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अमेरिकी प्रशासन ने नया आदेश जारी कर छह मुस्लिम देशों के लोगों की यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि पहले आदेश में प्रतिबंधित देशों की सूची में इराक भी था। लेकिन इस बार इराक को शामिल नहीं किया गया है
ललित मोहन बंसल
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा छह मुस्लिम देशों के खिलाफ रोक लगाने संबंधी 5 मार्च के कार्यकारी आदेश पर फिर हलचल मच गई है। इस नए आदेश में जिन छह देशों के लोगों पर यात्रा प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें सीरिया, ईरान, यमन, लीबिया, सोमालिया और सूडान शामिल हैं। हालांकि इस आदेश में उन देशों के लोगों को आदेश की परिधि से बाहर रखा गया है, जो गत वर्ष 27 जनवरी में जारी शासकीय आदेश की तिथि से पहले अमेरिकी नागरिकता या स्थायी निवासी होने के लिए ग्रीन कार्ड हासिल कर चुके हैं। हालांकि नए आदेश में मुस्लिम या कट्टर इस्लामीकरण का उल्लेख नहीं किया गया है। यह आदेश दस दिन के बाद यानी 16 मार्च को लागू होगा।
इराक पर प्रतिबंध क्यों नहीं?
अदालती हस्तक्षेप से बचने के लिए इसमें मजहब विशेष को कठघरे में खड़ा करने के बजाए गत जनवरी के पहले आदेश की भाषा और भाव में बदलाव किया गया है। यूं कहा जाए कि नए आदेश में मजहबी प्राथमिकताओं के बजाए शरणार्थी मुद्दे को उठाया गया है, तो गलत नहीं होगा। कहा जा रहा है कि इस आदेश का लाभ सीरिया के पीड़ित ईसाइयों को मिल सकता है, जो बतौर शरणार्थी आवेदन करेंगे। हालांकि नए शासकीय आदेश में इराक को प्रतिबंध से मुक्त रखा गया है। इसके पीछे अमेरिकी हित बताए जाते हैं। अमेरिका का उद्देश्य मध्यपूर्व में ईरान और सऊदी अरब के बीच प्रभुत्व की जद्दोजहद में सऊदी अरब के हाथ मजबूत करने के साथ इस्रायल की मदद करना है। यहां भी अमेरिका ने मूल में आतंकी शक्तियों को दूर रखते हुए मध्यपूर्व में अपने पांव जमाने के संकेत दिए हैं। इराक को इस आदेश से बाहर रखने के पीछे 10 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इराक के प्रधानमंत्री हैदर अल-आबदी के बीच सीधी बातचीत को भी एक कारण माना जा रहा है। हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा रहा है कि प्रतिबंध से इराक को बाहर रखने के लिए ट्रंप पर अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन, रक्षा मंत्री जिम मैटिस तथा सुरक्षा सलाहकारों का भी दबाव था। विदेश मंत्री टिलरसन ने जोर देते हुए ट्रंप से कहा था कि इराकी सेनाओं ने इस्लामिक स्टेट से निबटने में अमेरिकी सेनाओं का भरपूर साथ दिया है। इराकी जांबाजों ने ईरान की मदद से टिके कुर्द हमलावरों के कब्जे से अपने दूसरे बड़े शहर मोसुल को मुक्त कराया है। इस पर ट्रंप ने विदेश मंत्री से शासकीय आदेश की भावनाओं के अनुरूप इराक को आतंकियों के मामले में दी गई प्रश्नावली पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था।
इस बार ट्रंप ने संशोधित आदेश जारी करते समय न तो इसे महिमामंडित किया और न इस बात की भनक लगने दी कि इराक को प्रतिबंध से मुक्त किया जा रहा है। वैसे इराक को प्रतिबंध से मुक्त रखे जाने की वकालत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एच.आर. मेकमास्टर ने भी की थी। इस आदेश को लेकर डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टी ने आपतियां दर्ज कराई हैं। उनका कहना है कि ताजा आदेश में नया कुछ भी नहीं है।
निशाने पर ‘उत्साही’ जज
हालांकि नए आदेश पर अभी तक किसी अदालत ने रोक नहीं लगाई है, लेकिन न्याय विभाग के प्रमुख जेफ सेशंस ने सान फ्रांसिस्को और सिएटल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के उन ‘उत्साही’ फेडरल जजों को आड़े हाथों लिया है, जिन्होंने मजहब विशेष के नाम पर पहले आदेश में नुक्ताचीनी करते हुए उस पर रोक लगा दी थी। इस पर ट्रंप प्रशासन की बड़ी फजीहत हुई थी। इस अवसर पर जेफ सेशंस द्वारा आगाह किए जाने का मतलब स्पष्ट है।
नए आदेश का मतलब
इस बार आदेश को अदालती हस्तक्षेप से सीधे तौर पर बचाने के लिए इसे मुस्लिम या मजहब विशेष की परिधि से बाहर रखा गया है। इसमें अमेरिका में प्रवेश करने के इच्छुक उत्पीड़ित अल्पसंख्यक आवेदक को बतौर एक शरणार्थी के रूप में विचार किए जाने की बात की गई है। साथ ही, फेडरल एजेंसियों को छूट दिए जाने का आदेश है, जिन्हें अमेरिका में काम करते हुए अथवा पढ़ाई, खास कर मेडिकल की पढ़ाई करते हुए एक अरसा बीत चुका है। इसमें कारोबारियों और पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करने वालों को भी विवेक के आधार पर निर्णय लेने की छूट दी गई है। इमीग्रेशन नेशनल एक्ट के अंतर्गत अमेरिकी राष्ट्रपति को राष्ट्रीय सुरक्षा में बाधक अथवा खतरा बने हुए किसी भी व्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने की छूट मिली हुई है। ट्रंप बार-बार इस छूट की ओर इशारा भी करते रहे हैं, लेकिन संविधान में इस बात का भी उल्लेख है कि राष्ट्रपति को किसी एक धर्म विशेष पर चोट करने का अधिकार नहीं है। पिछले आदेश में ऐसा करना ही टंÑप को भारी पड़ा था। अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन और डिपार्टमेंट आॅफ होमलैंड सिक्योरिटी (डी.एच.एस.) सचिव जॉन कैली और अटॉर्नी जनरल जेफ सेशंस ने मीडिया में इस आदेश के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि प्रशासन की ओर से उन देशों को चिह्नित किया गया है जो ‘स्टेट स्पांसर’ आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं अथवा ऐसे देश जो आतंकवाद से निबटने में अपना नियंत्रण खो चुके हैं। यहां आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले पाकिस्तान को ‘स्टेट स्पांसर’ आतंकवादी देशों की सूची में नहीं रखे जाने पर अमेरिका ने कोई कदम क्यों नहीं उठाया? इसके लिए भारत मेें ही नहीं, अमेरिकी कांग्रेस के अंदर और बाहर अनेक बार सवाल उठे हैं। इस पर जानकारों का मत है कि अमेरिका के लिए अफगानिस्तान गले की हड्डी बना हुआ है और इस्लामिक देशों की जबरदस्त लॉबिइंग के चलते अमेरिकी राजनेता खास कर ट्रंप प्रशासन चाह कर भी कोई कड़ा कदम नहीं उठा पा रहा है।
ईरान के खिलाफ मित्र देशों पर दबाव
अमेरिका, खासकर ट्रंप प्रशासन के लिए इन दिनों ईरान आंख की किरकिरी बना हुआ है। मध्यपूर्व में प्रभुत्व की लड़ाई में राष्ट्रपति ट्रंप का इस्लामिक देशों में सऊदी अरब से अपनी पहली यात्रा शुरू कर आपसी संबंधों को प्रगाढ़ करने का संकेत देना, ईरान के साथ आण्विक समझौता खत्म करने के लिए इस समझौते में शामिल मित्र देशों पर दबाव डालना और आतंकवाद के लिए ईरान पर हिजबुल्ला, हमास और अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों की आर्थिक मदद के साथ उन्हें प्रश्रय देने के आरोप हैं। कहा जा रहा है कि अल कायदा से संबंधों के कारण ईरान अपनी जड़ें दक्षिण एशिया में, खासकर अफगानिस्तान में जमा रहा है। ईरान पर यमन में भी आतंकियों की मदद करने के आरोप लगते रहे हैं। ल्ल
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