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ज्योतिष एक अंधविश्वास है या फिर विज्ञान इसको लेकर तमाम तरह की बातें अनादि काल से होती रही हैं। हमारी संस्कृति में ज्योतिष विद्या का सदैव से महत्व रहा है। महर्षि भृगु को ज्योतिष विद्या का जनक कहा जाता है। मान्यता है कि वे त्रिकालदर्शी थे। ज्योतिष को लेकर आज भी लोगों में तमाम तरह की भ्रातियां हैं। कई लोग ज्योतिष को पाखंड बताते हैं लेकिन यह सत्य नहीं है। ज्योतिष के जानकार ज्योतिष को एक विज्ञान बताते हैं। विद्वानों के अनुसार यह विज्ञान से भी परे का विज्ञान है। यह एक ऐसी विद्या है जिससे भविष्य में होने वाली तमाम घटनाओं के बारे में पहले से पता किया जा सकता है, बशर्ते व्यक्ति को ज्योतिष का वास्तविक ज्ञान हो।
रहिमन बात अगम्य की कहिन सुनन की नाहिं।
जो जानत ते कहत नहीं, कहत ते जानत नाहिं।।
—अब्दुल रहीम खानखाना
सत्य, अगम्य या परमात्मा का बखान (वर्णन) नहीं किया जा सकता। जो जानते हैं, वे कहते नहीं और जो कहते हैं वे कुछ जानते नहीं।
ऐसा ही हाल हमारे वेदों और वेदांगों का हुआ है जिनके बारे में बगैर कुछ जाने उनकी आलोचना करने वाले आपको बहुत से कथित विद्धान मिल जाएंगे। ज्योतिष विद्या हमारे वेदांगों में से ही एक है जिसे शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद की भांति अपरा (सांसारिक या भौतिक) विद्याओं की श्रेणी में रखा गया है। अपरा विद्या यानी ऐसा ज्ञान जो लौकिक विषयों तथा लोकाचार के लिए सार्वकालिक उपयोगी तथा सुलभ हो। इस विषय में मुंडक उपनिषद् में कहा गया है-
सुगम तत्रापरा ऋग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोथर्ववेद:
शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुत्तफं छन्दो ज्योतिषमिति।
अथ परा ययातदक्षरमध्गिम्यते॥ 5॥
ज्योतिष ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, उनकी गति तथा उनके साथ हमारा संबंध बताने वाली विद्या है। यहां हम एक विद्या या ज्ञान के तौर पर इस प्राचीन भारतीय, विरासत का महिमामंडन नहीं कर रहे हैं बल्कि आधुनिक संदर्भ में समय की कसौटी पर खरे उतरे इस तर्कसंगत वैज्ञानिक ज्ञान की प्रासंगिकता तथा उपयोगिता पर छिड़े विवाद का समाधान करना चाहते हैं। शर्त बस यही है कि ज्योतिष जैसे विषय पर हमारा मत किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो और न ही हम इसे हिन्दू धर्म विशेष के कर्मकांडीय विधानों की तरह देखें। अगर ज्योतिष इतना ही रूढि़वादी ज्ञान होता तो इतनी सदियों की यात्रा तय कर आज आधुनिकतम रूप में यह विश्व भर में इतना लोकप्रिय कतई नहीं होता। आज ज्योतिष पढ़ने और सीखने वाले लोगों में अमरीका और रूसी विद्यार्थियों की बड़ी तादाद है।
ज्योतिष को न मानने वालों को चुनौती
ज्योतिष में भविष्य कथन की क्षमताओं के आकलन पर ही तमाम विवाद उठते रहे हैं। ज्योतिष पर प्रश्न उठाने वाले लोगों को एक खुली चुनौती है। ऐसी महिलाएं जो गर्भवती हों और लगभग डेढ़ महीने बाद उनका प्रसव होना हो मेरा दावा है कि कोई भी डॉक्टर चाहे वह कहीं से भी प्रशिक्षित हो, बच्चे का सही जन्म समय नहीं बता सकता, लेकिन ज्योतिष से ऐसा संभव है। यदि कोई चुनौती लेना चाहे तो ऐसी 50 महिलाओं के जन्म का विवरण, जिसमें जन्म तिथि के साथ जन्म समय तथा जन्म स्थान भी शामिल हों, तमाम तथ्यों को ज्योतिष पर शोध करने वाले शोधार्थियों को दिया जाए। उन सभी को सलाह-मशविरा किए बिना उन महिलाओं के प्रसव के सही समय की गणना के लिए कह दीजिए। मेरा दावा है कि ज्योतिष शोधार्थियों द्वारा गणना करके दिए गए प्रसव के समय को यदि 72 घंटे की समय सीमा में रखा जाए तो 99 प्रतिशत मामलों में वह सही बैठेगा, अगर समय सीमा 48 घंटे की कर दी जाए तो यह 95-97 प्रतिशत तक सटीक होगा। इसे 24 घंटे तक समेट दिया जाए तो भी यह प्रतिशत 90 से कम नहीं रहेगा। आजकल बदलती जीवन शैली के कारण देर से विवाह का चलन बढ़ा है। ऐसे दंपति को जब किसी वजह से संतान सुख पाने में विलंब होता है तब भी ज्योतिष कारगर होता है। ज्योतिष का कोई भी गंभीर शोधार्थी पति-पत्नी की जन्म कुंडली से उनके संतान प्राप्ति का समय ठीक-ठीक बता सकता है। कहा जाता है, कि ज्योतिष विज्ञान है तो यह कोई कपोलकल्पित धारणा नहीं है। यह विज्ञान है इस बात को विज्ञान के मूलभूत तीन पैमानों पर परखा जा सकता है। पहला विज्ञान में कारण व परिणाम का संबध होता है। ज्योतिष में भी यही सिद्धांत निहित है लेकिन यहां हम कारण-परिणाम का स्थूल रूप नहीं दिखा पाते। दूसरा, विज्ञान में किसी बात को सिद्ध करने की एक पद्धति होती है। ज्योतिष में भी कुंडली बनाने से लेकर दशा, कालगणना तक निश्चित पद्धति का पालन किया जाता है। अंतिम और तीसरा विज्ञान में पुनरावर्तन का सिद्धांत है जो ज्योतिष में भी यथासंभव दोहराया जाता है।
मुगल भी ज्योतिष के आगे नतमस्तक थे
ज्योतिष के आगे मुगल बादशाह पूरी तरह नतमस्तक थे। उनका ज्योतिष पर अटूट विश्वास था। बिना ज्योतिष की सलाह के वे कोई भी काम नहीं करते थे।
ज्यों नाचे कठपूतरी, करम नचावत गात।
अपने हाथ रहीम ज्यों, नहीं आपने हाथ।।
—अब्दुल रहीम खानखाना
जैसे नट कठपुतली को नचाता है, वैसे ही कर्म मनुष्य को नचाते हैं। जीवन में होनी अपने हाथ नहीं होती। जो इस होनी को पहले से बांच ले, वही पंडित है। इसी से आप ज्योतिष की सामर्थ्य जान जाएंगे।
न तत्सहस्रम् करिणां वाजिनां च चतुर्गणम् ।
करोति देशकालज्ञो यथैको दैवचिन्तक:।।
—श्लोक 38, बृहत्संहिता
हजार हाथी और चार हजार घोड़े मिलकर जो काम नहीं कर सकते, वह एक देशकाल मर्मज्ञ ज्योतिषी कर सकता है। यानी सही ज्योतिषीय परामर्श और मार्गदर्शन की उपयोगिता हजारों वर्ष पहले भी मानी जाती रही है। मध्यकालीन भारतीय इतिहास को पढ़ने वाले यह भली-भांति जानते हैं कि भारत पर आक्रमण करने वाले तमाम लोग, चाहे वे तुर्क हों, मंगोल या फारसी, किसी न किसी रूप में ज्योतिषीय सलाह का अनुसरण करते रहे हैं। हमारे मध्यकालीन इतिहास पर नजर डालें तो इसका पहला महत्त्वपूर्ण उदाहरण मिलता है तैमूर लंग के विवरण में। तैमूर का जन्म 8 अप्रैल 1336 के दिन सब्जे-शहर (वर्तमान ताजिकिस्तान) में हुआ था। चूंकि उसने बहुत से युद्धों में विजय प्राप्त की थी। इसलिए उसकी पैदाइश शुभ ग्रह स्थिति में मानी जाती है। (संदर्भ: ट्विलाइट ऑफ सल्तनत किशोरीलाल शरण) भारत में मुगल वंश का संस्थापक बाबर था जो तैमूर का ही वंशज था। बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को समरकन्द में हुआ था। अपने पिता की मृत्यु के बाद उसे समरकन्द छोड़ काबुल (अफगानिस्तान)आना पड़ा। वह ज्योतिष में बड़ा विश्वास रखता था। भारत में राणा सांगा से युद्ध से पूर्व भी एक ज्योतिषी ने उससे कहा था कि यह युद्ध ( मुगलों के लिए ठीक नहीं रहेगा। इस बात का जिक्र बाबरनामा में मिलता है। (संदर्भ : पृष्ठ 222,द क्रीसेंट इन इंडिया एस. आर. शर्मा) ज्योतिष के अलावा बाबर सामुद्रिक शास्त्र (अंग लक्षण) की भी थोड़ी-बहुत जानकारी रखता था। शेर खान को देखकर उसने मीर खलीफा को ताकीद किया था- 'यह अफगान छोटी-छोटी बातों से विचलित होने वाला नहीं है। यह भविष्य में महान व्यक्ति हो सकता है। शेर खान पर नजर रखो क्योंकि वह चतुर व्यक्ति है और उसके ललाट पर राजलक्षण दिखाई पड़ते हैं।' (संदर्भ पृष्ठ 38, उत्तरमध्यकालीन भारत -अवध बिहारी पाण्डेय)
बाबर की सामुद्रिक शास्त्र में रुचि तथा ज्योतिषीय समझ ने उसे कभी निराश नहीं होने दिया। वह घोर आस्तिक था और मानता था कि ईश्वरीय अनुकंपा के साथ उसका भाग्य सूर्य फिर द्विगुणित दीप्ति के साथ प्रकाशित होगा ( पृष्ठ 26, उत्तरमध्यकालीन भारत -अवध बिहारी पाण्डेय)। इसीलिए बाबर ने अपने पुत्र हुमायूं को अन्य शास्त्रों के साथ गणित, दर्शन तथा ज्योतिष की शिक्षा भी दिलवायी। फलित ज्योतिष में तो हुमायूं इतना पारंगत हो चुका था कि अनेक अवसरों पर वह अपनी गणना को ही मानकर चलता था। हमीदा बानो से विवाह के समय उसके ज्योतिष ज्ञान और स्वप्नदर्शन ने उसे इस संबंध में निहित सौभाग्य का परिचय दे दिया था। उसने ज्योतिष के संबंध में अनेक लेख भी लिखे थे। उसने नौ ग्रहों के भवन बनवाए हुए थे। ज्योतिष की गणना के अनुसार ही वह उनका प्रयोग करता था। इन्हीं भवनों में बैठकर ग्रहों की स्थिति के अनुसार कूटनीतिक फैसले लेता था। यहां तक कि दूसरे राजाओं और बादशाहों से भी इन्हीं भवनों में मिलता था। हुमायूं ने ज्योतिष के कहे अनुसार ही हमीदा बानो से विवाह किया था। कद में हुमायूं से बेहद छोटी हमीदा से उसके अनमेल विवाह की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि अकबर का जन्म था, जिसने भारत में मुगल सल्तनत को विस्तार तथा स्थायित्व भी दिया। अकबर के दरबार में नवरत्नों में से एक थे महान ज्योतिषी ज्योतिक राय। इस बात का उल्लेख 'अकबरनामा' और 'जहांगीर नामा' में मिलता है। अकबर की जन्म तथा राज्यारोहण की कुंडलियां ज्योतिक राय ने ही बनाई थीं जो उनकी ज्योतिषीय कुशलता के साथ इस शास्त्र में अकबर की आस्था की भी परिचायक है। अकबर के दरबार में थे अब्दुल रहीम खानखाना। वह एक अच्छे ज्योतिषी तथा बहुभाषाविद् थे। वह अरबी, फारसी, तुर्की के अलावा संस्कृत, हिंदी, अवधी और ब्रजभाषा में निपुण थे। अपनी चमत्कारिक काव्यशक्ति के साथ उन्होंने 'खलकौतुकम्' की रचना की। ज्योतिष के इस काव्य में अरबी, फारसी भाषा के शब्दों के साथ संस्कृत छन्द तथा व्याकरण नियमों का पूर्णतया पालन किया गया है। रहीम की भी हिन्दू संस्कृति में गहरी आस्था थी और कृष्ण -राधा प्रणय-विरह में उनकी रति-गति थी। हालांकि वे तुर्क मुसलमान थे, लेकिन खड़ी भाषा में रचे गए उनके दोहे आज भी जन-जन में लोकप्रिय हैं। जहांगीर की ज्योतिष में गहरी आस्था का कारण भी थे ज्योतिक राय। उनकी कई भविष्यवाणियों के सत्य सिद्ध होने पर जहांगीर ने उन्हें अनेक बार सम्मानित किया। 'जहांगीरनामा' में इन घटनाओं का सिलसिलेवार ढंग से विवरण भी दिया गया है। इनमें से कुछ भविष्यवाणियां तो बेहद सटीक थीं। इनमें से एक उसके पुत्र शाहशूजा के ऊंचाई से गिरकर भी सलामत रहने और दूसरी उसकी एक बेगम की मृत्यु तथा तीसरी उनके एक अन्य पुत्र की मृत्यु से संबंधित थी।
ज्योतिक राय ने ही जहांगीर के गंभीर रूप से बीमार होने पर उनके ठीक होने की भविष्यवाणी भी की थी। जहांगीर पर ज्योतिष का प्रभाव इसी बात से आंका जा सकता है कि उसने बारह राशियों के प्रतीक चिह्नों को सोने के सिक्कों के एक तरफ मुद्रित करवा दिया था। जहांगीर के पुत्र खुर्रम ( शाहजहां) का जन्म 5 जनवरी 1592 को हुआ था जिसका 'षष्ठीपूर्ति' समारोह 20 जनवरी 1652 के दिन किया गया था। 'षष्ठीपूर्ति' ज्योतिषीय गणना के आधार पर की जाती है और इसका उल्लेख 'शाहजहांनामा' में मिलता है। इसी तरह शाहजहां के विवाह का मुहूर्त भी ज्योतिषियों ने बताया था। ये सभी बादशाह अपनी संतानों की जन्मकुंडलियां भी बनवाया करते थे। यदि ज्योतिष केवल हिन्दू धर्म या भगवाकरण का पर्याय होता तो कम से कम तुर्क तथा मंगोल मूल के मुगल तो ज्योतिष के आगे इस कदर नतमस्तक नहीं होते। ज्योतिष की महत्ता, इसकी उदारता तथा इसका गांभीर्य इसी बात में है कि यह किसी रूढि़वाद से जुड़ा हुआ नहीं है। -के.एन.राव
(लेखक वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य व भारतीय विद्या भवन,दिल्ली में ज्योतिष विभाग में सलाहकार हैं)
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