकि और जो लोग आए वे किशोर थे। अब ऐसे में लोग प्रश्न उठा रहे हैं कि कोई किशोर कैसे अफगानिस्तान में रहते हुए ब्रिटेन की सेना की सहायता का दावा कर सकता है?
पहले यूके के रक्षामंत्री आने वाले लोगों में केवल जोड़े और उनके बच्चे ही रखना चाहते थे, मगर फिर 2024 में कोर्ट का एक निर्णय आया, जिसमें यह कहा गया कि “कानून या आम प्रचलन में ‘परिवार के सदस्य’ शब्द का कोई निश्चित अर्थ नहीं है। दरअसल, ‘परिवार’ शब्द का अलग-अलग लोगों के लिए और अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग अर्थ हो सकता है। सांस्कृतिक कारण हो सकते हैं… रक्त या कानूनी संबंध की कोई आवश्यकता नहीं है।” और इस निर्णय के बाद अडिश्नल फैमिली मेम्बर्स के नाम पर लोगों को लाया गया।
टेलीग्राफ ने अफगानिस्तान में अपने सूत्रों के हवाले से बताया कि “डेटा चोरी के बाद पैदा हुई “अराजकता” में, अपराधी, जिनमें ब्रिटिश ठिकानों से चोरी करने वाले और तालिबान को हथियार बेचने वाले जूनियर कर्मचारी भी शामिल थे, बड़ी संख्या में अपने परिवार के सदस्यों के साथ ब्रिटेन आ गए थे, जबकि सेना के साथ काम करने वाले सैन्य अधिकारी अफगानिस्तान में ही छूट गए हैं।
अब इसे लेकर संसद से लेकर आम लोगों में हंगामा है और लोग प्रश्न पूछ रहे हैं कि आखिर सरकार के लिए प्राथमिकता किसकी है?
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