प्रेमानंद जी महाराज ने अपने प्रवचन में बताया कि आज का समाज जिस तरह बहुत तेजी से “डिप्रेशन” और “ओवर थिंकिंग” जैसी समस्याओं की ओर बढ़ रहा है, वह वास्तव में विचारों की उलझन का परिणाम है। हम बार-बार सोचते हैं – “ऐसा करेंगे, वैसा होगा, ये पाएंगे, वो करेंगे…” लेकिन केवल सोचने से कुछ नहीं होता। केवल कल्पना से जीवन नहीं बदलता। जीवन बदलता है जब हम अपने कर्तव्य का पालन करते हुए प्रभु का स्मरण करते हैं।
जब हम ‘राधा’ नाम का उच्चारण करते हैं, तो वह केवल एक नाम नहीं होता – वह एक शक्ति होती है, एक अनुभूति होती है। ‘राधा’ नाम हमारे मन को शीतलता प्रदान करता है, विचारों को स्पष्ट करता है और जीवन में स्थिरता लाता है। यह नाम हमारे भीतर के भ्रम, भय और दुःख को मिटाकर आत्मिक उन्नति का मार्ग दिखाता है। सच्चा सुख धन, पद, प्रतिष्ठा या भौतिक साधनों में नहीं होता। सुख हमारे विचारों में होता है। यदि हमारे विचार शुद्ध, सरल और ईश्वरमय हैं, तो नमक रोटी खाकर भी हम आनंदित रहते हैं। लेकिन यदि विचार नकारात्मक, स्वार्थी और भटकाव से भरे हैं, तो चाहे कितना भी वैभव क्यों न हो – जीवन अशांत ही रहेगा।
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स्मरण रखिए, आप केवल स्वयं को जानते हैं, लेकिन जो प्रभु को जानता है, वह संपूर्ण सृष्टि को जानता है। जब आप कर्म कर रहे हों, पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करें। दिन के 18 घंटे कार्य करें लेकिन हर घंटे में एक बार ‘राधा’ नाम अवश्य लीजिए। यह न केवल आपका ध्यान प्रभु से जोड़ेगा, बल्कि आपके कार्य में भी दिव्यता भर देगा। और दिन के अंत में, जब आप थक चुके हों, तो एक मिनट प्रभु के चरणों में हाथ जोड़ें और कहें – “हे प्रभु, आज जो कुछ भी किया, वह आपके चरणों में समर्पित है।” यही है भागवत धर्म – यही है सच्चे परमानंद का मार्ग।
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