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बात थोड़ी पुरानी है लेकिन आज के संदर्भ में पूरी तरह सच है। गुरु हनुमान ने अपनी बिरला व्यायामशाला में मुझे बताया था कि वही उनके अखाड़े में रह रहे पहलवानों के मां-बाप हैं। उनकी खुराक से लेकर प्रशिक्षण तक सब कुछ वही करते हैं और जब वे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतकर आते हैं तो वह पदक उनके सुपुर्द कर देते हैं, उनके पहलवान का हर पदक उनकी उम्र बढ़ा देता है।
यह स्थिति उस अखाड़े की है जिसने देश को कुश्ती में सबसे ज्यादा अर्जुन और पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित पहलवान दिए। आज इस अखाड़े में तैयार हुए पहलवान अपने अखाड़े चला रहे हैं। गुरु हनुमान की बात केवल उनके अखाड़े पर ही नहीं, देश के सभी अखाड़ों पर पूरी तरह से फिट बैठती है, जहां कोई जात-पांत, मत मायने नहीं रखता। मायने रखती है उनकी कड़ी मेहनत जिसके दम पर अखाड़ों से निकले पहलवान दुनिया भर में भारतीय कुश्ती का डंका बजा रहे हैं। उसी गुरु हनुमान अखाड़े में तैयार हुए सतपाल पहलवान ने पहले 1982 के एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक जीतने के अलावा 25 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शिरकत की और उसके बाद दिल्ली प्रशासन में बतौर अतिरिक्त निदेशक अपनी सेवाएं पूरी कीं। इस दौरान उन्होंने दिल्ली के माडल टाउन स्थित अखाड़े में अपने जैसे पहलवान तैयार करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने इस अखाड़े को सींचने में न दिन देखा, न रात। पहलवानों को तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत के साथ अपने गुरु से सीखी अनुशासन कला को अपने शिष्यों में उड़ेला। इसी का नतीजा है कि इस अखाड़े ने देश को सुशील जैसा नायाब हीरा दिया, जिनकी ओलंपिक में दो पदकों की कहानी ने देश में कुश्ती का माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाई। सुशील देश के इकलौते विश्व चैंपियन भी बने। इसी अखाड़े से योगेश्वर दत्त तैयार हुए जिन्होंने देश को 28 साल बाद एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक, 21 साल बाद एशियाई चैंपियनशिप का स्वर्ण और लंदन ओलंपिक में कांसे का तमगा दिलाया। इसी अखाड़े से अमित कुमार ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में रजत पदक हासिल किया।
गुरु हनुमान अखाड़े में तैयार हुए अंतरराष्ट्रीय पहलवान प्रेमनाथ ने भी दिल्ली के गुड़मंडी इलाके में अपना अखाड़ा खोला और यहां से न सिर्फ आला दर्जे के पहलवान तैयार हुए बल्कि महिला कुश्ती में भी कई दिग्गज तैयार हुए। गुरु हनुमान के अन्य शिष्य करतार सिंह ने पंजाब की कुश्ती कला को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दिया और पंजाब के अखाड़ों में इस खेल को बढ़ावा देने का काम किया।
दिल्ली का चर्चित मास्टर चंदगीराम अखाड़ा भी सुर्खियों में रहा है। एशियाई खेलों के पूर्व चैंपियन मास्टर चंदगीराम का पूरा परिवार इसी अखाड़े में तैयार हुआ। आज उनके पुत्र जगदीश कालीरमण इस अखाड़े की देखरेख करते हैं। इस अखाड़े से अर्जुन पुरस्कार विजेता सत्यवान, जगरूप, संजय के अलावा बुद्धसिंह, सुरेश, जगदीश और सोनिका कालीरमण जैसे अंतरराष्ट्रीय पहलवान तैयार हुए। इसी तरह आजादपुर में कैप्टन चांदरूप अखाड़े ने भी देश को अर्जुन पुरस्कार विजेता ओमवीर, अशोक गर्ग, रोहतास और रमेश के अलावा धर्मेंद्र दलाल जैसे अंतरराष्ट्रीय पहलवान दिए। इसके अलावा खलीफा जसराम के आश्रम स्थित अखाड़े से ओलंपियन जयप्रकाश तैयार हुए। घंटाघर स्थित लल्ला पहलवान के अखाड़े से खासकर मिट्टी में कुश्ती के पहलवान तैयार हुए। इसके अलावा शाहबाद डेयरी में नरेश के अखाडे़, अलीपुर में अनिल मान के अखाड़े से भी काफी उम्मीदें हैं।
अगर हरियाणा के अखाड़ों की बात की जाए तो आज रोहतक में मेहरसिंह और झज्जर जिले में जयवीर के अखाड़ों से बड़े पहलवान तैयार हो रहे हैं। मौजूदा राष्ट्रीय चैंपियन जितेंद्र बोपनिया के अखाड़े से ही तैयार हुए हैं। रोहतक में कभी मोखरा गांव के अखाड़े से हिंद केसरी छत्तर पहलवान तैयार हुए तो वहीं छारा से तेजा पहलवान, रामकिशन ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। रोहतक के ही मानोठी गांव से धर्मेंद्र दलाल और सोनू जैसे अंतरराष्ट्रीय पहलवानों ने भी खूब नाम कमाया। इसके अलावा मास्टर चंदगीराम अखाड़े में तैयार हुए अर्जुन पुरस्कार विजेता सत्यवान ने रोहतक में अपना अखाड़ा खोला और अपने बेटे सत्यव्रत को हैवीवेट वर्ग में देश का आला दर्जे का पहलवान बनाया जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज देश का नाम रोशन कर रहा है। इसके अलावा कैप्टन रामकरण अखाड़े से जूनियर स्तर के पहलवान तैयार हो रहे हैं। इसी तरह सोनीपत में पूर्व हिंद केसरी जगदीश मित्तर भी अपने अखाड़े से पहलवान तैयार कर रहे हैं। हरियाणा सरकार के सुभाष स्टेडियम, सोनीपत में कोच राजसिंह छिकारा पहलवानों को कड़ी मेहनत करा रहे हैं। हिसार कृषि विश्वविद्यालय के अखाड़े में देश के शीर्ष पहलवानों में से एक उदयचंद ने ज्ञान सिंह और कुलदीप जैसे दिग्गजों को तैयार किया। सोनीपत के तुसखास गांव से रमेश, राजवीर और शमशेर जैसे आला दर्जे के पहलवान तैयार हुए। हरियाणा सरकार और एसएआई के संयुक्त प्रयास से बने भिवानी केंद्र से अब बॉक्सिंग के साथ-साथ कुश्ती में प्रतिभाएं तैयार होने लगी हैं। मनोज और निरेश यहीं से तैयार हुए पहलवान हैं।
महाराष्ट्र में कभी कुश्ती की परम्परा थी। हालांकि उसमें कुछ ठहराव की स्थिति आ गई लेकिन पिछले कुछ वषोंर् में यहां की कुश्ती फिर से पुनर्जीवित हो गई है। कोल्हापुर में मोतीबाग तालीम, गंगावेश तालीम, शाहूपुरी तालीम, काला इमाम तालीम, मठ तालीम, मनपा तालीम और लाल अखाड़ा, मंुबई का लालबहादुर शास्त्री अखाड़ा और भारतीय खेल प्राधिकरण का एसएआई केंद्र, सांगली की सरकारी तालीम, अद्यबजरंगी तालीम और भोसले तालीम, सातारा का आजाद अखाड़ा प्रसिद्ध हैं। हैलसिंकी ओलंपिक में 1952 में देश को पहला ओलंपिक पदक दिलाने वाले खाशाबा जाधव सातारा के कराड जिले के गोलेश्वर गांव से तैयार हुए पहलवान हैं। इसी तरह पुणे की गोकुलवस्ताद तालीम, अग्रवाल तालीम, गुल्से तालीम, चिंचेरी, निम्बालकर तालीम, मुक्तांगन केंद्र और सूबेदार तालीम ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं जहां से महाराष्ट्र की कुश्ती ने दुनिया भर में अपना परचम लहराया। इसी तरह उत्तर प्रदेश में वाराणसी, गोरखपुर, बुलंदशहर नंदिनीनगर, मथुरा, मेरठ और बड़ौत के अखाड़ों ने भारतीय कुश्ती को एक नया स्वरूप देने में अहम भूमिका निभाई। विशम्भर, मुख्तियार सिंह, अनुज चौधरी, राजीव तोमर और अलका तोमर इन्हीं अखाड़ों की देन रहे। पंजाब में जालंधर, फरीदकोट, अमृतसर, फगवाड़ा और गुरदासपुर में हजारों की संख्या में अखाड़ों ने दिग्गज पहलवान तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। माधो सिंह, करतार सिंह, गुरमुख सिंह, केहर सिंह, मेहर सिंह, गुरबिंदर, सुखचैन सिंह, पलविंदर चीमा, श्रवण, रंधीर सिंह धीरा ने इन्हीं अखाड़ों से देश-विदेश में खूब नाम कमाया। महाराजा पटियाला और कोल्हापुर में शाहूजी महाराज पहलवानों के आश्रयदाता साबित हुए। लगातार तीसरे ओलंपिक में देश को पदक मिलने, प्रो रेस्िंलग लीग से पहलवानों को वित्तीय स्थिति सुधारने और भारतीय कुश्ती संघ की सक्रियता ने भारतीय कुश्ती के लिए आक्सीजन का काम किया है।
देश के बाकी हिस्सों के अखाड़ों से भी उम्मीद की जानी चाहिए कि वे भी भारतीय कुश्ती की नर्सरी साबित होंगे। – मनोज जोशी
(लेखक कुश्ती पर कई पुस्तकें लिख चुके हैं और टीवी कमेंटेटर हैं)
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