शिक्षा पर एक संसदीय समिति ने शैक्षिक सामग्री को पक्षपात रहित बनाने पर जोर देते हुए स्कू्लों में पढ़ाए जा रहे इतिहास की समीक्षा करने की सिफारिश की है। समिति ने कहा है कि इतिहास के पाठ्यक्रमों में देश के स्वतंत्रता सेनानियों को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है, उसकी समीक्षा करने की जरूरत है।
समिति ने इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में वेदों से प्राचीन शिक्षा और ज्ञान को शामिल करने का सुझाव भी दिया है। इस बाबत समिति ने मंगलवार को राज्यसभा में एक रिपोर्ट पेश की है। भारतीय इतिहास कांग्रेस (IHC) ने समिति की सिफारिशों का विरोध किया है।
भाजपा सांसद विनय पी. सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली शिक्षा, महिलाओं, बच्चों, युवाओं और खेल पर स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में स्कूली पाठ्यक्रम में सिख और मराठा इतिहास को शामिल करने के साथ पाठ्यपुस्तकों को लिंग समावेशी बनाने की जरूरत पर जोर दिया है। इसमें पाठ्यपुस्तकों में देश के विभिन्न राज्यों व जिलों के गुमनाम स्वनतंत्रता सेनानियों के जीवन को रेखांकित करने का सुझाव दिया गया है, जिन्होंने देश के इतिहास तथा अन्यं पहलुओं पर सकारात्मक प्रभाव डाला है।
साथ ही, कहा गया है कि जिस तरह से देश के विभिन्न हिस्सों के स्वतंत्रता सेनानियों व उनके योगदान को इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में स्थान दिया गया है, उस पर प्रमुख इतिहासकारों से चर्चा और उसकी समीक्षा करने की जरूरत है। इससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अधिक संतुलित और विवेकपूर्ण धारणा बनेगी।
…ताकि विविधता में एकता का भाव प्रदर्शित हो
संसद के दोनों सदनों में पेश स्कूली पाठ्यपुस्ताकों की सामग्री एवं डिजाइन विषय पर संसद के दोनों सदनों में पेश समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाठ्यपुस्तकों में भारत की विविधता में एकता के भाव को प्रदर्शित करना चाहिए। प्राचीन भारत में बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जिनके बारे में बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए। वेद हमारे देश के स्वर्णिम काल को इंगित करते हैं। स्कूली पाठ्यक्रम में वैदिक ज्ञान को शामिल करने से प्राचीन भारत की सामर्थ्य का पता चलेगा। इसके लिए पाठ्यसामग्री तैयार करने वाली टीम को अध्ययन कर जानकारी जुटानी होगी। साथ ही, स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर इनसे जुड़े संबंधों की पहचान भी करनी पड़ सकती है।
समिति की सिफारिशों का विरोध
भारतीय इतिहास कांग्रेस ने समिति की सिफारिशों का विरोध करते हुए कहा है कि समीक्षा प्रक्रिया हमेशा आवश्यक होती है। इसमें पूरे देश के मान्यता प्राप्त विद्वानों को शामिल करने के साथ विभिन्न ऐतिहासिक अवधियों की शोध-आधारित समझ से प्राप्त शैक्षणिक सामग्री पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए।
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