जिन्ना के देश के नेताओं और सरकारी अधिकारियों के दिमाग की बत्ती इस कदर गुल है कि वे अपने बयानों और करतूतों से ही अपनी पोल खोल देते हैं। हाल के दो घटनाक्रम ऐसे हैं जो बताते हैं कि पाकिस्तान में रीति और नीति निर्धारित करने वाला कोई नहीं है, जिसका जो मन आता है वैसा बयान दे देता है। बाद में उस बात पर लागलपेट करके उसे ढकने की कवायद की जाती है जिससे उस कट्टर इस्लामवादी देश की पोल—पट्टी और खुल जाती है। पहली घटना राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘प्रस्तावित पाकिस्तान यात्रा’ के बारे में हैं जिसमें व्हाइट हाउस प्रवक्ता ने ही पाकिस्तान के फर्जीवाड़े को दुनिया के सामने उजागर किया, फिर बाद में जिन्ना के देश का विदेश विभाग बगलें झांकने लगा। दूसरी घटना अमेरिका द्वारा लश्करे तैयबा को जिस फर्जी नाम से चलाया जा रहा है उस आतंकवादी संगठन टीआरएफ को वैश्विक आतंकवादी संगठन की सूची में डालने का जिन्ना के देश के विरोध को लेकर सामने आई है।
पहले बात ट्रंप की ‘प्रस्तावित यात्रा’ को लेकर जिन्ना के देश द्वारा पैदा किए गए ‘हाइप’ की। ‘राष्ट्रपति ट्रंप का अभी उस देश में जाने का कोई कार्यक्रम ही नहीं है’। व्हाइट हाउस प्रवक्ता का ऐसा कहना जिन्ना के झूठे देश के उस बयान को पस्त कर गया जो उसने पिछले कुछ दिनों से मीडिया में उछाला हुआ था कि ‘अमेरिका के राष्ट्रपति आगामी सितम्बर में पाकिस्तान आने वाले हैं’। अमेरिका के उक्त स्पष्टीकरण के बाद पाकिस्तानी नेता और विदेश विभाग लीपापोती की कवायद में जुटा है।

अब बात अमेरिका द्वारा टीआरएफ को वैश्विक आतंकवादी संगठन की सूची में डालने की। अमेरिका के इस कदम का सबसे पहले और फौरन विरोध भी किया तो पाकिस्तान ने ही। जाने क्या सोचकर वह टीआरएफ के पाले में आ खड़ा हुआ और उसकी ‘पेरेन्ट टेररिस्ट आर्गेनाइजेशन’ लश्करे तैयबा को ‘अब निष्क्रिय संगठन’ बताने लगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बाकायदा बयान जारी करके यह भी कहा कि पहलगाम हमले में टीआरएफ की कोई भूमिका नहीं थी। जिन्ना के देश के नेताओं का बौद्धिक स्तर इतना नीचे है कि वे नहीं समझ पाए कि ऐसा बयान देकर वे साबित कर रहे हैं कि उनका सत्ता अधिष्ठान आतंकवादियों के साथ खड़ा है और भारत में भाड़े के जिहादी भेजकर नरसंहार रचा रहा है। बेशक पाकिस्तान द्वारा अमेरिका के उक्त कदम का विरोध और लश्करे-तैयबा को ‘निष्क्रिय’ बताने का दावा एक बेदिमाग कूटनीतिक हरकत साबित करता है।

अमेरिका ने द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) को विदेशी आतंकवादी संगठन (FTO) और विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी संगठन घोषित किया है। टीआरएफ वही जिहादी संगठन है जिसने 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे। अमेरिका ने उस हमले को 2008 के मुंबई हमलों के बाद भारत में सबसे घातक हमला बताया था। अमेरिका का यह निर्णय बेशक उसकी आतंकवाद के विरुद्ध प्रतिबद्धता और भारत के साथ सहयोग को दर्शाता है।
पाकिस्तान ने अपने बयान में TRF को लश्करे-तैयबा से असंबंधित बताया है और कहा कि लश्कर एक ‘निष्क्रिय संगठन’ है। जिन्ना के देश के विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि ‘पहलगाम हमले की जांच निर्णायक नहीं रही और उसमें TRF की भूमिका स्पष्ट नहीं है’। इसी के साथ पाकिस्तान ने अमेरिका से बलूचिस्तान के ‘मजीद ब्रिगेड’ संगठन को भी आतंकी संगठन घोषित करने की मांग कर डाली। इससे उसकी यही मंशा जाहिर होती है कि कैसे भी वह भारत के आरोपों के साथ संतुलन बिठाकर अपनी ओर से बलूचिस्तान के संगठन को बदनाम कर दे।

जैसा पहले बताया, टीआरएफ लश्करे-तैयबा का ‘मुखौटा संगठन’ ही है, जिसे 2019 में सामने लाया गया था। इसी जिन्ना के देश पाकिस्तान ने पहले संयुक्त राष्ट्र में चीन के साथ मिलकर टीआरएफ को वैश्विक आतंकी घोषित करने के भारत के प्रस्ताव को रोकने की कोशिश की थी और दुनिया के सामने खुद को आतंकवाद का प्रायोजक साबित कर दिया था। अब पाकिस्तान का यह ताजा विरोध फिर साफ कर देता है कि उसकी सरकार और फौज आतंकवादियों को पाल रही है और भारत के विरुद्ध नित नए षड्यंत्र रच रही है।
हालांकि भारत ने अमेरिका के निर्णय का स्वागत करते हुए इसे कूटनीतिक जीत बताया है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसे भारत-अमेरिका आतंकवाद-रोधी सहयोग की पुष्टि कहकर इस कदम की प्रशंसा की है। भारत तो 2023 में ही टीआरएफ को ‘UAPA कानून के तहत आतंकी संगठन घोषित कर चुका था।
यह TRF ही था जिसने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली थी, लेकिन बाद में शायद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भेजी गई लानतों के बाद अपने बयान से पलट गया था। लश्करे तैयबा को संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहले ही आतंकी संगठन घोषित किया जा चुका है। TRF का मुख्य सरगना शेख सज्जाद गुल है, जो जिन्ना के देश में ही वहां के नेताओं और फौज की गोद में दुबका बैठा बताया जाता है।
साफ है कि अमेरिका का यह निर्णय भारत के लिए रणनीतिक और नैतिक समर्थन का संकेत है। पाकिस्तान द्वारा लश्कर को ‘निष्क्रिय’ बताना जमीनी सचाई को छुपाने की नई कवायद से ज्यादा कुछ नहीं है। TRF की गतिविधियां लश्कर से जुड़ी रही हैं। इसलिए इस संगठन के पाले में खड़े होकर भी पाकिस्तान ने दिखा दिया है कि वही है हर तरह के आतंकवाद की जड़ और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह बात सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं।
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