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सात दिवसीय राष्ट्रीय रामायण मेले में केसरिया पताकाओं से सुसज्जित अयोध्या धाम परिसर पूरे ग्वालियर अंचल में एक संस्कार अभियान की तरह अमिट छाप छोड़ गया
राष्ट्रीय रामायण मेला, ग्वालियर के मंच पर देश के श्रेष्ठ संतों की उपस्थिति और विशाल तुलसी मंडप में अपने मस्तक पर रामचरितमानस धारण किये रामभक्तों का अपार जनसमूह, संतों की ओर से संकल्प विधि की घोषणा और इसको दोहराते हजारों नर-नारी, ‘मैं संकल्प करता/करती हूं कि नित्य रामचरितमानस के कम से कम दो दोहों का पारायण करूंगा/करूंगी’। किसी कुम्भ मेले के बड़े अखाड़े की तरह केसरिया पताकाओं से सुसज्जित अयोध्या धाम परिसर एक सप्ताह में पूरे ग्वालियर अंचल में एक संस्कार अभियान की तरह अमिट छाप छोड़ गया।
भारत में चित्रकूट और अयोध्या के बाद अपने प्रकार के इस अनूठे रामायण मेले में देश के विभिन्न भागों से आए श्रद्धालुओं ने भी हिस्सा लिया। 23 फरवरी को लगभग एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने महाप्रसाद ग्रहण किया। यह सब देखकर कहा जा सकता है कि यह मेला ग्वालियर-चम्बल अंचल में आस्तिकता के पुनर्जागरण का कीर्तिमान बना गया। दरअसल मेले में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और उनके आदर्शों को जिस प्रकार प्रस्तुत किया गया, उससे लोगों ने यह महसूस किया कि दुनिया में लोग भगवान राम और उनके आदर्शों से जुड़ रहे हैं। अगर बात ग्वालियर अंचल की करें तो बिड़ला समूह द्वारा 25 वर्ष पूर्व इस तरह का धार्मिक आयोजन कराया जाता था। बीच में यह बंद रहा पर अब फिर से नए कलेवर में शुरू हुआ है। 17 से 23 फरवरी तक देशभर से साधु-संत, राम कथाकार और मानस मर्मज्ञ ग्वालियर में जुटे। इस दौरान 51 ब्राह्मणों के द्वारा प्रतिदिन आनुष्ठानिक रामायण पाठ, मानस सम्मलेन, रामकथा, रामलीला, प्रदर्शनी, कलश यात्रा और अंत में नित्य मानस पारायण का संकल्प हुआ।
इन सात दिनों में सबसे विशिष्ट उपस्थिति रही जगद्गुरु रामभद्राचार्य और राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास जी महाराज की। रामजन्मभूमि आन्दोलन से जुड़े संत रामभद्राचार्य ने अपनी भावना व्यक्त की कि आने वाले 6 दिसंबर तक श्रीराम मंदिर का निर्माण होता हुआ दिखेगा। रामायण मेले के समापन पर श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्यगोपाल दास महाराज ने इस मेले को प्रति वर्ष आयोजित करने की उद्घोषणा की। दरअसल मेले की संकल्पना बजरंग दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और विहिप के नेता रहे श्री जयभान सिंह पवैया की है। बकौल श्री पवैया,‘‘ इस तरह के आयोजन की आकांक्षा कई वर्ष पहले की है। अब यह साकार हुई है।’’
दरअसल यह तीसरा राष्ट्रीय रामायण मेला है। इसके पहले रामायण मेला के आयोजन की परिकल्पना समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने सन् 1961 में की थी। इसी के तहत 1973 में पहली बार उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने चित्रकूट में रामायण मेला आयोजित किया था। बाद में 1982 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र ने अयोध्या में रामायण मेले की शुरुआत की। यहां यह उल्लेख जरूरी है कि जहां डॉ. राममनोहर लोहिया ने आनंद, प्रेम और शांति के आह्वान के साथ रामायण मेला आयोजित करने की कल्पना की थी, वहीं अयोध्या में शुरू होने वाला रामायण मेला अयोध्या के विकास के लिए था। किन्तु इस तीसरे राष्ट्रीय रामायण मेले का उद्देश्य और भी अधिक व्यापक और धारदार जान पड़ता है। राष्ट्रीय रामायण मेला के आयोजन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक श्री अरुण जैन एवं भाजपा के संगठन मंत्री सुहास भगत समेत राज्य सरकार के अनेक मंत्री उपस्थित थे। मेले में प्रतिदिन 35,000 से 40,000 भक्तों की उपस्थिति रही।
पाञ्चजन्य ब्यूरो
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