|
अद्भुत दृश्य था उस दिन मेरठ में। नगर के मुहाने पर नए बसे जागृति विहार के विशाल मैदान में 25 फरवरी को राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के 3,00,0000 से ज्यादा स्वयंसेवकों ने एक समवेत-अनुशासनबद्ध-देशभक्त संगठन का अनूठा परिचय दिया। राष्टÑोदय का उत्साहपूर्ण आयोजन सच में इतिहास रच रहा था।
मेरठ जनपद के तीन मंडलों-मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद-से आए स्वयंसेवकों में एक ही साध थी, उस समरसतापूर्ण, आनंदपूर्ण, तप:पूर्ण एकत्रीकरण में मिलकर संचलन करना, शारीरिक करना और सरसंघचालक से पाथेय प्राप्त करना।
महीनों के अनथक परिश्रम से तैयार हुआ कार्यक्र्रम स्थल सुनियोजित संकल्पना का जीता-जागता उदाहरण प्रस्तुत कर रहा था। वहां आए स्वयंसेवकों, कार्यकर्ताओं, उपस्थित नागरिकों को किसी तरह की कोई असुविधा न हो, इसका पूरा ध्यान रखकर ही व्यवस्थाएं की गई थीं। पूरे कार्यक्रम के दौरान पंक्तिबद्ध बैठे स्वयंसेवकों के चेहरों पर किसी थकान के चिन्ह नहीं दिख रहे थे, बल्कि दिख रहा था तो बस, उस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनने का जोश, नव भारत के बढ़ते कदमों में अपना-अपना योगदान देने का संकल्प।
सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत और कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी अवधेशानंद गिरी जी के मंच पर आने के बाद तो वातावरण और गरिमामय हो गया। स्वामी जी ने संघ की संगठन क्षमता को सराहते हुए देशहित में जुट जाने का आह्वान किया, तो सरसंघचालक ने इस बात को रेखांकित किया कि बलशाली होने से ही बात सुनी जाती है इसलिए शक्ति का यशोगान हो। प्रस्तुत है इस अनूठे राष्टÑोदय कार्यक्रम की आद्योपांत जानकारी, समाचार और रोचक आंकड़ों से भरपूर यह विशेष आयोजन।
प्रस्तुति:- अरुण कुमार सिंह, नागार्जुन एवं अश्वनी मिश्र, मेरठ से लौटकर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर मेरठ 25 फरवरी को राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के अब तक के सबसे बड़े कार्यक्रम का गवाह बना। इस दिन मेरठ के जागृति विहार में ‘राष्टÑोदय’ के नाम से एक समागम का आयोजन हुआ। इसमें लगभग 3,00,0000 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। संघ के 93 वर्ष के इतिहास में इतना बड़ा कार्यक्रम अब तक नहीं हुआ था। समागम की अध्यक्षता कर रहे जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद जी महाराज ने कहा भी, ‘‘यह राष्टÑोदय बहुत ही प्रभावी और प्रेरक अनुष्ठान है।’’ प्रभावी इसलिए कि इसकी चर्चा देश-विदेश में हुई और प्रेरक इसलिए कि इतने बड़े आयोजन में कागज का एक टुकड़ा भी कहीं गिरा हुआ नहीं दिखा। व्यवस्था ऐसी कि इतने लोगों के बीच भी किसी को कोई परेशानी नहीं हुई।
समागम को संबोधित करते हुए सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि भारत ही दुनिया को राह दिखा सकता है। इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। इस देश को एक रखने के लिए हम सबको एक होना होगा। उन्होंने कहा कि प्रत्येक राष्टÑ का अपना एक जीवन प्रयोजन होता है। जिन राष्टÑों का प्रयोजन पूरा हो गया वे अस्त हो गए, लेकिन हमारा देश सूर्य की तरह स्थिर है। सूर्य कभी अस्त नहीं होता इसलिए हमारा राष्टÑ भी कभी अस्त नहीं हो सकता। इसलिए हमारे राष्टÑ के उदय और अस्त का प्रश्न नहीं है। हम तो प्रारंभ से ही अध्यात्म का अनुशीलन करते रहे हैं। इस कारण हमारी संस्कृति बिल्कुल अलग है। हमारी संस्कृति सबको जोड़ती है, सबको आगे बढ़ाती है, दूसरे के दु:ख को अपना मानती है। लेकिन इस संस्कृति और देश के विरुद्ध अनेक षड्यंत्र हो रहे हैं। इनका मुकाबला देशवासियों की एकजुटता से ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग हमें ‘कट्टर हिंदू’ कहते हैं। ‘कट्टर हिंदुत्व’ का अर्थ है कट्टर अहिंसा, कट्टर सत्यनिष्ठा, कट्टर ब्रह्मचर्य और कट्टर पराक्रम। हमारी कट्टरता उदारता के लिए है। उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया भी अच्छी बातों को तभी मानती है, जब उसके पीछे कोई शक्ति खड़ी हो। श्री भागवत ने कहा कि हम हिंदू हैं इसलिए हम एक हैं। एक होने के लिए एक-सा होना पड़ता है।
विविधता प्रकृति की स्वाभाविक बात है। इसलिए विविधिता के कारण हम आपस में बंटे नहीं। हर हिंदू हमारा सहोदर है। प्रेम के साथ समाज के हर व्यक्ति को गले लगाएं। उत्कृष्ट जीवन का आदर्श खड़ा करें। उन्होंने यह भी कहा कि जो अपने को नहीं पहचानता वह कभी प्रगति नहीं कर सकता। सामर्थ्य-संपन्न और शक्ति-संपन्न देश बनाने के लिए हमें अपने आप को पहचानना होगा, एक होना होगा। उन्होंने कहा कि यह देश हमारा है। इसके अलावा और कहीं हमारा घर नहीं है। घर यदि ठीकठाक चलता है तो इसका श्रेय हमारे पूर्वजों को जाता है और यदि कुछ गड़बड़ी हो जाए तो प्रश्न हमसे पूछे जाएंगे। इस देश के लिए हम दायित्ववान लोग हैं। इसे समझना होगा, लेकिन दुर्भाग्य से हमारी आदतें बिगड़ गई हैं।
हम जात-पात के लिए लड़ रहे हैं। यह लड़ाई बंद करके एकजुट होना होगा। उन्होंने कहा कि मनुष्यता वाला मनुष्य तो दुर्बलों की रक्षा करता है, धन का उपयोग संपन्नता बढ़ाने के लिए करता है। लेकिन दुर्जन धन और विद्या का उपयोग विवाद के लिए करता है। धन में मदमस्त होकर अन्याय करता है। उन्होंने कहा कि आसमानी और सुल्तानी आफत के समय संघ के स्वयंसेवक समाज की रक्षा और मदद के लिए सबसे आगे रहते हैं। संघ समरसता और एकता की साधना है।
स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने कहा कि यदि आप राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के साथ हैं तो आपसे अधिक शक्तिशाली और कोई नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा कि आज पूरा विश्व महसूस कर रहा है कि भारतीय संस्कृति ही सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति दिला सकती है। जैन मुनि विहर्ष सागर ने भी संगम को संबोधित किया। उन्होंने समागम की धरा से पूरे देश को ‘पानी बचाओ, बेटी बचाओ’ का भाव पूर्ण संदेश दिया।
इस अवसर पर संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल, संघ के राष्टÑीय कार्यकारी मंडल सदस्य श्री इंद्रेश कुमार, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्टÑीय महामंत्री श्री चंपत राय, अंतरराष्टÑीय संगठन मंत्री श्री दिनेश चंद्र, भाजपा के संगठन मंत्री श्री रामलाल, केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री डॉ. महेश शर्मा, विदेश राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह, मानव संसाधन राज्यमंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह सहित विभिन्न संगठनों के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता, अनेक मत-पंथों के साधु-संत एवं विभिन्न जाति-बिरादरी के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
समरसता की गंगा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से हजारों युवा स्वयंसेवकों ने समागम में भागीदारी की। सभी के चेहरों पर मुस्कान, जोश और एकता की भावना झलक रही थी। रामपुर से ऐसे ही सात युवा स्वयंसेवकों की टोली आई थी, जिसमें होम सिंह, शुभम कश्यप, राजीव, कुशाग्र, अभिषेक, अमर सिंह और प्रेम कुमार शामिल थे। श्री अटल बिहारी वाजपेयी का गीत ‘गगन में लहराता पूज्य भगवा हमारा’ गाते ये स्वयंसेवक उत्साह से भरे हुए थे। इन सभी ने बड़े गर्व से बताया कि वे बाल्यकाल से स्वयंसेवक हैं। समारोह के बारे में होम सिंह कहते हैं, ‘‘यकीनन यह कार्यक्रम सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिंदुओं को नहीं, बल्कि देश के सभी हिंदुओं को एकसूत्र में पिरोने का काम करेगा। ऐसे कार्यक्रम होते रहने चाहिए, क्योंकि इससे हिंदुओं को अपनी शक्ति का आभास होता है।’’ वहीं, कुशाग्र ने कहा, ‘‘आज समाज में जिस चीज की सबसे अधिक जरूरत है, वह है- एकता और समरसता। ऐसा भाव सिर्फ संघ के कार्यक्रम में नजर आता है। यहां लाखों स्वयंसेवक आए हैं। सभी ने भोजन किया है, लेकिन वह किसके घर से है, किस जाति की माता ने यह बनाया और किस जाति का व्यक्ति भोजन परोस रहा है, किसी को कुछ नहीं पता। सभी के मन में एक ही भाव है कि यह हमारे भाई-बंधुओं के घर से बन कर आया है। जब यही भाव संपूर्ण समाज के लोग अपनाने लगेंगे, तो हिंदू समाज को कोई तोड़ नहीं सकेगा। इसलिए संघ पर कटाक्ष और आलोचना करने वाले इस तथ्य को समाज के सामने क्यों नहीं बताते?’’ तो वहीं अमर सिंह कहते हैं, ‘‘यहां हमें दिख रहा है कि हम महाशक्ति हैं, क्योंकि जहां से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है वहां शक्ति होती है। निश्चित रूप से ऐसे कार्यक्रम हिंदुओं को एकजुट करने और अपनी ताकत पहचानने के लिए हैं। हम सबको ऊंच-नीच, छुआछूत, जात-पात से ऊपर उठकर देश का विकास करना है और भारत माता की सेवा करनी है।’’
सेवा को समर्पित चिकित्सक
किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए समागम स्थल पर 9 चिकित्सा शिविरों में 200 बिस्तरों की व्यवस्था थी। इसके लिए 200 से अधिक चिकित्सक मोर्चा संभाले थे। इसके अलावा जिन-जिन स्थानों से स्वयंसेवक आ रहे थे, उन मार्गों पर भी शिविर लगाए गए थे। इन शिविरों में प्राथमिक उपचार की व्यवस्था की गई थी। समागम स्थल के एक शिविर पर डॉ. कुलभूषण अपने साथी चिकित्सक डॉ. योगेश्वर गुप्त, डॉ. मनीष एवं डॉ. श्याम गुमला के साथ स्वयंसेवकों की सेवा में लगे हुए थे। डॉ. कुलभूषण कहते हैं, ‘‘हम लोगों ने प्राथमिक उपचार की पूरी व्यवस्था की ताकि किसी भी स्वयंसेवक को किसी भी तरह की कोई असुविधा न हो। इसके लिए समागम स्थल के शिविर से लेकर विशाल मैदान में हमारे चिकित्सक स्वयंसेवकों पर ध्यान दे रहे हैं।’’ वे कहते हैं, ‘‘ऐसे कार्यक्रम हर उम्र के लोगों में जोश भरने का काम करते हैं। यहां संगठन की शक्ति नजर आती है। यहां आकर स्वयंसेवकों को अहसास होता है कि संघ सिर्फ शाखा तक सीमित नहीं है, उसका एक विराट रूप यह भी है।’’
पहले समागम, बाद में शादी
मेरठ के माछरा से आए 69 वर्षीय तेज सिंह के पोते का विवाह समागम के दिन था। लेकिन उन्होंने अपने घर में सभी से कह दिया कि पहले संघ के कार्यक्रम में जाएंगे, उसके बाद ही वे विवाह समारोह में शामिल होंगे। बाल्यकाल से स्वयंसेवक तेज सिंह कहते हैं, ‘‘घर में विवाह की व्यस्तता के बावजूद समागम में आने वाले स्वयंसेवकों के लिए 500 पैकेट भोजन बनवाया और खुद लेकर आया हूं। मुझे गर्व है कि इतना बड़ा कार्यक्रम हमारे क्षेत्र में हो रहा है। इसलिए हमारे क्षेत्र में आने वाला कोई भी स्वयंसेवक भूखा नहीं रहना चाहिए। यह हम सभी क्षेत्रवासियों की जिम्मेदारी बनती है और यही जिम्मेदारी मैंने निभाई।’’
स्वागत में जुटा मुस्लिम मंच
राष्ट्रीय मुस्लिम मंच, मेरठ प्रांत के संयोजक कदीम आलम और प्रांत सहसंयोजक मौलाना हमीदुल्लाह खां राजशाही समागम स्थल की ओर जाने वाले रास्ते पर हरेक स्वयंसेवक के ऊपर पुष्पवर्षा कर उनका अभिनंदन कर रहे थे। वे अपने कार्यकर्ताओं के साथ सुबह से ही समागम स्थल पर मोर्चा संभाले थे। इस दौरान उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे समागम हम सबको जोड़ने का काम करते हैं। हम सब एकजुट हों, तभी देश आगे बढ़ पाएगा। आज के समय में सामाजिक सौहार्द की सबसे ज्यादा जरूरत है। हम मुस्लिम भाई इसी बात का संदेश दे रहे हैं।’’
स्वच्छता पर जोर
अमूमन 25-50 लोगों के किसी कार्यक्रम के बाद आयोजन स्थल पर गंदगी दिखाई देती है। लेकिन समागम में इतने स्वयंसेवकों के आने के बाद भी न तो आयोजन स्थल और न ही इस ओर जाने वाले मार्गों में कहीं कोई गंदगी दिखी। यहां तक कि जिन-जिन स्थानों पर भोजन-पानी की व्यवस्था थी, वहां भी साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा गया था। खास बात यह थी कि बोतलबंद पानी के अलावा पानी के टैंकर की भी व्यवस्था की गई थी, लेकिन न तो पानी की बर्बादी दिखी और न ही भोजन की। स्वयंसेवक उतना ही भोजन ले रहे थे, जितना वे खा सकते थे। कहीं भी कोई अस्वच्छता दिखाई देती तो स्वयंसेवकों की टोली झट से उसे साफ कर देती। समाज के विभिन्न वर्गों से आए हुए लोग यह देखकर हतप्रभ थे। वे यह कहते सुने गए कि लोगों को संघ की व्यवस्था से प्रेरणा लेनी चाहिए। यदि सभी लोग अपने आसपास स्वच्छता का यूं ही ध्यान रखें तो पूरे देश में कहीं भी गंदगी नहीं दिखेगी।
पर्यावरण का खास ख्याल
पर्यावरण को कोई नुकसान न हो, इसका पूरा ध्यान रखा गया। पानी की बोतलों को छोड़कर प्लास्टिक की कोई भी वस्तु समागम में इस्तेमाल नहीं की गई। स्वयंसेवकों के भोजन के लिए प्लास्टिक और थर्मोकोल की प्लेट की बजाय लकड़ी की प्लेट का उपयोग किया गया, जो देखने में बहुत ही आकर्षक थी। जिसने भी खाना खाया उसने खाने के साथ-साथ इन प्लेटों की भी तारीफ की। यही नहीं, रास्तों के किनारे या किसी जगह को विशेष प्रयोजन हेतु घेरने के लिए चूने के स्थान पर मार्बल के चूरे का प्रयोग किया गया। उल्लेखनीय है कि चूने से जमीन खराब होती है, मार्बल के चूरे से जमीन पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
मुस्लिम घरों से आया भोजन
राष्ट्रोदय समागम में स्वयंसेवकों के लिए केवल हिंदू घरों से ही नहीं, बल्कि मुस्लिम घरों से भी भोजन आया था। रा.स्व.संघ के कुछ स्वयंसेवक 25 फरवरी को मेरठ के रोहाटा रोड स्थित पेशे से वकील मोहम्मद अफजल के घर पहुंचे और उनसे दूर-दराज से आने वाले स्वयंसेवकों के लिए दो पैकेट भोजन देने का आग्रह किया तो वे अचंभित हो गए। अफजल बहुत प्रसन्न हुए और पूछा कि क्या वे दो की जगह चार पैकेट भोजन दे सकते हैं? उन्होंने कहा, ‘‘मैं मजहब और राजनीति से ऊपर उठकर शहर में आयोजित होने वाले अब तक के सबसे बड़े कार्यक्रम के लिए अपनी ओर से छोटा-सा योगदान देना चाहता था, क्योंकि इसमें आने वाले लोग हमारे मेहमान ही तो हैं। इसलिए मेरी पत्नी ने ताजा आटे की पूरियां और पराठे बनाने का फैसला किया ताकि मेहमानों तक पहुंचने पर ये सख्त न हों।’’
भीड़ नहीं आएगी, स्वयंसेवक आएंगे
समागम के आयोजन के लिए जब प्रशासन से इजाजत मांगी गई तो अधिकारियों को इस बात की चिंता थी कि इतने विराट कार्यक्रम में उमड़ने वाली भीड़ को कैसे नियंत्रित किया जा सकेगा। इतने लोगों की सुरक्षा तो सबसे बड़ी चुनौती होगी ही, शहर की यातायात व्यवस्था भी चरमरा जाएगी। तब संघ के अधिकारियों की तरफ से प्रशासन को यह विश्वास दिलाया गया कि यहां भीड़ नहीं आएगी, स्वयंसेवक आएंगे। आप निश्चिंत रहें, सब कुछ शांति से संपन्न होगा। … और ऐसा ही हुआ। ल्ल
विविधता प्रकृति में स्वाभाविक रूप में होती है। इसलिए विविधिता के कारण हम आपस में बंटे नहीं। हर हिंदू हमारा सहोदर है। प्रेम के साथ समाज के हर व्यक्ति को गले लगाएं।
—मोहनराव भागवत
यदि आप राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के साथ हैं
तो आपसे अधिक शक्तिशाली और कोई नहीं
हो सकता। —अवधेशानंद जी महाराज
आकर्षण का केंद्र बाल स्वयंसेवक
स्वयंसेवक समागम में वैसे तो अनेक बाल स्वयंसेवक आकर्षण का केंद्र बने हुए थे, लेकिन इनमें सबसे प्रमुख आकर्षण का केंद्र सिंकदराबाद से अपनी शाखा की टोली के साथ आया हुआ बाल स्वयंसेवक स्पर्श था। कक्षा प्रथम में पढ़ रहा स्पर्श मात्र 5 वर्ष का है। पूर्ण गणवेश में मौजूद स्पर्श कुछ भी पूछने पर अपनी तोतली जुबान से सिर्फ एक ही बात बोलता ‘अच्छा’ लग रहा है। यह सुनकर पास खड़े स्वयंसेवक उसे प्यार से गोद में उठा ले रहे थे।
यूं हुई तैयारी
समागम की तैयारी जुलाई, 2017 में शुरू हो गई थी। मेरठ प्रांत के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने इस आयोजन की रूपरेखा तैयार की और फिर प्रांत की सभी शाखाओं से जुड़े स्वयंसेवकों तक यह संदेश पहुंचाया गया। तैयारी को धार देने के लिए अक्तूबर, 2017 में 5,700 अल्पकालिक विस्तारक गांवों में भेजे गए। इन विस्तारकों ने गांव-गांव में घूमकर लोगों को कार्यक्रम की जानकारी दी और उन्हें आने के लिए तैयार भी किया। इसके साथ ही लगभग 1,000 प्रवासी कार्यकर्ताओं ने भी गांवों का दौरा किया। अंत के तीन हफ्ते तक इन विस्तारक और कार्यकर्ताओं ने दिन-रात काम किया। परिणामस्वरूप लगभग 8,000 नए कार्यकर्ता तैयार हुए। इन लोगों की साधना से जितने भी नए स्वयंसेवक बने उन्हें शाखा के जरिए प्रशिक्षित किया गया और फिर कार्यक्रम के लिए स्वयंसेवकों का पंजीकरण शुरू हुआ। पंजीकरण शुल्क 50 रु. रखा गया। 10 दिसंबर, 2017 को सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी के कर कमलों से कार्यक्रम स्थल का भूमि-पूजन हुआ। इसके बाद तो कार्यक्रम स्थल को तैयार करने के लिए कार्यकर्ताओं ने दिन-रात काम किया। एक बहुत बड़े हिस्से में फसल लगी थी। स्वयंसेवकों ने जमीन को समतल किया और किसानों ने जल्दी फसल काट कर तैयारी में सहयोग किया। किसानों में कुछ मुसलमान भी थे। उन्होंने अपने खेतों में लगी आलू की फसल को जल्दी उखाड़ा ही नहीं, बल्कि कार्यक्रम के लिए आलू दान भी दिए।
शारीरिक अक्षमता पर हौसला भारी
कड़ी धूप और धूल भरी हवा भी समागम स्थल पर स्वयंसेवकों के जोश और उत्साह को कम नहीं कर सकी। कार्यक्रम स्थल पर कुछ ऐसे स्वयंसेवक भी उपस्थित थे, जो शारीरिक रूप से अक्षम तो थे, लेकिन उनके हौसले बुलंद थे। नोएडा से आए 40 वर्षीय उमेश पांडेय का एक पैर पोलियोग्रस्त, तो हाथ कटा हुआ था। इसके बावजूद वे पूरे जोश के साथ कार्यक्रम की हर गतिविधि में भाग ले रहे थे। उमेश ने बताया, ‘‘मैं छह-सात वर्ष का था, तभी संघ के संपर्क में आया और यहीं का होकर रह गया। मेरा सौभाग्य है कि मैं ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बना हूं। यहां आकर मन में उत्साह और जोश भर जाता है। यह विश्वास भी होता है कि हम सबमें कोई भेद नहीं है। मैं शारीरिक रूप से अक्षम हूं, लेकिन मन से सक्षम और देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत हूं।’’ पांडेय कहते हैं, ‘‘ऐसे कार्यक्रम पूरे देश में होने चाहिए। हम सब एक हैं, यह भाव पूरे समाज में जाना चाहिए। यह भाव जितना प्रबल होगा, समाज तोड़ने वाले लोग उतने ही कमजोर होंगे।’’ ऐसे ही एक और स्वयंसेवक 35 साल के शिवकुमार लोनी (गाजियाबाद) से आए थे। दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद पूर्ण गणवेश में थे। वे कार्यक्रम स्थल पर सभी के आकर्षण का केंद्र थे। उन्होंने कहा, ‘‘इससे पहले भी संघ के कुछ कार्यक्रमों में जाना हुआ है। यहां आकर बड़ा अच्छा लगता है। अद्भुत नजारा है यहां का। यहां आकर नई ऊर्जा मिली, नया उत्साह मिला।’’
विराट आयोजन देख हतप्रभ विदेशी
समागम में विदेशी मेहमान भी पधारे थे। उन्हीं में से एक टोली से मुलाकात हुई। इस टोली के पांचों लोग वेद-विज्ञान पर शोध कर रहे हैं। आॅस्टेÑलिया के मार्टिन कहते हैं, ‘‘वे भारत की प्राचीन वैदिक परंपरा से बेहद प्रभावित हैं। वेदों का दायरा बहुत व्यापक है और मानवता का कल्याण इसी में निहित है। पश्चिमी देशों ने भारत की प्राचीन परंपरा, सभ्यता और संस्कृति को पहचाना है।’’
अमेरिका के शोधार्थी सिशेल से जब यह पूछा कि रा.स्व.संघ के विषय में क्या ख्याल है? तो उन्होंने कहा ‘‘संघ भारतीय संस्कृति, सभ्यता और वैदिक परंपरा का न केवल संरक्षण कर रहा है, बल्कि उसका प्रचार-प्रसार भी कर रहा है। साथ ही, मानवीय दृष्टिकोण से भी अपना अमूल्य योगदान दे रहा है। रा.स्व.संघ के कार्य देखकर न केवल हम लोगों को प्रेरणा मिली है, बल्कि संघ के स्वयंसेवकों के आचरण और व्यवहार ने समय-समय पर प्रभावित किया है। इसलिए हम सभी संघ को संबल देने के लिए यहां पहुंचे हैं।’’ सिशेल ने आगे कहा, ‘‘यहां आकर हमें बेहद सुखद अनुभूति हो रही है। यहां की ऊर्जा बहुत उत्साहवर्द्धक है।’’ वहीं, न्यूजीलैंड के जेम्स कहते हैं, ‘‘हमारे एक मित्र ने इस विराट आयोजन के विषय में बताया था। मैंने आने का प्रण किया और जो देख रहा हूं वह वास्तव में अविस्मरणीय है। सब कुछ व्यवस्थित है।
स्वयंसेवकों में गजब का उत्साह है। इतना अनुशासन शायद ही कहीं दिखता हो। हर व्यक्ति बिना कहे अपना कार्य करता जा रहा है। इससे अद्भुत और क्या होगा।’’
महिला शक्ति का सहयोग
समागम को सफल बनाने में महिलाओं का अतुलनीय योगदान रहा। पहले तो महिलाओं ने अपने-अपने घर पर स्वयंसेवकों के लिए खाना तैयार किया और बाद में समारोह में भी आर्इं। कार्यक्रम में उपस्थित मेरठ की संगीता पंडित कहती हैं, ‘‘हमारा सौभाग्य है कि स्वयंसेवकों के लिए खाना तैयार करने का मौका मिला।’’ राष्टÑ सेविका समिति की कार्यकर्ता सरला शर्मा ने बताया, ‘‘बहनों ने बहुत ही मन से खाने का पैकेट तैयार किया। तभी समय पर खाना तैयार हो पाया और कार्यकर्ता जगह-जगह ले जा सके।’’ वहीं चंद्रकांता वर्मा ने कहा, ‘‘एक बार खाना बनाकर देने के बाद भी कई बहनें घर पर इसका इंतजार करती रहीं कि कब और खाना बनाने का आदेश आए और तुरंत उन्हें खाना बनाकर दे दिया जाए।’’
मेरे साथ मेरा भाई भी आया है। यहां सब एक जैसे दिखाई दे रहे। कोई अलग नहीं। ऐसा लगता है सब एक ही हैं। यह देखकर हमें बहुत अच्छा लगा। मैंने पहले कभी भी इतना बड़ा कार्यक्रम नहीं देखा। अब से संघ के हरेक कार्यक्रम में जाऊंगा।
—सोमवीर (11), मुरादााबाद
मैं अपनी पूरी टोली के साथ इस कार्यक्रम में आया हूं। मेरी टोली में देशदीपक, ऋषभ, रौसिफ और आशुतोष हैं। हम सभी साथ-साथ पढ़ते हैं और हम लोगों का यह पहला कार्यक्रम है। लेकिन जो मुझे सबसे ज्यादा भाया वह यह कि इतनी संख्या होने के बाद भी कोई समस्या नहीं। शांति के साथ काम हो रहा है। कोई भागमभाग नहीं और सबसे बड़ी बात यहां सब एकजुट हैं। चारों तरफ भारत माता की ही जय जयकार हो रही है।
— हर्षवर्धन (12), गाजियाबाद महानगर
मैं अपने बड़े भाई के साथ आया हूं। मुझे यहां कोई बड़ा-छोटा नहीं दिख रहा। सब एकजुट और समान दिख रहे हैं। हमारे साथ जितने भी स्वयंसेवक आए सबने मिल-बांटकर भोजन किया। ऐसा मैंने पहली बार देखा और मुझे यह बहुत ही अच्छा लगा।
—यश (12), गाजियाबाद
मैंने संघ का गणवेश पहली बार पहना है। लेकिन यहां तो मेरे जैसे बहुत से लोग दिखाई दे रहे हैं। यहां सब खुश हैं।
—अभिनव (9), मुरादनगर
मैं 4-5 महीने पहले ही संघ के संपर्क में आया हूं। यहां आकर मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है। मैंने इससे पहले एक साथ में इतने स्वयंसेवकों को कभी नहीं देखा।
—दिव्यांश शर्मा (16), मेरठ
टिप्पणियाँ