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'अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देता है। इसकी आड़ में संवैधानिक धोखाधड़ी हुई है। भारतीय संविधान में 1949 में ही अनुच्छेद-370 जोड़ा गया था, जबकि 1952 में शेख अब्दुल्ला के दबाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू झुक गए और जम्मू-कश्मीर के लिए अलग प्रधान, अलग निशान और अलग झण्डे की मांग स्वीकार कर ली। यह भारत के संविधान की मूल भावना के बिल्कुल विपरीत था। इसका अनुच्छेद 370 से कोई सम्बंध नहीं है।' ये विचार हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सम्पर्क प्रमुख श्री अरुण कुमार के। श्री कुमार 9 सितम्बर को नई दिल्ली में 'परिसंवाद एवं लोकार्पण-धारा 370' के नाम से आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। इसका आयोजन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय,भोपाल और जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र ने संयुक्त रूप से किया था।
श्री कुमार ने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर में 1954 में प्रभावी होने वाले राष्ट्रपति के आदेश के अनेक प्रावधान संविधान की मूल भावना के विरुद्ध हैं। अनुच्छेद-370 की आड़ में इन्हें राष्ट्रपति के आदेश द्वारा लागू कर दिया गया। इसके विरोध की संभावना को टालने के लिए इसका उल्लेख भारतीय संविधान के मूल पाठ में नहीं, बल्कि उसके एक अनुलग्नक (एनेक्चर) में किया गया। श्री कुमार ने सवाल उठाया कि जो काम भारत की संसद नहीं कर सकती है वह काम राष्ट्रपति कैसे कर सकते हैं? नेहरू और शेख की इस धोखाधड़ी पर उस समय संसद से लेकर सड़क तक बहस हुई थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, एन.सी. चटर्जी जैसे बड़े नेताओं ने इसका जमकर विरोध किया था। उस समय नेहरू ने कहा था कि जनता की इच्छा सर्वोच्च है। कश्मीर के लोग ऐसा चाहते हैं। इसलिए उनकी इच्छा पर ऐसा किया गया है। तब विरोध करने वाले नेताओं ने कहा था कि जब जनता की इच्छा पर ऐसा किया जा रहा है तो अब जनता के बीच ही लड़ाई लड़ी जाएगी। इसके बाद प्रजा परिषद् के साथ डॉ. मुखर्जी ने कश्मीर के अलग प्रधान, अलग निशान और अलग विधान के विरोध में आन्दोलन खड़ा किया। उन्होंने कहा कि अब तक अनुच्छेद-370 और जम्मू-कश्मीर के बारे में जानकारियों का अभाव है और लोग आधी-अधूरी जानकारी पर ही बहस और चर्चा करते हैं।
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जम्मू-कश्मीर में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है। अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की राज्य से बाहर विवाह करती है, तो वह पैतृक सम्पत्ति से बेदखल हो जाती है, और कोई बाहर की लड़की कश्मीर के किसी लड़के से विवाह करती है, तो राज्य में उसे हर तरह के अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। इसी तरह 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से शरणार्थी के रूप में आकर जम्मू संभाग में रहने वाले हिन्दू और सिखों को अब तक मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखा गया है। वे लोग पंचायत या विधानसभा के चुनावों में मतदान भी नहीं कर सकते हैं, केवल लोकसभा चुनाव में मतदान कर सकते हैं। उनके बच्चे जम्मू-कश्मीर में न तो उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और न ही नौकरी पा सकते हैं। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियों के लिए भी जम्मू-कश्मीर में किसी तरह का आरक्षण नहीं है, जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार वहां 11 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति के हैं।
श्री कुमार ने यह भी कहा कि नेहरू और शेख की धोखाधड़ी से जम्मू-कश्मीर में किसी का भी भला नहीं हुआ है। जम्मू-कश्मीर को लेकर सूचनाओं का विकृतिकरण हुआ है। जरूरत है तथ्यों को सामने लाने की और उस पर स्वस्थ और सार्थक बहस कराने की। इससे पूर्व जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक श्री आशुतोष ने विषय की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि 370 एकमात्र ऐसा अनुच्छेद है, जो अस्थाई है और इसके अन्दर ही लिखा गया है कि इसे कैसे हटाया जाए। समारोह में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में 'धारा-370 के प्रभाव और निहितार्थ' विषय पर शोध करने वाले स्वतंत्र पत्रकार श्री सन्त कुमार शर्मा द्वारा तैयार रपट 'धारा-370 के प्रभावों का विश्लेषण' का लोकार्पण भी हुआ। श्री शर्मा ने बताया कि शीघ्र ही इस रपट का बड़ा स्वरूप पुस्तक के रूप में सामने आएगा। वरिष्ठ पत्रकार श्री एन.के. सिंह ने कहा कि यदि हम तन कर खड़े होते तो जम्मू-कश्मीर की समस्या नासूर नहीं बनती। अगर भारतीय संविधान में 120 संशोधन हो सकते हैं, तो जम्मू-कश्मीर के सम्बंध में भी इसी तरह की कुछ पहल क्यों नहीं की गई?
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय,भोपाल के कुलपति प्रो. बी. के. कुठियाला ने कहा कि आजादी के बाद भी हमारी अनेक व्यवस्थाएं बदलीं नहीं। विदेशी ताकतें जो कर गई हैं उन्हीं को हम अब तक ढो रहे हैं। जब हम अपने संवादों का दायरा बढ़ाते हैं तो समस्याओं का समाधान होता है। उन्होंने यह भी कहा कि उनका विश्वविद्यालय अभी धारा-370 को लेकर काम कर रहा है। कार्यक्रम के मंच पर वरिष्ठ पत्रकार श्री जवाहरलाल कौल भी विराजमान थे। इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ पत्रकार और कई संगठनों के कार्यकर्ता उपस्थित थे। -प्रतिनिधि
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