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कर्नाटक में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस अब हिन्दू समाज को तोड़ने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के निशाने पर लिंगायत समुदाय है, क्योंकि भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बी.एस. येदियुरप्पा की इस पर पकड़ मजबूत है
सतीश पेडणेकर
कांग्रेस पर अक्सर हिन्दू विरोधी होने का आरोप लगता है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि कांग्रेस ही वह पार्टी है जिसने शांति और सहिष्णुता के लिए सर्वमान्य हिन्दू समाज के लिए ‘हिन्दू आतंकवाद’ शब्द का अविष्कार किया और हिन्दू समाज को बदनाम करने की कोशिश की। मगर अब तो चुनाव जीतने के लिए सारी हदें पार कर कांग्रेसी नेता हिन्दू समाज को तोड़ने में लगे हैं।
कर्नाटक में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इसे नाक का सवाल बना लिया है और किसी भी हालत में चुनाव जीतना चाहते हैं। इसके लिए वे राज्य में क्षेत्रीय और भाषाई कट्टरतावाद ही नहीं फैला रहे हैं, बल्कि हिन्दू समाज को तोड़ने का पाप भी कर रहे हैं। चुनाव को देखते हुए उन्होंने लिंगायत समुदाय को हिन्दू समाज से तोड़ने की साजिश रची है। कर्नाटक के सीमावर्ती जिला बीदर में पिछले हफ्ते बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुटी थी। बता दें कि एक तरफ बीदर महाराष्ट्र से सटा है, तो दूसरी तरफ कर्नाटक से लगा हुआ है। बताया जाता है कि इस सभा में 75,000 लोग अपने समुदाय के लिए अलग धार्मिक पहचान की मांग को लेकर एकत्र हुए थे। लिंगायत समुदाय को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। राज्य की आबादी में लिंगायत की हिस्सेदारी 18 फीसदी है। पड़ोसी राज्यों, जैसे- महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है। सिद्धारमैया लिंगायतों की मांग का खुलकर समर्थन कर रहे हैं।
इतना ही नहीं, सिद्धारमैया सरकार के पांच मंत्री अब इस मसले पर स्वामीजी (लिंगायतों के पूज्य संत) की सलाह लेने जा रहे हैं और इसके बाद वे मुख्यमंत्री को एक रिपोर्ट भी सौंपेंगे। इसके पीछे विचार यह है कि राज्य सरकार लिंगायतों को अलग धर्म की मान्यता देने के लिए केंद्र सरकार को लिखेगी। वीरशैव सम्प्रदाय या लिंगायत मत दक्षिण भारत में हिन्दू धर्म के अंतर्गत एक प्रचलित संप्रदाय है। इस मत के उपासक लिंगायत कहलाते हैं। यह शब्द कन्नड़ शब्द लिंगवंत से व्युत्पन्न है। ये लोग मुख्यत: पंचाचार्यगणों एवं गुरु बसव की शिक्षाओं के अनुगामी हैं।
‘वीरशैव’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘जो शिव का परम भक्त हो।’ किन्तु समय बीतने के साथ वीरशैव का तत्वज्ञान दर्शन, साधना, कर्मकांड, सामाजिक संघटन, आचार नियम आदि अन्य संप्रदायों से भिन्न होते गए। यद्यपि वीरशैव देश के अन्य भागों, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु आदि भी पाए जाते हैं, लेकिन उनकी सबसे अधिक आबादी कर्नाटक में है। शैव लोग अपने धार्मिक विश्वासों और दर्शन का उद्गम वेदों तथा 28 शैवागमों से मानते हैं। हालांकि वीरशैव वेदों में अविश्वास तो नहीं प्रकट करते, लेकिन उनके दर्शन, कर्मकांड तथा समाज सुधार आदि में ऐसी विशिष्टताएं विकसित हो गई हैं, जिनकी व्युत्पत्ति मुख्य रूप से शैवागमों तथा ऐसे अंतदृष्टि योगियों से हुई मानी जाती है जो ‘वचनकार’ कहलाते हैं। 12वीं से 16 वीं सदी के बीच लगभग तीन शताब्दियों में करीब 300 वचनकार हुए, जिनमें से 30 स्त्रियां थीं। इनमें सबसे प्रसिद्ध नाम गुरु बसव का है जो कल्याण (कर्नाटक) के जैन राजा विज्जल (12वीं सदी) के प्रधानमंत्री थे। वह योगी महात्मा ही नहीं, बल्कि कर्मठ संघटनकर्ता भी थे। उन्होंने ही वीरशैव संप्रदाय की स्थापना की। बसव का लक्ष्य ऐसा आध्यात्मिक समाज बनाना था जिसमें जाति, धर्म या स्त्री-पुरुष का भेदभाव न हो। वह कर्मकांड संबंधी आडंबर के विरोधी थे और मानसिक पवित्रता एवं भक्ति की सच्चाई पर बल देते थे। वे केवल एक ईश्वर की उपासना के समर्थक थे। उन्होंने पूजा और ध्यान की पद्धति में सरलता लाने का भी प्रयास किया। जाति भेद की समाप्ति तथा स्त्रियों के उत्थान के कारण समाज में अद्भुत क्रांति उत्पन्न हो गई। तीनों वचनकारों को ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग मान्य हैं, लेकिन उन्होंने भक्ति पर ही सबसे ज्यादा जोर दिया है। बसव के अनुयायियों में बहुत से हरिजन थे। उन्होंने अंतरजातीय विवाह भी संपन्न कराए।
अब जबकि 10 महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, तो यह साफ है कि भाजपा की ओर से वरिष्ठ नेता बी.एस. येदियुरप्पा के जनाधार को कमजोर करने के मकसद कांग्रेस यह सब कर रही है। लिंगायतों ने बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना और 2008 में वे सत्ता में आए। जब उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया गया तो लिंगायतों ने 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के विरुद्ध कथित मतदान करके अपना बदला लिया। अब आगामी विधानसभा चुनावों में येदियुरप्पा को एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की संभावना है। लिंगायत समाज में उनका जनाधार मजबूत है। लेकिन लिंगायतों के लिए अलग धार्मिक पहचान की मांग उठने से राज्य में येदियुरप्पा के जनाधार को तोड़ने के लिए कांग्रेस को एक मौका मिल गया है।
विधान परिषद में विपक्ष के नेता भाजपा के केएस ईश्वरप्पा ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया वोटों की खातिर जातियों में फूट डालने और उनके बीच टकराव पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री समाज को एकजुट करने के बजाय लोगों में फूट डालकर ‘महान’ बनने की कोशिश कर रहे हैं। संत बसवण्णा, डॉ. भीमराव आंबेडकर और कनकदास सहित अन्य महापुरुषों ने समाज को एकजुट करने का प्रयास किया, जबकि सिद्धारमैया जातियों में फूट डाल रहे हैं। चुनावी वर्ष होने के कारण वे सांप्रदायिक द्वेष के बीज बोने की कोशिश कर रहे हैं।
कर्नाटक सरकार के कुछ मंत्री, जिनमें उच्च शिक्षामंत्री बसव राज रायरेड्डी भी हैं। वे वीरशैव लिंगायतों को हिन्दू समाज से अलग धार्मिक समुदाय के तौर पर मान्यता देने के लिए हरसंभव कोशिश में लगे हंै। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि ‘वीरशैव लिंगायत समुदाय को हिन्दू धर्म की जकड़न से मुक्त होने की जरूरत है’ ताकि वे अपने अल्पसंख्यक दर्जे का लाभ उठा सकें। उनके अनुसार, हिन्दू धर्म एक संस्कृति है जो सिंधु सभ्यता से विकसित हुई, जबकि वीरशैवों के रीति-रिवाज सिंधु घाटी की सामंतवादी तरीकों से अलग है। जब सरकार ने हर दफ्तर में लिंगायत संप्रदाय के प्रवर्तक बसवण्णा का चित्र लगाने का आदेश दिया तो वीरशैव महासभा ने उन्हें ज्ञापन सौंपा, जिसमें वीरशैव लिंगायतों को अलग धार्मिक दर्जा देने की मांग की गई थी।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस ज्ञापन पर प्रतिक्रिया तौर पर यह सब किया है। उन्होंने यह दावा भी किया कि पंचपीठ लिंगायतों के लिए अलग धार्मिक दर्जा चाहते हैं। जब उनका ध्यान रंभापुरी मठ के स्वामी के उस बयान की तरफ आकर्षित किया गया कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया लिंगायत वीरशैवों को बांटने की कोशिश कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि वे और राज्य के चार मंत्री राज्यभर का दौरा करके मांग के पक्ष में मठों का समर्थन हासिल करने की कोशिश करेंगे। ल्ल
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