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बेंगलुरू में 22 अगस्त को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्व. कृष्णप्पा को श्रद्धांजलि देने के लिए एक सभा हुई। उनका 10 अगस्त को निधन हो गया था। श्रद्धांजलि सभा में सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि हमें अपने जीवन में परिवर्तन के लिए कृष्णप्पा जी के जीवनादर्शों का अनुकरण करना चाहिए, और उनके जीवन से एक आदर्श-आदत (गुण) का जीवनभर पालन करने का व्रत लेना चाहिए। उनके पूरे जीवन में मूल्य, प्रतिबद्धता, अनुशासन एक समान दिखते हैं। यह हमें बताता है कि किस प्रकार महान व्यक्तित्व सहज रूप से मूल्यों को अपने जीवन में ढाल लेते हैं। उन्होंने कहा कि कृष्णप्पा जी ने अपना पूरा जीवन सामाजिक कायोंर् के लिए जिया। वे सादगी के प्रतीक थे।
सह-सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि 'वे मृत्युमित्र थे। उन्होंने 3 दशक तक दृढ़ संकल्प के साथ कैंसर से लड़ाई लड़ी। वह मेरे स्कूल के दिनों से ही मेरे लिए आदर्श रहे।' पेजावर स्वामी परमपूज्य विश्वेशतीर्थ जी ने कहा कि वे एक राष्ट्रभक्त थे। उनका जीवन स्पर्शमणि जैसा था, जो संगठन से लोगों को जोड़ने के लिए अपनी ओर आकर्षित करता था। जीवन भोग के लिए नहीं, बल्कि त्याग और सेवा के लिए है। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। प्रसिद्ध कलाकार टी.एन. सीताराम ने कहा कि कृष्णप्पा जी के जीवन ने मुझे बचपन से प्रभावित किया। मेरे पिताजी एक कांगे्रसी थे और उनकी संघ के प्रति अपनी अवधारणा थी, लेकिन हमारे घर कृष्णप्पा जी नियमित रूप से आते थे और उन्होंने संघ पर मेरे पिता जी की राय को बदल दिया। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने व्यावहारिक रूप से मुझे पंथनिरपेक्ष शब्द का सही अर्थ समझाया। सामाजिक सद्भाव पर उनके विचारों ने मुझे जीवन के बुनियादी विचारों को समझने लायक बनाया। दो दशकों तक कृष्णप्पा जी का उपचार करने वाले डॉ. श्रीधर ने कहा कि पहले उन्होंने एक रोगी को देखा, लेकिन बाद में उनमें योगी के दर्शन हुए। जीवन के प्रति उत्साह से बीमारी से अंत तक संघर्ष किया। इस अवसर पर संघ और अन्य संगठनों के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में उपस्थित थे। – प्रतिनिधि
महान साधक कृष्णप्पा जी
-भागैय्या
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्व. कृष्णप्पा जी एक महान साधक थे। उनका चमकता चेहरा, उनकी बुद्धिमत्ता, उनका सुगठित शरीर और मन, उनका सात्विक जीवन, उनकी शुचिता देखते ही बनती थी। उनका रहन-सहन बहुत ही साधारण था, लेकिन अनुशासन के मामले में वे बड़े ही कठोर थे। आज उनके मार्गदर्शन को हर कोई याद कर रहा है। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मुझे बेंगलुरू क्षेत्र का दायित्व दिया तो मैं उनके पास गया। उन्होंने मुझसे कहा कि हर विभाग केन्द्र में दो दिन के लिए जाओ और प्रचारकों के साथ समय बिताओ। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक कार्यकर्ता के घर भी जाओ, उनके परिवार वालों से मिलो और उन्हें समझने का प्रयास करो। धीरे-धीरे आगे बढ़ो, सब कुछ संभव हो जाएगा, लक्ष्य की प्राप्ति में जल्दबाजी मत करो। उनका मार्गदर्शन आज भी काम आता है। वे अनेक वर्ष तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दक्षिण और दक्षिण पूर्व क्षेत्र के प्रचारक प्रमुख रहे। उनके दौरे सामाजिक होते थे, लेकिन बहुत ही अनूठे। वे कहते थे, प्रवास में कार्यकर्ताओं के घरों में रुको। वे स्वयं एक या दो दिन किसी कार्यकर्ता के घर में ठहरते थे। एक कार्यवाह ने भाषण में कहा कि सचमुच में एक महर्षि उनके घर आते थे और उनके साथ रहते थे। वे कार्यकर्ताओं को नई दिशा देते थे और उत्साह से भर देते थे। वे पारिवारिक संस्कार पर बहुत जोर देते थे। हैदराबाद के एक कार्यक्रम में उन्होंने वहां उपस्थित परिवारों से पूछा कि कितने लोग अपने माता-पिता के साथ रहते हैं? आपके परिवार मेंे दादा-दादी के साथ तीसरी पीढ़ी के कितने लोग रहते हैं? और सुबह आप किस समय रोजाना उठ जाते हैं? कितने परिवार के सदस्य रोजाना या सप्ताह में एक बार एक साथ भोजन करते हैं? उनके इन सवालों से हिन्दू परिवार व्यवस्था के स्वस्थ उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत होते हैं। उन्होंने पूछा कि कितने परिवार सप्ताह में एक बार सत्संग के लिए जाते हैं? वे एक मौन सामाजिक प्रेरणा-स्रोत थे। उन्होंने कई क्षेत्रों में अपने अनुभव से अनेक प्रयोग किए, जिनमें से एक है गुरुकुल। उनका कहना था कि समाज की जिम्मेदारी है कि वह समाज के हर बच्चे को शिक्षित करे। उन्होंनेे जैविक खेती के लिए भी सफल प्रयोग किए। उनकी दृष्टि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक थी। कोई व्यक्ति बाएं से दाएं टहलता था तो उसे सलाह देते थे कि दाएं से बाएं टहलो, क्यांेकि बाईं तरफ चुम्बकीय तरंगें होती हैं। आज वे भौतिक देह के रूप में हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका साधनामय जीवन हम सबको प्रेरित करता रहेगा।
(लेखक रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह हैं)
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