राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में गीत गाया जाता है ‘सेवा है यज्ञकुण्ड समिधा सम हम जलें’, परन्तु मोगा का यह सेवा यज्ञकुण्ड कोई सामान्य नहीं बल्कि इसमें बलिदानी स्वयंसेवकों का खून भी हवन का घृत बन समाज में सेवा व बलिदान की अलख जला रहा है। आतंकियों के हाथों बलिदान हुए स्वयंसेवकों के कई परिजन व संघ के स्वयंसेवक इस स्थान पर सेवा के अनेक प्रकल्प चला रहे हैं, जिसको समाज का भी अप्रितम सहयोग व स्नेह मिल रहा है।
मोगा पीडि़त सहायता समिति के अध्यक्ष श्री अनिल बांसल हैं, जिनके पिता श्री गजानन्द जी भी निहत्थे ही आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए। इसके अतिरिक्त सचिव की जिम्मेवारी श्री रामपाल गुप्ता व कोषाध्यक्ष की जिम्मेवारी श्री हितेष गुप्ता जी सम्भाले हुए हैं। समिति के पूर्व अध्यक्ष श्री राजेश पुरी, जिनके पिता श्री वेदप्रकाश पुरी भी बलिदानियों की सूचि में शामिल हैं, ने बताया कि बलिदानियों का रक्त सेवा रूपी ज्योति में तेल सरीखा काम कर रहा है। बलिदानियों का स्वप्न को साकार करने व उनके दृष्टिकोण को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए शहीदी पार्क पर सेवा के अनेक काम शुरू किए गए हैं।
डॉ. राजेश पुरी ने बताया कि शहीदी स्मारक में संघ कार्यायल भी चल रहा है, जो हमारे लिए प्रेरणापुंज है। समिति की ओर से यहां फिजियोथैरेपी केंद्र चलाया जा रहा है, जहां पर मात्र 70/- रुपये लेकर मरीजों का ईलाज किया जाता है। केंद्र में संचालन के लिए एक फिजियोथैरेपिस्ट व एक सहायक की सहायता ली जा रही है। औसतन प्रतिदिन 8 से 10 लोग इस सेवा का लाभ उठा रहे हैं।
शहीदी स्मारक में एक सामुदायिक भवन का निर्माण किया गया है। दो मंजिला इस भवन में नीचे आयोजन के लिए और ऊपर खाने-पीने का सामान बनाने के लिए स्थान दिया गया है। इस सामुदायिक भवन में केवल सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों को ही अनुमति दी जाती है। इसके लिए नामात्र शुल्क लिया जाता है।
स्मारक में एक वाचनालय की स्थापना की गई है। यहां पर दैनिक समाचारपत्रों के साथ-साथ अनेक पत्रिकाएं पढऩे के लिए रखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त सद्साहित्य भी पढऩे के लिए उपलब्ध करवाया जाता है। प्रतिदिन भारी संख्या में लोग यहां आते हैं। इस तरह यह वाचनालय सामाजिक चेतना का केंद्र बन रहा है। डॉ. राजेश पुरी ने बताया कि शहीदी पार्क में आने वालों व आसपास के लोगों के लिए दो वाटर कूलर स्थापित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त भी समय-समय पर समाज सेवा के अनेक प्रकल्प यहां चलाए जाते हैं।
कब हुआ शाखा पर आतंकी हमला..?
पंजाब के मोगा शहर के इतिहास में 25 जून, 1989 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा पर आतंकियों ने हमला कर 25 स्वयंसेवकों व नागरिकों को शहीद कर दिया था। सुबह के समय चहल-पहल के दौरान हुई इस घटना के बाद एक दम हर तरफ मातम पसर गया, जिसने आंखों से यह मंजर देखा वह उसे आज तक नहीं भुला सका।
अगले दिन लगी दोबारा शाखा
डॉ. राजेश पुरी बताते हैं कि आतंकवादियों ने संघ का ध्वज उतारने के लिए कहा था, पर स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया और उनको रोकने का यत्न किया था, पर किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी थी, जिसमें 25 कीमती जानें गई थीं। इस घटना ने न केवल पंजाब में हिंदू-सिख एकता को नवजीवन दिया बल्कि आतंकवाद पर भी गहरी चोट की क्योंकि घटना के अगले ही दिन उस जगह दोबारा शाखा लगी जिससे आतंकियों के हौंसले पस्त हो गए और हिंदू-सिख एकता जीत गई।
क्या हुआ था 25 जून, 1989 के दिन..?
25 जून, 1989 को शहीदी पार्क में भारी संख्या में शहर निवासी सैर के लिए आये थे। रोजाना की तरह उस दिन भी जहां शहरी पार्क में सैर का आनंद ले रहे थे, वहीं दूसरी तरफ संघ स्वयंसेवकों की शाखा भी लगी हुई थी। इस दिन शहर की सभी शाखाएं नेहरू पार्क में एक जगह पर लगी थीं और संघ का एकत्रीकरण था। सुबह 6 बजे संघ का कार्यक्रम शुरू हुआ तो अचानक 6.25 पर सभा को संबोधित कर रहे स्वयंसेवकों पर आतंकवादियों ने आकर हमला कर दिया।
हर तरफ नजर आ रहा था खून ही खून
गोलियों की बरसात रुकने के बाद हर तरफ खून का तालाब दिखाई दे रहा था। घायल स्वयंसेवक तड़प रहे थे। गोलियां लगने के कारण कई स्वयंसेवकों के शरीर भी बेजान हो गये और कईयों ने अस्पताल में जाकर अंतिम सांस ली। इस गोली कांड के दौरान जहां 25 लोग बलिदान हो गए, वहीं शाखा में शामिल लोगों के साथ आसपास के 31 के करीब लोग घायल भी हो गए।
जब निहत्थे दंपत्ति ने आतंकियों को ललकारा
गोली कांड के बाद छोटे गेट से भाग रहे आतंकवादियों को वहां मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओमप्रकाश और छिंदर कौर ने बड़े जोश से ललकारा और पकडऩे की कोशिश की पर एके-47 से हुई गोलीबारी ने उनको भी मौत की नींद सुला दिया और साथ ही आतंकवादियों को पकड़ते समय पास के घरों के पास खेल रहे 2-3 बच्चों में से डेढ़ साल की डिंपल को भी मौत ने अपनी तरफ खींच लिया।
मौत सामने होने के बावजूद भी डटे स्यवंसेवक
इस कांड को देखने वाले एक और जख्मी संघ वर्कर ने बताया कि जब सभा हो रही थी तो अचानक पिछले गेट से भागदौड़ की आवाज सुनाई दी तथा फिर संघ की कार्रवाई चला रहे स्वयंसेवक ने कहा कि देखो छोटे गेट से आतंकवादी आ गए हैं, यह सुनकर सभा में हाजिर निवासियों का ध्यान उस तरफ गया तथा सभी ने जोश से उनका सामना किया।
ध्वज न उतारने पर आतंकवादियों ने किया था फायर
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार आतंकवादियों ने आते ही सभा में संघ के पदाधिकारियों को भगवा ध्वज उतारने के लिए कहा लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया तथा उनको रोकने का प्रयत्न किया लेकिन किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी।
10 साल की उम्र में देखा मौत का मंजर
10 साल की उम्र में गोलीकांड को आंखों से देखने वाले एक नौजवान नितिन जैन ने बताया कि उनका घर शहीदी पार्क के बिल्कुल सामने था तथा रविवार का दिन होने के कारण वह सुबह पार्क में चला गया तथा जैसे ही आतंकवादियों ने धावा बोलकर गोलियां चलानी शुरू कीं तो वह धरती पर लेट गया तथा जब आतंकवादी भाग रहे थे तो सभी ने उनको पकडऩे की कोशिश की तथा मैं भी इसको खेल समझकर भागने लगा, तो एक व्यक्ति ने उसको पकड़ कर घर भेजा। नितिन ने कहा कि चाहे किसी व्यक्ति को 10 वर्ष की उम्र की बातें न याद हों, पर 25 जून, 1988 का रविवार आज भी उसको हर पल दर्द देता हुआ आंखों के सामने शहीद हुए निर्दोष लोगों की याद दिलाता है।
दंगा चाहने वालों के हाथ लगी निराशा
आतंकियों ने तो संघ पर हमला कर हिंदू-सिख एकता में दरार डालने का प्रयास किया ही साथ में कुछ दंगा संतोषियों ने भी कहना शुरू कर दिया कि सिखों ने अब लगाया है शेर की पूंछ को हाथ। इनका तात्पर्य था कि शायद सेक्युलर दल कांग्रेस की भांति संघ भी इसके बाद सदियों पुराने संबंध भुला कर देशभर में सिखों पर टूट पड़ेगा परन्तु शायद वे संघ को समझने में चूक गए।
संघ ने इतनी बड़ी घटना के बाद देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने दिया और अगले ही दिन शाखा लगा कर आतंकियों व देशविरोधी ताकतों को संदेश दिया कि हिंदुओं-सिख एकता को कोई तोड़ नहीं सकता और न ही आतंकवाद पंजाबी एकता को तोड़ सकता। संघ ने आतंकियों के साथ-साथ दंगा संतोषियों को भी निशब्द कर दिया।
25 जून को जख्मी हुआ संघ 26 जून की सुबह ही उसी स्थान पर गुनगुना रहा था ‘कौन कहंदा हिंदू-सिख वक्ख ने, ए भारत माँ दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात् कौन कहता है कि हिंदू-सिख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की बाईं और दाईं आंख के समान हैं। संघ के इस गीत को सुन कर आतंकियों ने भी माथा पीट लिया था।
घटना स्थल बना देशभक्तों का तीर्थस्थान
इस गोली कांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया लेकिन फिर भी संघ के स्वयंसेवकों ने हिम्मत नहीं छोड़ी और अगले ही दिन 26 जून, 1989 को फिर से शाखा लगाई। बाद में नेहरू पार्क का नाम बदल कर शहीदी पार्क कर दिया गया, जो आज देशभक्तों के लिए तीर्थस्थान बना हुआ है।
जानिए बलिदानियों के नाम
इस गोली कांड में बलिदान होने वालों में सर्वश्री लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानंद, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओम प्रकाश और छिंदर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पंडित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह, कुलवंत सिंह शामिल हैं।
गोली कांड में प्रेम भूषण, राम लाल आहूजा, राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीना नाथ, हंस राज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी, राम प्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचंद और कुछ अन्य स्वयंसेवक घायल हुए थे।
नेहरू पार्क से शहीदी पार्क की हुई स्थापना
अगली ही सुबह जब स्वयंसेवकों की ओर से शाखा का आयोजन किया तो उस दौरान बलिदानियों की याद को जीवित रखने के लिए शहीदी स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया। इस कार्य के लिए मोगा पीड़ित मदद और स्मारक समिति का गठन हुआ। शहीदी स्मारक का नींवपत्थर 9 जुलाई को माननीय भाऊराव देवरस द्वारा रखी गयी।
इस स्मारक का उद्घाटन 24 जून, 1990 को प्रो. रजिंदर सिंह रज्जू भैया द्वारा रखा गया। आज भी हर साल शहीदों की याद में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया जाता है। आज भी मोगा पीड़ित मदद और स्मारक समिति के प्रधान श्री अनिल बांसल और अन्य अधिकारियों के सहयोग से अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
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