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भारतीय चित्र साधना के तत्वावधान में दूसरी बार आयोजित फिल्म महोत्सव में भारत और भारतीयता की झलक दिखी। फिल्मकारों ने फिल्मों के जरिए अपनी माटी की विशेषताऔर खुशबू को प्रसारित करने पर दिया बल
आदित्य भारद्वाज
दिल्ली के सीरीफोर्ट आॅडिटोरियम में 19 से 21 फरवरी तक भारतीय चित्र साधना की देखरेख में तीन दिवसीय फिल्म महोत्सव आयोजित हुआ। लेकिन अन्य फिल्म महोत्सवों के मुकाबले इस महोत्सव के रंग जरा अलग थे। यहां भी फिल्मी सितारे और फिल्म जगत के दिग्गज पहुंचे थे, लेकिन उनका ध्येय था सिनेमा में भारतीयता और भारत को बढ़ावा देना। यहां जो भी पहुुंचा, एक सोच लेकर पहुंचा। महोत्सव में भारत और भारतीयता को दर्शाती फिल्मों को दिखाया गया। भारतीय चित्र साधना का यह दूसरा महोत्सव था। इससे पहले 2016 में इंदौर में फिल्म महोत्सव का आयोजन हुआ था। महोत्सव के संदर्भ में प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे. नंदकुमार ने बताया, ‘‘हमारे पूर्वजों ने कहा है कि कला के द्वारा मुक्ति मिलनी चाहिए। कला की हर विधा से आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है, संस्कार का निर्माण होता है। भारतीय फिल्मों की शुरुआत इसी उद्देश्य को लेकर हुई थी। दादा साहब फाल्के ने पहली फिल्म ‘हरीशचंद्र’ का निर्माण किया था। उसके केंद्र में भी भारतीयता थी, ताकि फिल्म देखने वालों के मन में ऐसा भाव आए। बहुत समय तक भारतीय फिल्में इसी तरह के उद्देश्यों को लेकर आगे बढ़ीं। लेकिन इन दिनों इस तरह की फिल्में बहुत कम देखने को मिलती हैं। भारतीयता के नाम पर फिल्मों में कुछ नहीं होता। यह केवल हिंदी फिल्मों की बात नहीं है, बल्कि प्रादेशिक फिल्मों का भी यही हाल है।’’ उन्होंने बताया, ‘‘फिल्मों की ऐसी स्थिति देखकर हमने कुछ कला साधकों से बात की। साथ बैठे और विमर्श किया। भारत और भारतीयता को दिखाने वाली फिल्मों को बढ़ावा मिले। इसलिए भारतीय चित्र साधना नाम से एक न्यास बनाया गया और पहला फिल्म महोत्सव 2016 में इंदौर में हुआ।’’
श्री कुमार ने बताया, ‘‘महोत्सव में फिल्में मंगवाने से पहले स्पष्ट कर दिया गया था कि यह महोत्सव बाकी फिल्म महोत्सवों से अलग है। यह महोत्सव एक विचार को लेकर किया गया। महोत्सव में जो भी फिल्में आर्इं, वे किसी न किसी विचार को दर्शाने वाली थीं।’’
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने 19 फरवरी को महोत्सव का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे महोत्सव का बड़ा महत्व है। खास कर छोटी फिल्म बनाने वाले निर्माताओं को भारतीय साहित्य, भारतीय संस्कृति के बारे में जानना बेहद जरूरी है।’’
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने कहा, ‘‘फिल्म की सफलता का मापदंड समाज पर उसका सकारात्मक प्रभाव होता है बजाए इसके कि 100-200 करोड़ कमाई के क्लब में शामिल होना।’’
चित्र साधना के चेयरमैन श्री आलोक कुमार ने कहा, ‘‘भारतीय मूल्यों और सामाजिक सरोकार से जुड़ी फिल्मों और इस तरह की फिल्में बनाने वाले लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए इस महोत्सव का आयोजन किया गया।’’ सुदीप्तो सेन, सुभाष घई, प्रियदर्शन और मधुर भंडारकर जैसे फिल्म निर्देशकों ने महोत्सव में आए फिल्म निर्माताओं को फिल्म निर्माण के तरीके और
बारीकियां बतार्इं।
सुभाष घई ने नए फिल्मकारों के साथ बातचीत करते हुए कहा, ‘‘ मन में सिनेमा के ज्ञाता होने का भाव लाना सही नहीं है। सिनेमा की दुनिया में हमें जीवनभर सीखना पड़ता है। मैं भारतीय हूं और हमेशा भारत और इसकी संस्कृति को ध्यान में रखते हुए ही फिल्म बनाऊंगा। चित्र भारती ने जो प्रयास किया है, वह सराहनीय है। हम जिस भाषा के हैं उस भाषा में फिल्म बनाएं क्योंकि हम उस भाषा के भाव को समझते हैं।’’ सुदीप्तो सेन ने कहा, ‘‘फिल्मों में भारतीय संस्कृति की झलक दिखे और हमारी विविधता में एकता का जो भाव है, उसे फिल्मों में जगह मिले। इसके लिए काम करने की जरूरत है।’’ मशहूर फिल्म अभिनेत्री एवं भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने कहा, ‘‘हिंदी और भारतीय संस्कृति को विश्व पटल पर अवगत कराने में हिंदी सिनेमा एक सशक्त माध्यम है। सार्थक संदेश देने वाली फिल्मों का ज्यादा से ज्यादा निर्माण करने की जरूरत है।’’ फिल्म अभिनेता अर्जुन रामपाल ने कहा, ‘‘भारत में सबसे ज्यादा फिल्में बनती हैं, लेकिन आॅस्कर की दौड़ में हम पिछड़ जाते हैं क्योंकि हम विदेशों की नकल करते हैं। जो लोग अपने देश की संस्कृति और समाज को मौलिक रूप से प्रस्तुत करते हैं उनकी फिल्में अंतरराष्ट्रीय जगत में सराही जाती हैं और पुरस्कृत भी होती हैं। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम इस तरह की
फिल्में बनाएं।’’
मधुर भंडारकर ने कहा, ‘‘मैं कम बजट में अच्छी फिल्में बनाने में विश्वास रखता हूं।’’ उन्होंने अपनी फिल्म ‘इंदू सरकार’ का उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘जब इस फिल्म का विरोध हो रहा था तो पुरस्कार वापस करने वाले लोग खामोश क्यों थे? उन्होंने उस समय क्यों नहीं कहा कि यह अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है।’’
दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और प्रसिद्ध भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी ने कहा, ‘‘सिनेमा में धैर्य सबसे बड़ी चीज होती है, यदि आप निराश हुए तो फिर सफलता से उतने ही दूर हो जाते हैं।’’
21 फरवरी को फिल्म महोत्सव में विभिन्न श्रेणियों में आर्इं फिल्मों को पुरस्कृत किया गया। फिल्म निदेशक सुभाष घई, फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी, संगीतकार बाबुल सुप्रियो, विक्टर बनर्जी, पटकथा लेखक के.वी. विजयेंद्र प्रसाद, यू.वी. कृष्णन राजू, मनोज तिवारी और स्पाइस जेट के चेयरमैन अजय सिंह ने विजेताओं को सम्मानित किया। भारतीय संस्कृति और उसके मूल्य, राष्ट्रीय और सामाजिक जागरण, सकारात्मक कार्य, लोककला, पर्यावरण, सामाजिक समरसता और नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा देने वालीं फिल्मों को पुरस्कृत किया गया।
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार तेलुगू लघु फिल्म ‘कलारंगम’ के लिए संजय को दिया गया। समिधा गुरु को मराठी लघु फिल्म ‘अनाहूत’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। इसी फिल्म के लिए उमेश मोहन बागडे को सर्वश्रेष्ठ फिल्म निर्देशक का चित्र भारती पुरस्कार प्रदान किया गया। एनीमेशन फिल्म की श्रेणी में ‘सोल्जर्स अवर सुपर हीरोज’ के लिए अमृत और दीपक कुमार को सर्वश्रेष्ठ एनीमेशन फिल्म पुरस्कार दिया गया। सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेट्री फिल्म के लिए ‘आई एम जीजा’ की निर्देशक स्वाति चक्रवर्ती को चित्र भारती पुरस्कार दिया गया। सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार ‘ड्रीम्स आॅन व्हील’ फिल्म के लिए वेदिका शुक्ला को दिया गया। गरेन वार्जरी पनोर को फिल्म ‘1633 कि.मी.’ के लिए और ‘दो घंटे की बात’ फिल्म के लिए पूजा पांडे को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्रदान किया गया।
इस अवसर पर सुभाष घई ने कहा, ‘हिंदी फिल्मों के लिए प्रयोग किया जाने वाला ‘बॉलीवुड’ शब्द वास्तव में अपमानजनक है। इस शब्द का पहली बार प्रयोग लंदन में बीबीसी टेलीविजन चैनल वालों ने 1987 में उनकी फिल्म ‘रामलखन’ की प्रीमियर पार्टी के दौरान किया था कि यहां हॉलीवुड की हर चीज की नकल होती है, इनके पास अपना कुछ नहीं है। एक-डेढ़ साल के बाद ‘बॉलीवुड’ एक मजाक बनते-बनते एक शब्द बन गया। फिर इसको मीडिया ने चलन में ले लिया। फिर अंतरराष्टÑीय स्तर पर लोगों ने और आज हमारे मार्केटिंग वालों ने उसको एक ब्रांड बना दिया है।’’ उन्होंने आह्वान किया, ‘‘हम अपने हिंदी सिनेमा, गुजराती सिनेमा, तमिल सिनेमा, बंगला सिनेमा को भारतीय सिनेमा कहें, न कि ‘बॉलीवुड’, ‘टॉलीवुड’ जैसे शब्दों का प्रयोग करें।’’
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने कहा, ‘‘लुप्त होती भाषा, लोक संगीत, लोक गीत, परंपरा को बचाना, हम सबकी जिम्मेदारी है। शब्द बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। नए शब्द आ जाएं इससे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन एसएमएस जैसे शब्द, जो हमारे संदेश शब्दों की हत्या करके आते हैं, उनके बारे में हमें सोचने की आवश्यकता है। हम ऐसी शब्दावली चाहते हैं जिसमें नए-पुराने दोनों शब्द सहभागी रहें।’’
अभिनेता विक्टर बनर्जी ने कहा, ‘‘सांस्कृतिक रूप से भारत में एकरूपता है, लेकिन कई बार हमारे नेता हमें भ्रमित करते हैं। मेरी दृष्टि में यह ‘यूनाइटेड स्टेट्स आॅफ इंडिया’ है। यह विविधताओं से भरा है, किंतु सांस्कृतिक रूप से एक राष्ट्र है जिस पर हम सभी को गर्व है। चित्र भारती फिल्म महोत्सव एक बहुत अच्छी शुरुआत है। भारत की विविधता भरी संस्कृति, लोक-जीवन, लोक-परंपराओं तथा मूल्यों को विश्व के जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास यह चित्र भारती फिल्म उत्सव कर रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इस समय फिल्मों में भारत की सांस्कृतिक विरासत को आगे ले जाने में दक्षिण भारत की फिल्मों का योगदान सर्वाधिक है, इसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं। उन्होंने अभी तक अपनी परंपरा और संस्कृति को सहेज कर रखा हुआ है। शेष भारत को भी इसे बचाने के लिए आगे
आना होगा।’’ इस महोत्सव का संदेश यही रहा कि अब अनेक फिल्मकार भारतीयता को पुष्ट करने वाली फिल्में बनाने के लिए तैयार हो रहे हैं। आने वाले समय में निश्चित रूप से इस महोत्सव का महत्व बढ़ेगा।
भारत की आत्मा साहित्य में बसती है। फिल्मकार यदि भारतीय साहित्य से परिचित होंगे तो फिल्मों में भारतीयता का भाव लाना उनके लिए सुलभ होगा।
-स्मृति ईरानी
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री
उपभोक्तावाद का असर फिल्मों पर भी पड़ा है। इस कारण धीरे-धीरे भारतीय फिल्मों से भारतीयता गायब होती गई। भारतीयता को पुनस्स्थापित करने का जो बीड़ा भारतीय चित्र साधना ने उठाया है वह सराहनीय है।
– मनोहरलाल, मुख्यमंत्री, हरियाणा
फिल्म ‘हरीशचंद्र’ के केंद्र में भारतीयता थी, ताकि फिल्म देखने वालों के मन में ऐसा भाव आए। बहुत समय तक भारतीय फिल्में इसी तरह के उद्देश्यों को लेकर आगे बढ़ीं। लेकिन इन दिनों इस तरह की फिल्में बहुत कम देखने को मिलती हैं।
-जे. नंदकुमार, राष्टÑीय संयोजक, प्रज्ञा प्रवाह
जो फिल्में वैचारिक विमर्श के साथ सांस्कृतिक मूल्यों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, उन्हें प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भारतीय चित्र साधना की स्थापना की गई है।
-आलोक कुमार
चेयरमैन, भारतीय चित्र साधना
हमें उन फिल्मों को प्रोत्साहित करना है जो हमारे देश, समाज और भाषा से जुड़ी हैं। सिनेमा मनोरंजन के साथ-साथ एक शिक्षक भी है, जिससे हमारे अंदर के अबोध बालक को बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
—सुभाष घई, फिल्म निर्देशक
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर एकतरफा सामाजिक सक्रियता नहीं होनी चाहिए। जब मेरी फिल्म ‘इंदु सरकार’ का विरोध हो रहा था तब अभिव्यक्ति की आजादी वाले कहां थे?
—मधुर भंडारकर, फिल्म निर्देशक
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