प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने और 2040 तक चंद्रमा पर किसी भारतीय को भेजने की घोषणा के बाद एक्सिओम-4 मिशन भारत की नई अंतरिक्ष नीति की दिशा को रेखांकित करता है। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की यह उड़ान विंग कमांडर राकेश शर्मा के 1984 के मिशन के बाद किसी भारतीय की अंतरिक्ष की दूसरी यात्रा है। यह सिर्फ एक अंतरिक्ष उड़ान नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता और वैश्विक अंतरिक्ष मंच पर उसकी सशक्त उपस्थिति की प्रतीक है।

विज्ञान संचार विशेषज्ञ
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में 25 जून 2025 को एक नया अध्याय जुड़ गया, जब ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला दोपहर 12़ 01 बजे फ्लोरिडा के नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरिक्ष के लिए रवाना हुए। एक्सिओम-4 मिशन स्पेस-एक्स के फॉल्कन 9 रॉकेट और ड्रैगन क्रू कैप्सूल के माध्यम से प्रक्षेपित हुआ। यह अभियान न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम ‘गगयान’ के लिए भी एक निर्णायक कदम माना जा रहा है।
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की यह उड़ान उसी लॉन्च कॉम्प्लेक्स 39ए से प्रक्षेपित हुई, जहां से 1969 में नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा के लिए रवाना हुए थे। यह संयोग भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक प्रेरणास्पद प्रतीक बन गया है। एक्सिओम-4 मिशन के अंतर्गत ग्रुप कैप्टन शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर 14 दिनों तक रहेंगे और कई वैज्ञानिक प्रयोगों में भाग लेंगे।
इन प्रयोगों का प्रमुख उद्देश्य दीर्घकालिक अंतरिक्ष यात्राओं के लिए आवश्यक पोषण, स्वास्थ्य और जीवन समर्थन प्रणालियों का विकास है। इस मिशन के साथ ग्रुप कैप्टन शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय और अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं। इससे पहले 1984 में राकेश शर्मा ने सोयूज टी-11 यान के माध्यम से अंतरिक्ष की यात्रा की थी।

एक ऐतिहासिक अवसर
एक्सिओम-4 मिशन भारत के लिए केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक भी है। चार देशों के इस साझा मिशन में ग्रुप कैप्टन शुक्ला के साथ अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं। भारतीय वायुसेना के एक अनुभवी टेस्ट पायलट शुक्ला इस मिशन के पायलट की भूमिका निभा रहे हैं, जो कमांडर के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद होता है। उनके साथ कमांडर पैगी व्हिटसन (यूएसए, पूर्व नासा अंतरिक्ष यात्री), मिशन विशेषज्ञ स्लावोज उज्नान्स्की-विस्निएव्स्की (पोलैंड) और टिबोर कापू (हंगरी) भी होंगे। इस मिशन में ग्रुप कैप्टन प्रशान्त बालाकृष्णन नायर को ‘स्टैन्डबाई पायलट’ के रूप में रखा गया था।
पांच अरब का निवेश
इस मिशन के लिए इसरो ने 5 अरब रुपए का निवेश किया है, जो ग्रुप कैप्टन शुक्ला के प्रशिक्षण और अंतरिक्ष में भेजने पर खर्च किया गया है। इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन के अनुसार, यह अनुभव भविष्य के मिशनों के लिए अमूल्य होगा, विशेष रूप से भारत के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन के लिए, जिसके तहत 2027 में तीन भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना है। गगनयान के साथ ही भारत ने 2035 तक अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने और 2040 तक किसी भारतीय को चंद्रमा पर भेजने की योजना बनाई है। एक्सिओम-4 मिशन इन सभी लक्ष्यों के लिए एक प्रशिक्षण और परीक्षण की भूमि सिद्ध हो सकता है।

होंगे विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग
एक्सिओम-4 मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्री 60 वैज्ञानिक प्रयोगों पर कार्य करेंगे, जिनमें से 7 प्रयोग इसरो द्वारा प्रस्तावित हैं। इनमें से एक प्रयोग अंतरिक्ष में फसलों के बीजों पर होगा, ताकि यह पता लगाया जा सके कि भविष्य में अंतरिक्ष में भोजन कैसे उगाया जा सकता है। कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में भारत के खाद्य एवं पोषण आधारित जैव प्रौद्योगिकी प्रयोगों का प्रतिनिधित्व करेंगे। ये प्रयोग इसरो, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग, और नासा के सहयोग से संचालित होंगे, जिसका मुख्य उद्देश्य भविष्य की दीर्घकालिक अंतरिक्ष यात्राओं के लिए टिकाऊ पोषण और आत्मनिर्भर जीवन समर्थन प्रणालियों को विकसित करना है। एक्सिओम-4 मिशन के तहत पहले प्रयोग में सूक्ष्म शैवाल पर अंतरिक्ष के माइक्रोग्रैविटी और विकिरण के प्रभावों का गहन अध्ययन किया जाएगा।
माइक्रोएल्गी तेज़ी से बढ़ने वाले सूक्ष्मजीव होते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। साथ ही उच्च प्रोटीन युक्त बायोमास का उत्पादन करते हैं। यह गुण उन्हें अंतरिक्ष यानों में पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और पोषण के स्रोत के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है। इस प्रयोग में भारत में विकसित स्वदेशी बायोटेक किट का उपयोग होगा, जिससे शोध की गुणवत्ता और आत्मनिर्भरता दोनों बढ़ेंगी।
इस मिशन में स्पाइरुलिना और सिनेकोकस जैसे साइनोबैक्टीरिया, जिन्हें आमतौर पर नीली-हरी शैवाल कहा जाता है, पर अंतरिक्ष के कम गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा। ये जीव प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम होते हैं और पृथ्वी पर सबसे पुराने जीवों में से हैं, जिन्होंने लगभग 3.5 अरब साल पहले वायुमंडल में ऑक्सीजन उत्पन्न करना शुरू किया था।
इस प्रयोग में इनके विकास, प्रोटीन संश्लेषण, चयापचय प्रक्रियाओं और कोशिकीय प्रतिक्रियाओं को मापा जाएगा। इन्हें यूरिया और नाइट्रेट जैसे स्रोतों में उगाकर मानव अपशिष्ट से नाइट्रोजन पुनर्चक्रण की क्षमता का परीक्षण भी किया जाएगा। स्पाइरुलिना की उच्च प्रोटीन और विटामिन सामग्री इसे अंतरिक्ष में संभावित सुपरफूड बनाती है, जबकि साइनोबैक्टीरिया की तेज वृद्धि और प्रकाश संश्लेषण क्षमता दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के लिए इन्हें उपयुक्त बनाती है।
यह शोध क्लोज्ड-लूप लाइफ सपोर्ट सिस्टम, जिसमें कार्बन और नाइट्रोजन की पुनर्चक्रण प्रक्रियाएं शामिल हैं, के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देगा। साथ ही, यह समझने में मदद करेगा कि ये जीव अंतरिक्ष की कठोर परिस्थितियों में कैसे टिक सकते हैं और भविष्य में मंगल या चंद्रमा जैसे स्थानों पर मानव जीवन समर्थन में किस तरह सहायक हो सकते हैं।

शरीर, मन पर अंतरिक्ष के प्रभावों का अध्ययन
एक्सिओम-4 मिशन के तहत ग्रुप कैप्टन शुक्ला अंतरिक्ष में मानव शरीर और मन पर अंतरिक्ष के प्रभावों को लेकर भी अहम अध्ययन करेंगे। इस अध्ययन में वे माइक्रोग्रैविटी में लंबे समय तक इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन के उपयोग से होने वाले मानसिक व शारीरिक प्रभावों का परीक्षण करेंगे। अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण मांसपेशियों की शक्ति घट जाती है और हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। वहीं, लगातार स्क्रीन पर देखने से आंखों में थकान, दृश्य गड़बड़ी और सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। मानसिक रूप से, सीमित और एकरस माहौल में स्क्रीन के सामने लम्बे समय तक कार्य करना तनाव, अकेलेपन और ध्यान की कमी जैसे प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। यह अध्ययन अंतरिक्ष यात्रियों की दीर्घकालिक कार्यक्षमता बनाए रखने, मानसिक संतुलन सुधारने, और भविष्य के चंद्र तथा मंगल अभियानों की तैयारी में मदद करेगा। साथ ही, यह पृथ्वी पर भी डिजिटल थकान से निबटने के उपाय सुझा सकता है।
इस मिशन के अंतर्गत एक रोचक प्रयोग टार्डिग्रेड्स या वाटर बीयर पर केंद्रित है, जो ऐसे सूक्ष्मजीव हैं जिन्हें उनकी असाधारण सहनशक्ति के लिए जाना जाता है। टार्डिग्रेड्स को अमर जीव भी कहा जाता है क्योंकि ये चरम परिस्थितियों जैसे अत्यधिक तापमान, विकिरण, निर्वात और सूखा सहकर भी अनंतकाल तक जीवित रह सकते हैं। इस मिशन में वैज्ञानिक यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या ये सूक्ष्मजीव अंतरिक्ष की सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण वाली स्थितियों में प्रजनन कर सकते हैं, और यदि हां, तो किन जैविक प्रक्रियाओं के जरिए। यह शोध न केवल पृथ्वी से बाहर जीवन की संभावनाओं की खोज में मदद करेगा, बल्कि अंतरिक्ष यात्रियों को चरम स्थितियों में जीवित रखने की रणनीतियाँ तैयार करने में भी सहायक सिद्ध हो सकता है।
बीज और अंकुरण पर प्रभाव
अंतरिक्ष यात्रा के दौरान बीजों को अत्यंत अनूठे और चुनौतीपूर्ण वातावरण का सामना करना पड़ता है, जिसमें माइक्रोग्रैविटी, उच्च विकिरण और चरम तापमान जैसे कारक शामिल हैं। ये परिस्थितियां बीजों की गुणवत्ता, उनके डीएनए और विकास प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव डालती हैं। कभी-कभी इससे अंकुरण में विलंब, उत्परिवर्तन या विकास में रुकावट हो सकती है, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है। लेकिन कुछ शोधों ने यह भी दिखाया है कि अंतरिक्ष में बीजों में सकारात्मक बदलाव, जैसे बेहतर तनाव सहनशीलता और पोषण संबंधी गुणों में सुधार, संभव हो सकता है।
एक्सिओम-4 मिशन में बीजों के अंकुरण और पौधों की वृद्धि का अंतरिक्ष के माइक्रोग्रैविटी वातावरण में विस्तार से अध्ययन किया जाएगा। इसका उद्देश्य यह समझना है कि कैसे शून्य गुरुत्वाकर्षण में बीज अंकुरित होते हैं और इससे पौधों के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह शोध अंतरिक्ष में खाद्य उत्पादन की नई तकनीकों को विकसित करने में मदद करेगा, जो दीर्घकालिक मिशनों और भविष्य के अंतरिक्ष कॉलोनियों के लिए बेहद जरूरी हैं। एक्सिओम-4 मिशन में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी और गणित (स्टेम शिक्षा) प्रयोगों के माध्यम से स्कूल विद्यार्थियों को विज्ञान की जटिल अवधारणाओं को समझने और अंतरिक्ष के सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में उनकी व्यवहारिकता देखने का अनूठा अवसर मिलेगा। साथ ही, इस मिशन में विभिन्न देशों के वैज्ञानिक और अंतरिक्ष एजेंसियां मिलकर संसाधन और ज्ञान साझा करेंगे, जिससे प्रयोगों की गुणवत्ता और वैज्ञानिक नवाचार बढ़ेंगे।

गगनयान की नींव
यह मिशन भारत के महत्वाकांक्षी गगनयान कार्यक्रम के लिए व्यावहारिक अनुभव का मंच है। इसरो ने इस परियोजना के लिए 5 अरब रु. की राशि आवंटित की है, जो गगनयान मिशन से पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान के प्रशिक्षण, तकनीकी प्रोटोकॉल और आपातकालीन स्थितियों की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को इसरो के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम में नामित किया गया है और वे 2027 में प्रस्तावित गगनयान मिशन के संभावित कमांडरों में से एक हैं।
एक्सिओम-4 मिशन से प्राप्त अनुभव और डेटा गगनयान 2027 की तैयारी में सहायक साबित होंगे। यह मिशन भारत का पहला स्वदेशी मानव अंतरिक्ष अभियान होगा, जिसमें भारतीय वायुसेना के चार चुने हुए पायलटों को पृथ्वी की 400 किलोमीटर निचली कक्षा में भेजा जाएगा। इसके पूर्व तीन परीक्षण मिशन-जी1, जी 2, और जी 3 सफलतापूर्वक पूरे किए जाएंगे, जिनमें एक में अर्ध-मानव रोबोट ‘व्योममित्र’ भी शामिल होगा।
एक्सिओम-4 मिशन के लॉन्च में दो बार देरी हुई। पहले यह 29 मई को निर्धारित था, लेकिन स्पेस एक्स ड्रैगन कैप्सूल में तकनीकी खामी के कारण टाल दिया गया। इसके बाद इसे 8 जून के लिए तय किया गया, किंतु मौसम और प्रक्षेपण वाहन की अंतिम तैयारी के लिए इसे दो दिन और आगे बढ़ाकर 10 जून को किया गया। एक्सिओम स्पेस ने यह पुष्टि की कि मिशन से पहले सभी सुरक्षा और तकनीकी प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया गया।
एक अनूठी यात्रा
लखनऊ में जन्मे और 2006 में वायुसेना में शामिल हुए शुभांशु शुक्ला का अंतरिक्ष तक का सफर प्रेरणादायक है। उनका चयन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के लिए भी एक संयोग मात्र था। एक मित्र के फॉर्म को न भर पाने के कारण शुभांशु ने वह फॉर्म भर दिया और चयनित हो गए। आज वे पूरे देश के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। शुभांशु के शब्द, “मैं केवल उपकरण और वैज्ञानिक सामग्री नहीं, बल्कि 1.4 अरब भारतीयों के सपनों और उम्मीदों को अपने साथ लेकर जा रहा हूं,” न केवल देशभक्ति की भावना से भरे हैं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक पुकार है की बड़ा सोचो, बड़ा करो और राष्ट्र के लिए कुछ करो।
ग्रुप कैप्टन शुक्ला का यह मिशन भारत के लिए सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान, नवाचार और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक लंबी छलांग है। यह मिशन यह संदेश देता है कि भारत न केवल वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय का हिस्सा बन चुका है, बल्कि उसमें नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए भी तैयार है। यह ऐतिहासिक क्षण भारत के युवाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अपने सपनों को आकार देने की प्रेरणा देगा।
क्या है एक्सिओम 4 मिशन ?
एक्सिओम 4 मिशन एक निजी अंतरिक्ष मिशन है, जिसे माइकल सफ्रेडिनी और कमांडर ब्रेंट वर्डेन की कंपनी एक्सिओम स्पेस ने नासा और एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) तक पहुंचने और वहां वैज्ञानिक प्रयोग करने के उद्देश्य से प्रक्षेपित किया है। इस मिशन में भारत, हंगरी, पोलैंड और अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं।
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