भारतीय जनसंघ के अध्यक्षआ. घोष के स्वागत में केरल का कण-कण पुलकित हो उठा!
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भारतीय जनसंघ के अध्यक्षआ. घोष के स्वागत में केरल का कण-कण पुलकित हो उठा!

by
Dec 28, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Dec 2015 12:49:10

पाञ्चजन्य के पन्नों से
वर्ष: 12  अंक: 37   
23 मार्च 1959
भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष
आ. घोष के स्वागत में केरल का कण-कण पुलकित हो उठा!
स्थान-स्थान पर स्वागत-सत्कार: विशाल जन-सभाएं: जनता में नया उत्साह
काफी समय से लोगों की आंखें लगी हुई थीं कि कब भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष आचार्य देवप्रसाद घोष केरल का दौरा करते हैं। आखिर 27 फरवरी से 7 मार्च 1959 के बीच आशाएं फलीभूत हुईं। यह पहला अवसर था जबकि जनसंघ के किसी अखिल भारतीय नेता ने इस प्रदेश का दौरा किया हो। इस बात को ध्यान में रखकर विचार करने पर किसी को भी लगेगा कि यह दौरा अत्यंत सफल रहा। जहां-जहां घोष जी पधारे, जनता ने भारी संख्या में उपस्थित होकर सोत्साह उनका भाषण सुना।
स्थानीय निर्वाचन
जहां तक इस प्रदेश का प्रश्न है, दौरा त्रिवेन्द्रम से प्रारंभ हुआ। आचार्य घोष बाबू और कर्नाटक केसरी श्री जगन्नाथ राव जोशी जैसे ही साथ-साथ पधारे आपका हार्दिक स्वागत-अभिनंदन किया गया। प्रदेश की राजधानी- त्रिवेन्द्रम में ही आयोजित एक पत्रकार सम्मेलन में जनसंघ के नेता ने स्पष्ट कर दिया कि जनसंघ कांग्रेस के नागपुर प्रस्तावों में दिखाई देने वाली अधिनायकवादी वृत्तियों का आधारभूत रूप में विरोधी है तथा उनका दल जन स्वातंत्र्य एवं जनतांत्रिक आदर्शों का विश्वासी है। अन्य स्थानों की भांति उन्होंने त्रिवेन्द्रम में भी स्पष्ट कर दिया कि उनका दल आगामी स्थानीय निर्वाचनों  में एक स्वतंत्र दल के रूप में भाग लेगा तथा किसी भी अन्य दल के साथ संयुक्त मोर्चा नहीं बनाएगा।
त्रिवेन्द्रम में विशाल जनसभा
त्रिवेन्द्रम में जनसभा आशातीत रूप में सफल हुई। जनसंघ के नेता के मुख से उसके दल के उद्देश्य और लक्ष्यों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए नगर का सारतत्व उमड़ पड़ा। दो घंटे तक चलने वाले श्री घोष के भाषण को पूर्ण शांति के साथ सुना गया। हां, बीच-बीच में तालियों की गड़गड़ाहट अवश्य होती रही। देखने से लगता था कि देश की समस्याओं के बारे में जनसंघ का सर्वबुद्धिगम्य, गंभीर, तथ्यपूर्ण, प्रामाणिक दृष्टिकोण श्रोताओं के अन्तर को स्पर्श कर रहा था।
एरनाकुलम
एरनाकुलम के शांत और सुंदर नगर में जनसंघ के अध्यक्ष के स्वागतार्थ भूतपर्वू एडवोकेट जनरल श्री टी.एन. सुब्रह्मण्यम अय्यर की अध्यक्षता में एक स्वागत समिति का गठन किया गया। समिति के सदस्यों में से एक स्वर्गीय डॉ. वी.के. जॉन के निकट संबंधी और एरनाकुलम के प्रसिद्ध व्यापारी श्री पी.वी. कुरियन भी थे। वुडलैंड होटल में आयोजित प्रीतिभोज में नगर के लगभग 100 प्रमुख प्रतिष्ठित सज्जनों ने भाग लिया। श्री घोष बाबू ने उपस्थित सज्जनों के समक्ष जनसंघ की नीति-विशेष रूप से उसका आर्थिक पहलू स्पष्ट किया।

देश के प्रमुख समाचार-पत्रों की प्रतिक्रिया
पं. नेहरू अनुशासन के डण्डे से
तानाशाही लादना चाहते हैं
आज, वाराणसी
नेहरूजी कांग्रेस एवं सरकार की ओर से एक के बाद एक बड़ी-बड़ी व्यापक क्षेत्र को प्रभावित करने वाली घोषणा करते चलते हैं। ये घोषणाएं इस तेजी से की जाती है तथा इनका कार्यान्वयन इतनी शिथिल गति से होता है कि विश्वास नहीं होता कि जितनी बातें कही जाती हैं वे कार्यान्वित भी की जा सकेंगी। नागपुर के सहकारी कृषि संबंधी प्रस्ताव पर कितनी व्यापक चर्चा हो रही है, उसका जिस उग्रता के साथ विरोध हो रहा है उसे देखते हुए उसके कार्यान्वय के संबंध में आशंका पैदा होने लग गयी है। इसके पूर्व गल्ले का थोक व्यापार पूर्णत: सरकार के माध्यम से करने की घोषणा की जा चुकी है। यह कार्य भी इतना व्यापक है कि यह कैसे होगा, इस संबंध में आशंका प्रकट की जा रही है।
इण्डियन एक्सप्रेस, दिल्ली
प्रधानमंत्री अपने ऊंचे पद का दुरुपयोग भारतीय जनता के उन वर्गों को, जो उनकी नीतियों के विरोधी हैं, गाली देने अथवा उनकी जबान पर ताला ठोंकने के लिए नहीं कर सकते। भले ही उनके चारों ओर बसे हुए चापलूस अपने व्यक्तिगत अथवा राजनीतिक स्वार्थों के लिए उनके मौखिक आदेशों के अनुसार इधर से उधर करवटें बदलते रहें परंतु अभी भी देश में व्यक्तियों का एक सुदृढ़ वर्ग शेष है जो भिन्न मत रखता है, हो सकता है उसके मत सही न हों। पर उनके मतों की ओर भी इतना ही ध्यान दिया जाना जरूरी है जितना पं. नेहरू के चरणों की रज पाने वालों की ओर।
क्या हम वास्तव में एक प्रजातंत्र हैं? दिल्ली में एकत्र प्रशिक्षित दरबारियों की यह फौज, जो कभी इधर की बात कहती है तो कभी उधर की, पड़ोसी देश, जिसकी हम अक्सर आलोचना करते हैं, कहीं अधिक जनतंत्र का उपहास उड़वाने वाली है।
केरल सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी सर्वप्रथम थे, जिन्होंने नागपुर प्रस्तावों पर खुशी मनाई और उनका समर्थन किया। वह दिन शीघ्र ही आ सकता है जब अचानक पं. नेहरू स्वयं को श्री नम्बूदरीपाद और अजय घोष के आलिंगन में पायेंगे और पीछे खड़े होकर क्रुश्चेव कुटिल हंसी हंस रहे होंगे। यह मित्रता का आलिंगन नहीं होगा बल्कि मृत्यु का शिकंजा होगा।

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