डॉ. हितेश व्यास
देश ने कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता को बड़े करीब से देखा। एक-एक सांस को संघर्ष करते उन लोगों को भी देखा जो चीख और चित्कार रहे थे। लेकिन दूसरी ओर इस दुखद घड़ी में कुछ ऐसे भी लोग थे जो समाज की पीड़ा हरने के लिए हरेक जतन करते दिखाई दिए। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के संजय राय 'शेरपुरिया' ऐसे ही व्यक्ति हैं, जिन्होंने इस कठिन विपदा में न केवल अपने लोगों की हर सम्भव मदद बल्कि असल मायने में मानवता का फर्ज निभाया
उत्तर प्रदेश के जनपद गाजीपुर के शेरपुर गांव की माटी का एक लाल मात्र 17 वर्ष की छोटी उम्र में जीवन को नयी दिशा देने के उदेश्य से गुजरात के लिए निकला था। आज उस युवा ने 33 वर्ष के लंबे संघर्ष दिन- रात की कड़ी मेहनत के बाद अपनी दूरदृष्टि , बेहतरीन व्यापारिक रणनीति की बदौलत गुजरात जाकर एक बहुत बड़ा औद्योगिक घराना तैयार कर लिया है। आज इस घराने का देश-विदेश में बहुत बड़ा व्यापार है। वह युवा आज बेहद सम्मान के साथ संजय राय 'शेरपुरिया' के नाम से जाना जाता है, जिसकी गिनती गुजरात के दिग्गज उद्योगपतियों में होती। सनातन धर्म की परंपराओं को अक्षरशः अपने जीवन में उतारने वाले संजय राय का हमेशा अपनी जन्मभूमि से विशेष लगाव रहा है। जिंदगी में परिस्थिति कैसी भी रही हो लेकिन वे कभी अपने गृह जनपद गाजीपुर को नहीं भूले। इसी विशेष लगाव की वजह से हमेशा अपने गृह जनपद के लिए कुछ ना कुछ जनहित व सामाजिक दायित्व का निर्वहन निरंतर करते रहते हैं। वैसे वह अपने जनपद में काम करने वाली 'यूथ रूरल इंटरप्रेन्योर फाउंडेशन' के चेयरमैन भी हैं, जो कि गाजीपुर में विभिन क्षेत्रों में लगातार कार्यरत है। लेकिन जब से देश में कोरोना काल शुरू हुआ है तब से वे व्यक्तिगत रूप से बड़ी खामोशी के साथ निरंतर हर संभव मदद करके उनके जीवन को बचाने के लिए प्रयास करते रहे।
संजय राय 'शेरपुरिया' ने जब भारत व विदेशी मीडिया चैनलों पर गंगा में तैरते हुए मानव शवों की खबरों को देखा तो वह बहुत विचलित हो गये। उन्होंने तत्काल ही संकल्प लिया कि जनपद गाजीपुर में गंगा स्थित श्मशान घाटों पर जाकर वह स्थिति को देखकर शवों के दाहसंस्कार की उचित व्यवस्था करेंगे। उन्होंने सभी श्मशान घाटों पर लकड़ी की कमी को देखा, क्योंकि कोरोना महामारी के भयावह काल के चलते लोगों की बहुत अधिक मौतें हो रही थीं। इससे श्मशान घाटों पर लकड़ी का जबरदस्त अभाव हो गया था। इस परेशानी को देखते हुए उन्होंने तुरंत निदान करने के लिए श्मशान घाटों पर लकड़ी की कमी से कोई व्यक्ति शव को गंगा में यूं ही न फेके। इसलिए गाजीपुर में श्मशान घाट पर ‘लकड़ी बैंक’ बनाया। जिसमें कोई भी व्यक्ति लकड़ी दान कर सकता है। साथ ही जरूरतमंद व्यक्ति को निशुल्क लकड़ी लेकर अपनों के शव का अंतिम संस्कार पूरे विधि और सम्मान के साथ कर सकता है। फाउंडेशन की ओर से जिले के दस श्मशान घाटों पर लकड़ी बैंक खोला गया है। जिसके लिए बकायदा रोड मैप तैयार किया। सभी जगह के लिए व्यक्ति भी नियुक्त किए गए। इन सभी जगहों से निर्धन लोगों के शव के अंतिम संस्कार के लिए निशुल्क लकड़ी दी गयी। इस सबसे गाजीपुर में लकड़ी की कालाबाजारी पर तो लगाम लगी ही साथ ही अग्नि संस्कार करने में लकड़ी की दिक्कत का समाधान हो गया।
बता दें कि संजय का समाज सेवा का क्षेत्र सिर्फ गाजीपुर तक ही सीमित नहीं रहा, वरन वह देश के विभिन्न हिस्सों में समाजसेवा का कार्य कर रहे हैं। वह लंबे समय से विभिन्न देशों से आए हिन्दू शरणार्थियों के जीवन को सरल बनाने के लिए काम कर रहे हैं. दिल्ली स्थित मजलिस पार्क महाराणा प्रताप बस्ती में पाकिस्तान से आए हुए हिन्दू शरणार्थियों की देख-रेख का जिम्मा भी संजय राय 'शेरपुरिया' के हाथ में है।
लेकिन कोरोना की दूसरी भयावह लहर में जब उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में धरातल पर बन रहे चिंताजनक हालात देखें, तो उन्हें अपने गृह जनपद गाजीपुर की याद आयी। उन्होंने तत्काल दवाई, इंजेक्शन, कोरोना जांच किट समेत इलाज के लिए आवश्यक अन्य सभी प्रकार की जरूरतमंद मेडिकल उपकरणों से युक्त चिकित्सा वाहनों का बंदोबस्त करके उन्हें भेजा और अपने लोगों की मदद करके ना जाने कितने लोगों का अनमोल जीवन बचाया। गाजीपुर के जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह को एवं जिले की सामाजिक संस्थाओं को 200 से ज्यादा ऑक्सीजन कंसॉन्ट्रेटर उपलब्ध कराये। जिले के पुलिसकर्मियों के इलाज के लिए पुलिस लाइन में चल रहे अस्पताल के लिए दवाई , ऑक्सीजन व कन्संट्रेटर उपलब्ध कराए। अपने "जीवन बचाओ अभियान" के तहत उन्होंने यूपी रोडवेज के कर्मचारियों, चालक व परिचालकों को कोरोना की दवाएं और ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर वितरित किये। इसी तरह कचहरी में बार एसोसिएशन, अधिवक्ता परिषद एवं अन्य कर्मचारियों की निःशुल्क कोरोना जांच व वैक्सिनेशन तथा दवा वितरण कैम्प का आयोजन करवाया।
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