बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हाल ही में एक ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। शुक्रवार की जुमे की नमाज के बाद ढाका की मशहूर बैतुल मुकर्रम मस्जिद के बाहर एक जुलूस निकला, जिसमें प्रतिबंधित इस्लामी संगठन के समर्थकों ने खुलेआम जिहादी नारे लगाए। इस घटना ने बांग्लादेश की सुरक्षा और शांति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या हुआ ढाका में?
बांग्लादेश की राष्ट्रीय बैतुल मुकर्रम मस्जिद में जुमे की नमाज के बाद हजारों की संख्या में इस्लामिक कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए। इन लोगों ने न केवल जिहादी नारे लगाए, बल्कि खुद को “मिलिटेंट” यानी उग्रवादी भी बताया। जिहादियों ने खुलेआम मस्जिद के बाहर ‘जिहाद चाहिए, जिहाद से जीना है’, ‘नारा ए तकबीर, अल्लाहु अकबर’, ‘कौन हैं हम मिलिटेंट-मिलिटेंट’। इस दौरान इनके हाथों में आईएसआईएस और तालिबान की झंडियां भी देखी गईं।
यह जुलूस उस समय निकला, जब बांग्लादेश पहले ही राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा की घटनाओं से जूझ रहा है। इस घटना ने न सिर्फ स्थानीय लोगों में डर पैदा किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता बढ़ा दी।
प्रतिबंधित संगठन फिर से सक्रिय
बांग्लादेश में हाल के महीनों में कई प्रतिबंधित इस्लामी संगठनों की गतिविधियां बढ़ी हैं। खास तौर पर जमात-ए-इस्लामी और उसकी छात्र शाखा इस्लामी छत्र शिबिर पर नजर रखी जा रही है। ये संगठन पहले भी विवादों में रहे हैं। 2024 में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद इन संगठनों पर लगी पाबंदी को अंतरिम सरकार ने हटा लिया था। इसके बाद से इनकी गतिविधियां खुलेआम देखी जा रही हैं। ढाका में हाल की रैली में जमात-ए-इस्लामी के समर्थकों की भारी भीड़ शामिल हुई, जो पूरे देश से राजधानी पहुंचे थे। आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से अब तक 300 से अधिक जिहादियों को जेल से छोड़ दिया गया है।
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सुरक्षा बलों की कार्रवाई और चुनौतियां
इस जुलूस के बाद बांग्लादेश पुलिस और सुरक्षा बलों ने कार्रवाई शुरू की। कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया, लेकिन बड़े पैमाने पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। मार्च 2025 में भी एक अन्य प्रतिबंधित संगठन, हिजब उत-तहरीर, ने ढाका में “खिलाफत मार्च” निकालने की कोशिश की थी। उस समय पुलिस ने आंसू गैस और साउंड ग्रेनेड का इस्तेमाल कर भीड़ को तितर-बितर किया था, जिसमें 36 लोग हिरासत में लिए गए थे। लेकिन इस बार की घटना में कार्रवाई की कमी ने लोगों में असुरक्षा की भावना को और बढ़ा दिया।
राजनीतिक अस्थिरता का असर
बांग्लादेश पिछले कुछ समय से भारी राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है। शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद अंतरिम सरकार के तहत देश में सुधारों की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन इस बीच, धार्मिक और राजनीतिक संगठनों की बढ़ती गतिविधियों ने माहौल को और जटिल कर दिया है। जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन इस अस्थिरता का फायदा उठाकर अपनी जड़ें मजबूत करने की कोशिश में हैं। 2026 में होने वाले आम चुनावों से पहले इन संगठनों का प्रभाव युवाओं, खासकर पुरुष मतदाताओं, पर बढ़ता दिख रहा है।
अंतरराष्ट्रीय चिंता
इस घटना ने वैश्विक समुदाय का ध्यान भी खींचा है। बांग्लादेश में बढ़ती कट्टरपंथी गतिविधियां न केवल देश की शांति के लिए खतरा हैं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी प्रभावित कर सकती हैं। भारत, जो बांग्लादेश का करीबी पड़ोसी है, ने भी इस पर चिंता जताई है। हाल ही में भारत ने बांग्लादेश के कार्यवाहक उच्चायुक्त को समन कर इस तरह की घटनाओं पर आपत्ति दर्ज की थी।
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