भुवनेश्वर । कश्मीर के पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों की धार्मिक पहचान पूछकर की गई निर्मम हत्या के जवाब में भारतीय सेना द्वारा चलाए गए सफल सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की वीरता को सम्मानित करने के उद्देश्य से ‘महिला समन्वय, ओडिशा (पूर्व प्रांत)’ की ओर से राजधानी भुवनेश्वर में ‘शौर्य यात्रा’ का आयोजन किया गया।
यह शौर्य यात्रा राजमहल चौक से निकलकर मास्टर कैंटीन चौक तक पहुँची, जहां एक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में दुर्गा वाहिनी की राष्ट्रीय संयोजिका श्रीमती प्रज्ञा माहाला ने कहा कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। लेकिन भारतीय सेना ने जिस साहस और प्रतिबद्धता के साथ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया, वह हर भारतीय के गर्व का कारण है।
उन्होंने कहा कि महिला समन्वय, ओडिशा (पूर्व प्रांत) द्वारा आयोजित इस शौर्य यात्रा के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं। पहला उद्देश्य है — भारतीय सेना को सम्मान देना।दूसरा उद्देश्य है — भारतीय नागरिकों के मन में नागरिक कर्तव्यबोध को जागृत करना। और तीसरा उद्देश्य है — हमारे नेतृत्व पर विश्वास और भरोसा बनाए रखना चाहिए, और यही संदेश हम समाज को देना चाहते हैं।
प्रज्ञा माहला ने यह भी स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि यह भारत की संस्कृति, परंपरा और अस्मिता पर हुए प्रहार का सशक्त उत्तर था। उन्होंने कहा, “भारत अब वह पुराना भारत नहीं रहा जो चुपचाप आतंकी हमलों को सह लेता था। आज का भारत ‘ईंट का जवाब पत्थर से’ देने में सक्षम है। ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित कर दिया है कि हम घर में घुसकर मार सकते हैं।”
उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यह ऑपरेशन भारत की स्वदेशी रक्षा शक्ति का परिचायक बना, जिससे पूरी दुनिया भारत की आत्मनिर्भर सैन्य क्षमता से परिचित हो गई। साथ ही उन्होंने यह जानकारी दी कि हमले के दौरान महिलाओं के पतियों की हत्या धार्मिक पहचान पूछकर की गई थी, जिसके जवाब में महिला सैनिकों ने भी मोर्चा संभाला।
इस अवसर पर सेना विद्यालय की पूर्व प्राचार्या व एसीसी ओडिशा की उपाध्यक्ष श्रीमती सुस्मिता महापात्र मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। सभा का संयोजन श्रीमती दीप्तिमयी नायक ने किया, जबकि श्रीमती प्रज्ञा आचार्य ने अतिथि परिचय एवं श्रीमती प्रियंका जेना ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
यह शौर्य यात्रा न केवल सेना के पराक्रम को सम्मान था, बल्कि भारत की बदलती सैन्य और सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतीक बनी।
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