SCO मीटिंग में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (फोटो साभार: एचटी)
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने चीन के क़िंगदाओ में शंघाई सहयोग संगठन (Sanghai Cooperation Organisation, SCO) के रक्षा मंत्रियों की 24-26 जून तक चली बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। चीन, मेजबान देश संगठन की अध्यक्षता कर रहा है। एससीओ के सदस्य देशों और वैश्विक नेतृत्व को एक कड़ा संदेश भेजते हुए, भारत के रक्षा मंत्री ने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। जो संयुक्त बयान साझा किया गया था उसमे 22 अप्रैल के पाकिस्तान प्रायोजित जघन्य पहलगाम आतंकी हमले का उल्लेख नहीं किया गया था, जिसमें 26 पर्यटक चुनिंदा रूप से मारे गए थे।
एससीओ की स्थापना वर्ष 2001 में आपसी सुरक्षा, राजनीतिक और आर्थिक सहयोग पर क्षेत्रीय सहयोग मंच के रूप में की गई थी। इसकी स्थापना चीन द्वारा की गई थी और सदस्य राष्ट्रों में भारत, रूस, ईरान, पाकिस्तान, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं। सदस्य देशों पर एक नजर डालने से संकेत मिलता है कि समूह मध्य एशिया के अधिकांश हिस्सों का प्रतिनिधित्व करता है और पर यह बड़े पैमाने पर चीन केंद्रित संगठन रहा है। चीन और रूस इस क्षेत्र में अमेरिकी हितों का मुकाबला करने के लिए एक साथ हो गए हैं। यह केवल भारत है जिसकी वैश्विक हितों पर तटस्थ स्थिति और दृष्टिकोण है।
SCO क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है, जो दुनिया के 24% क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है और समूह दुनिया की आबादी का 42% हिस्सा है। यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 23% हिस्सा भी है। इस समूह की प्राथमिकताओं को समझना महत्वपूर्ण है। हालांकि मध्य एशिया में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए चीन द्वारा इस समूह का गठन किया गया था, लेकिन वर्ष 2001 में अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमले ने समूह को आतंकवाद से लड़ने की दिशा में ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर कर दिया। व्यापार और आर्थिक मुद्दों पर भी सहयोग साथ साथ जारी रहा।
संयुक्त रूप से आतंकवाद के बढ़ते खतरे का मुकाबला करने के लिए, वर्ष 2004 में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (Regional Anti- Terrorist Structure, RATS) की स्थापना की गई थी। जबकि आरएटीएस ने शुरू में आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद पर ध्यान केंद्रित किया, बाद में इसने मानव तस्करी, हथियार तस्करी, मादक पदार्थों की तस्करी और साइबर युद्ध को शामिल करने के लिए अपने दायरे का विस्तार किया। आरएटीएस की उपलब्धियों को औसत के रूप में वर्णित किया जा सकता है। पिछले 25 सालों में पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवाद का सबसे बड़ा प्रायोजक बना हुआ है। वर्ष 2008 में 26/11 के पाक प्रायोजित मुंबई आतंकी हमले के बाद, एससीओ और विशेष रूप से आरएटीएस पाकिस्तान के खिलाफ कोई स्पष्ट कार्रवाई करने में विफल रहा।
उपरोक्त संदर्भ में, एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक ने एक बड़ा अवसर था क्योंकि एससीओ के पांच प्रमुख सदस्य, अर्थात् चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान और ईरान सदस्य देश आपस में या कुछ अन्य देशों के साथ संघर्षों में उलझे हुए हैं। उदाहरण के लिए यह पाकिस्तान को पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर की वास्तविकता से परिचित कराने का अवसर था। इसके विपरीत, हमने एक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण देखा, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान द्वारा संयुक्त विज्ञप्ति को अपने लाभ के लिए हाईजैक करने के लिए। चीन अब रूस पर भारी पड़ गया है और इस प्रकार हमारा पुराना विश्वसनीय सहयोगी भी चीन को पहलगाम आतंकी हमले का उल्लेख शामिल करने के लिए राजी नहीं कर सका। ईरान को सैन्य समर्थन के माध्यम से इजरायल के खिलाफ अपने युद्ध को जीवित रखने के लिए चीन और रूस की आवश्यकता है। इस प्रकार बाकी सदस्य देश चीन और पाकिस्तान के पक्षपातपूर्ण व्यक्तव्य को रोक नहीं सके।
हालांकि रूस भारत को सैन्य हार्डवेयर का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन वह देश यूक्रेन के साथ लंबे समय से युद्ध में उलझा हुआ है। इस प्रकार यह भारत को सैन्य आपूर्ति समय सीमा में पूरा करने में सक्षम नहीं है। साथ ही, यह भी एक तथ्य है कि जब पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों की बात आती है तो रूस हमेशा हमारे पक्ष में नहीं होता है। इस प्रकार, जहां तक भारत का संबंध है, एससीओ चीन, रूस और पाकिस्तान के विचारों के प्रति लगातार पक्षपाती पाया जाता है। अन्य सदस्य देश एससीओ में शक्ति संतुलन को बदलने के लिए बहुत अधिक वजन नहीं रखते हैं, जिसने पूरी तरह से चीन-केंद्रित पहचान ग्रहण कर ली है। भारत ने रक्षा मंत्रियों की बैठक के बाद एक संयुक्त विज्ञप्ति को रोक कर अच्छा कदम उठाया । भारत ने एक बार फिर आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समुदाय को हमारा स्पष्ट संदेश दिया।
इस बैठक का एकमात्र सकारात्मक परिणाम श्री राजनाथ सिंह की चीन और रूस के अपने समकक्षों के साथ आमने-सामने की बातचीत रही। रूस के साथ, रक्षा मंत्री ने एक बार फिर एस -400 प्रणाली और अन्य महत्वपूर्ण सैन्य हार्डवेयर की लंबित आपूर्ति के लिए तात्कालिकता पर प्रकाश डाला। रूस ने भारत को प्रतिबद्ध रक्षा हार्डवेयर की आपूर्ति में तेजी लाने का वादा किया है। रक्षा मंत्री ने चीन के साथ पूर्वी लद्दाख से डी-एस्केलेशन और डीइंडक्शन की प्रतिबद्धता का सम्मान करने के लिए कहा। सैन्य स्तर पर, भारत उन मुद्दों पर अपना दृढ़ रुख व्यक्त करने में सक्षम रहा जो हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को प्रभावित करते हैं।
एससीओ में मौजूदा गतिरोध अब भारतीय कूटनीति के लिए एक और चुनौती है। हालांकि भारत निश्चित रूप से आर्थिक मुद्दों पर सदस्य देशों के साथ व्यवहार करना जारी रखेगा, लेकिन सुरक्षा से संबंधित मुद्दों, विशेष रूप से आतंकवाद पर नए सिरे से विचार करना होगा। मेरी राय में, भारत अपने कद, अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और औचित्य की भावना के साथ आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक गठबंधन का नेतृत्व करने की एकमात्र स्थिति में है। आपसी समझ, खुफिया जानकारी साझा करना, सामान्य प्रोटोकॉल और प्रत्यर्पण संधियां इस तरह की साझेदारी के लिए एक शुरुआत हो सकती हैं। यदि आरंभ में 20 देश भी इस गठबंधन का हिस्सा बन जाते हैं तो भी यह आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त लड़ाई के लिए शुभ संकेत होगा। जहां तक आतंकवाद के खिलाफ अपने New Normal का सवाल है, भारत को अब एक पक्षपातपूर्ण एससीओ से परे देखना पड़ सकता है। जय भारत!
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