आलोक पुराणिक
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कोरोना से मुरझाई अर्थव्यवस्था के संकेतों के बावजूद रिकॉर्ड स्तर पर है। इसका सीधा अर्थ यह है कि दुनिया के निवेशक यह भरोसा जता रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है और कोरोना के संकट के बावजूद यहां पैसा लगाना सुरक्षित है। दूसरे, इसकी मजबूती यह भी आश्वस्ति देती है कि भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने और आर्थिक हालात को बेहतर करने में सक्षम है
भारत का विदेशी मुद्र्रा भंडार 25 जून, 2021 को समाप्त सप्ताह में 5.066 अरब डॉलर बढ़कर 608.999 अरब डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। 600 अरब डॉलर के पार विदेशी मुद्र्रा भंडार अपने-आप में बहुत बड़ी खबर है, जो इन दिनों कोरोना की खबरों तले दब गई है। गौरतलब है कि विदेशी मुद्रा भंडार का रिकॉर्ड स्तर पर उस वक्त पहुंचना, जब भारत समेत पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है, अपने-आप में बहुत कुछ कहता है। विदेशी मुद्र्रा की मजबूती के कई अर्थ-आशय हैं।
भारत पर भरोसा
भारत में विदेशी मुद्र्रा भंडार का लगातार बढ़ना इस बात का संकेत है कि विदेशी निवेशकों को भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा है कि यह संकट में नहीं आने वाली। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के संकट में आने के दो संकेत होते हैं। एक तो विदेशी निवेश का प्रवाह सूख जाता है और दूसरा संकेत यह होता है कि देश से विदेशी पूंजी बाहर जाने लगती है। तब संकट गहरा जाता है। 1991 का विदेशी मुद्र्रा संकट कुछ इसी किस्म का था। पर कोरोना काल में भारत के मामले में उलटा हुआ है। उसका विदेशी मुद्र्रा भंडार लगातार मजबूत होता गया। विदेशी निवेश आने की लगातार खबरों के साथ नई-नई परियोजनाएं सामने आती रहीं। स्टार्टअप कारोबारों में विदेशी निवेश लगातार बढ़ता गया। कुल मिलाकर विदेशी मुद्र्रा भंडार के मोर्चे पर तो लगा ही नहीं, देश किसी संकट से गुजर रहा है। और हालात यहां सिर्फ सामान्य नहीं रहे, बल्कि बेहतर हुए। 2020 और 2021 में इसी आशय के समाचार आए कि विदेशी मद्र्रा भंडार लगातार मजबूत हो रहा है। भारत पर भरोसे की कई वजहें हैं। दुनिया के स्तर पर यह बात धीरे-धीरे साफ हो रही है कि चीन में निवेश भले ही सस्ता श्रम उपलब्ध करवा दे, पर दीर्घकाल में चीन में निवेश की सुरक्षा को लेकर अनिश्चितता है। भारत जैसे देश में निवेश का आशय है कि यहां बाजार तो चीन की टक्कर का है ही, अनिश्चितता चीन जैसी नहीं है। लोकतंत्र, कोर्ट-कचहरी सब है, इसलिए यहां निवेश को लेकर आश्वस्ति का भाव रहता है।
विदेशी निवेश यानी समग्र सुरक्षा
विदेशी निवेश के कई गंभीर आशय होते हैं। जैसे, अगर सऊदी अरब सरकार से संबंध रखनेवाली कंपनी आमार्को भारतीय कंपनी में निवेश करती है, तो इसका मतलब है कि सऊदी अरब और भारत के राजनयिक और आर्थिक हित कहीं न कहीं एक साथ जुड़ रहे हैं। सऊदी अरब की पाकिस्तान की तरफ बेरुखी इस बात का भी परिणाम है कि एक अर्थव्यवस्था के तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था में सऊदी अरब को ज्यादा बेहतर भविष्य दिखाई पड़ता है। जिस देश में सऊदी अरब का निवेश होगा, उस देश की सुरक्षा के साथ सऊदी अरब के हित जुड़ जाते हैं। अमेरिकी कंपनी वालमार्ट का भारत में निवेश कहीं न कहीं अमेरिका के हितों, भारतीय हितों के साथ संबद्ध करता है। इसलिए विदेशी निवेश सिर्फ धन का मामला न होकर, भरोसे का मामला होता है। यह भरोसा लगातार और ज्यादा भरोसे को जन्म देता है। यानी अगर पांच बड़े देश भारतीय अर्थव्यवस्था में भरोसा जता रहे हैं तो बाकी देश भी भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश को उन्मुख होंगे। इस तरह भारत लगातार वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बनता जाता है। विदेशी मुद्रा भंडार की मजबूती भारत के लिए एक अर्थ यह भी रखती है कि भारत कच्चे तेल के आयात के लिए विदेशों पर निर्भर है। कच्चे तेल के भाव हाल के समय में ऊपर की तरफ गये हैं यानी भारत के पास पहले के मुकाबले ज्यादा तादाद में विदेशी मुद्रा होगी, तो भारत की स्थिति मजबूत रहेगी। विदेशी मुद्रा भंडार तब मजबूत होता है, जब विदेशी निवेशकों को उम्मीद होती है कि स्थिति बेहतर होगी या उतनी खराब न होगी, जितनी आशंका व्यक्त की जा रही थी।
विदेशी निवेश उद्योगों में भी और शेयर बाजार में भी
मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक एक साल में (6 जुलाई 2021, दोपहर करीब दो बजे की गणना के आधार पर) करीब 45 प्रतिशत ऊपर जा चुका है। इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक यह करीब 11 प्रतिशत ऊपर जा चुका है। इस तेजी में विदेशों से आई रकम का योगदान है। दुनिया भर के निवेश विकल्पों में भारतीय शेयर बाजारों को आकर्षक विकल्प के तौर पर चिन्हित किया जा रहा है। यानी भारत में निवेश करके धन कमाया जा सकता है, जब कोई अर्थव्यवस्था यह भरोसा जगाने में कामयाब हो जाती है, तो विदेशी निवेश से विदेशी मुद्र्रा की स्थिति लगातार बेहतर होती जाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था यह भरोसा जगाने में कामयाब हो गई है। यह भरोसा शेयर बाजार के सूचकांक के लगातार ऊपर जाने से साफ होता है। पर विदेशी मुद्रा भंडार के मजबूत होने का आशय यह नहीं है कि समूची अर्थव्यवस्था का हाल मजबूत हो गया है। अर्थव्यवस्था के सामने कई चुनौतियां हैं और उन पर काम करने की जरूरत है। पर मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार एक संकेत साफ दे रहा है कि कम से कम आयात के मोर्चे पर चिंता की जरूरत नहीं है। यानी आप अपनी जरूरतें पूरी करने, साथ ही भविष्य को बेहतर बनाने के लिए निवेश करने में सक्षम हैं।
संकट और विदेशी मुद्रा भंडार का रिश्ता
इतिहास बताता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर जब भी गंभीर संकट आये हैं, मूलत: वे विदेशी मुद्र्रा भंडार के ही संकट रहे हैं। 1991 में जिन संकटों की वजह से आर्थिक सुधार की प्रक्रिया शुरू की गयी, वह संकट मूलत: विदेशी मुद्र्रा भंडार का ही संकट था। भारत के विदेशी मुद्र्रा भंडार की हालत इतनी खस्ता थी कि सरकार को सोना गिरवी रखना पड़ा। यानी भारतीय अर्थव्यवस्था पर विदेशी संस्थानों और सरकारों को भरोसा नहीं था। अब स्थिति यह है कि भारत सरकार तो अलग, भारत की शीर्ष कंपनियां भी विदेशी बाजारों से सस्ती दर पर कर्ज लेकर आ रही हैं। कई बड़ी कंपनियों ने अपनी साख के आधार पर विदेशी बाजारों से सस्ती ब्याज दर पर कर्ज हासिल किया है और अपनी बहीखातों को कर्जमुक्त किया है। कर्जमुक्त कंपनी की स्थिति कर्जमुक्त देश जैसी ही होती है, जिसमें संसाधन ज्यादा उपलब्ध होते हैं। भारतीय कंपनियां अपनी मजबूती, अपने देश की मजबूती के आधार पर विदेशी संसाधन ला रही हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत स्थिति में है। इसलिए दूर-दूर तक किसी संकट की आशंका नहीं है, कोरोना के बावजूद। यह सुखद स्थिति है। दुनिया भर की तमाम अर्थव्यवस्थाएं कोरोना की वजह से संकट में आ गई हैं। संकट तो भारत में भी है, पर भारतीय अर्थव्यवस्था उससे पार पाने में सक्षम है।
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