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नई दिल्ली। 25 जुलाई को चिन्मय सद्भावना केन्द्र, लोधी रोड़, नई दिल्ली में विश्व हिन्दू परिषद् के मार्गदर्शक आचार्य गिरिराज किशोर की श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई।
श्रद्धांजलि सभा के प्रारंभ में विहिप के महामंत्री चंपत राय ने कहा कि- आचार्य जी को भाऊजी जुगादे संघ की शाखा में लेकर आए थे और 1942-43 में उन्होंने मैनपुरी और आगरा में संघ कार्य को बढ़ाया था। 1948 में संघ पर प्रतिबंध के समय वे जेल में रहे। उत्तर प्रदेश के बाद वे उड़ीसा में विभाग प्रचारक रहे और भारतीय जनसंघ के दौर में भरतपुर में श्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ भी उन्होंने कार्य किया। विद्यार्थी परिषद् के पहले संगठन मंत्री का दायित्व भी उन्हें प्राप्त हुआ था। 1948 में विहिप में आने के बाद हिन्दू सम्मेलन, धर्माचार्यों के साथ संवाद, बजरंग दल का संगठन विस्तार और दुर्गावाहिनी के मार्गदर्शक रूप में भी उनकी विशिष्ट भूमिका रही।
पंजाब विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अध्यक्ष अरुण खन्ना ने कहा कि आतंकवाद के दौर में जब कोई पंजाब की ओर देखता भी नहीं था तब संतों के साथ हर की पैड़ी से लेकर हरमंदिर तक जो यात्रा निकली वह साहसिक थी, संत अपनी वसीयत करके आए थे। इतने तनाव में भी सब कुछ संभालकर आचार्य जी ने 12, 13 मार्च 1983 को अमृतसर में भव्य हिन्दू सम्मेलन करवाया था।
साध्वी विभानंद ने कहा कि आचार्य जी मेरे प्रेरणास्रोत, मार्गदर्शक और पितृतुल्य गुरु थे। कुछ लोग इतिहास में पढ़े जाते हैं लेकिन उन्होंने समाज, धर्म और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य किया है।
बजरंग दल के पूर्व अध्यक्ष जयभान सिंह पवैया ने कहा कि आचार्य जी का व्यक्तित्व समुद्र की गहराई की तरह था- वे संगठन में मंचों पर भाषण के लिए नहीं वरन् रचनात्मक कार्य करने के लिए याद किए जाएंगे। हमने उनका बौद्धिक रूप भी देखा, वे स्वाध्यायी व्यक्ति थे। कार्यकर्ताओं की एक बड़ी श्रृंखला खड़ी करने का उन्हें श्रेय जाएगा।
विहिप के केन्द्रीय मंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन ने कहा कि – आचार्य जी कार्यकर्ताओं के सुख दु:ख और घर-परिवार की पूरी चिन्ता करते थे, मैं गुजरात में था और मेरी अनुपस्थिति में वे 2 दिन मेरे घर रहकर आए,बाद में रहस्य पता चला कि वे यह देखने आए थे कि मैं संगठन कार्य के लिए कितना समय दे सकता हूं। वे प्रेम से अधिकारपूर्वक कार्यकर्ताओं से कार्य लेते थे।
आचार्य गिरिराज किशोर की भानजी अलका चतुर्वेदी ने कहा कि वे एक आदर्श पुत्र,आदर्श भाई और देश के राष्ट्रनायक थे। संघ और विहिप के माध्यम से उन्होंने देश और समाज के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।
विहिप के उपाध्यक्ष ओमप्रकाश सिंहल ने कहा कि 1984 में विहिप द्वारा आयोजित एक कथा में आचार्य जी के प्रथम दर्शन हुए थे जो प्रगाढ़ सम्बन्धों में बदल गए। उनका स्वभाव नारियल के सदृश था,बाहर से कठोर और अंदर से एकदम कोमल। विहिप संगठन कार्य में अशोक सिंहल और आचार्य जी का रिश्ता बलराम और कृष्ण का रहा। अयोध्या में कोई भी यज्ञ और कार्यक्रम ऐसा नहीं था जिसमें आचार्य जी ने मुझे अपने साथ न रखा हो, उनको सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि जिस रामलला के लिए वे जीवन के अंतिम क्षणों तक लड़ते रहे वहां उनका भव्य मंदिर बने।
धर्मयात्रा महासंघ के अध्यक्ष पूर्व विधायक मांगेराम गर्ग ने कहा कि आचार्य जी का ऋषितुल्य जीवन सभी के लिए प्रेरणादायक था, उन्होंने समाज और अध्यात्म जगत को जो दिशा दिखाई वह अद्भुत है। सिख संगत के सरदार चिरंजीव सिंह ने कहा कि आज विहिप का जो संगठन खड़ा दिखाई देता है उसमें अशोक सिंहल जी के साथ आचार्य जी जैसे कुशल संगठन शिल्पी की बड़ी भूमिका है। उन्होंने कार्यकर्ताओं के सुख-दु:ख की चिन्ता कर उनके साथ अपनत्व का भाव बनाकर संगठन की मजबूत नींव खड़ी की।
अभाविप के अध्यक्ष सुनील आंबेकर ने कहा कि 1967 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विद्यार्थी संगठन योजना के लिए आचार्य जी को पहला संगठन मंत्री बनाया था। विद्यार्थी परिषद् के 50वें अधिवेशन में 2004 में जयपुर में पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के सम्मान समारोह में आचार्य जी ने अनुकूलता के बजाय प्रतिकूलता में संगठन शक्ति के विकास को सार्थक बताया था।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने कहा कि आचार्य जी जब वृंदावन में थे तब मैं मथुरा में पढ़ रहा था, वे मुझे पुत्रतुल्य प्रेम देते थे। वे एक कुशल संगठनकर्ता और निर्णयात्मिका बुद्धि के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने विहिप के कार्य को विश्वव्यापी बनाया और अस्वस्थ होने पर भी कार्यक्रमों में शामिल होने की ललक उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का ही प्रमाण थी।
विहिप के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डा. प्रवीण भाई तोगडि़या ने कहा कि संदीपनी आश्रम की एक छोटी जगह से प्रारंभ होकर विहिप का संगठन आज घर-घर, गांव-गांव से होता हुआ अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर फैल गया है, इस कार्य को हमारी पहली पीढ़ी के नेताओं- अशोक जी, डालमिया जी और आचार्य जी ने शीर्ष पर पहुंचाया। 1995 में जब अमरनाथ यात्रा में उग्रवादियों ने बाधा पहुंचानी चाही तो आचार्य जी के नेतृत्व में बजरंग दल ने प्रभावी भूमिका निभाई। रामजन्मभूमि आंदोलन इन्हीं विभूतियों के नेतृत्व में ऊंचाई पर पहुंचा। आचार्य जी का व्यक्तित्व संकल्प और संघर्ष का प्रतिरूप था।
विहिप के पूर्व अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णुहरि डालमिया ने कहा कि- अयोध्या में ढांचा गिरते समय आचार्य जी और मैं साथ-साथ थे। देश में आजादी के बाद से सत्तासीन विभिन्न राजनीतिक दलों ने हिन्दू समाज की दुर्दशा ही की, उन्हें द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाए रखा। अशोक सिंहल और आ. गिरिराज किशोर ने इन प्रतिकूल स्थितियों में विहिप को हिन्दू शक्ति का पर्याय बनाया।
दीदी मां साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि आचार्य जी कहते थे कि उस नाव में नहीं बैठना चाहिए जिसे बचाने का हममें सामर्थ्य न हो। इसी प्रकार अपने पास बहुत सारे पते नहीं रखने चाहिए, इनसे भ्रम और भय बढ़ता है अर्थात एक ही मंजिल का संकल्प हमारे मन में होना चाहिए। उस सभा में भी नहीं जाना चाहिए जहां लोग अनिर्णय की स्थिति में हों अथवा निष्क्रिय लोगों को कानूनी अधिकार प्राप्त हों। प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना सुश्री नलिनी ने कहा कि आचार्य जी ऐसी विभूति थे जो प्रत्येक कार्यकर्ता को अपने करीब मानते थे और उसकी चिन्ता भी करते थे।
भाजपा नेता विनय कटियार ने कहा कि रामजन्मभूमि आंदोलन में आचार्य जी के साथ कई अनुभव हुए। वे दृढ़निश्चयी थे, जब आंदोलन चरम पर था तो वे डिगे नहीं। अंतिम समय तक जब उनमें बोलने की ताकत थी- वे राममंदिर और हिन्दू समाज के विषय में अपनी बात रखते रहे।
विहिप के मार्गदर्शक अशोक सिंहल ने कहा कि विहिप में मेरा पदार्पण 1982 में और आचार्य जी का 1983 में हुआ। मैंने इस पूरी लंबी अवधि में उन्हें अपना बड़ा भाई माना। उनका इतना प्रेम था कि हम सब मिलजुलकर जो निर्णय लेते थे, सोचते थे या विचार करते थे, कभी मतभेद की स्थिति नहीं बनी। 1957 में प.पू. गुरुजी के माध्यम से गोरक्षा का राष्ट्रव्यापी आंदोलन प्रारंभ हुआ था और 1966 में विहिप ने भी संतों के साथ मिलकर गोरक्षा के लिए एक बड़ा सम्मेलन किया था, 1983 में मोरोपंत पिंगले जी की प्रेरणा से एकात्मता यात्रा हुई, इन सभी में आचार्य जी की प्रभावी भूमिका रही। संतों को जोड़ने का कार्य उन्होंने ही किया। वे देश में ऐसी संसद चाहते थे जो हिन्दू समाज के विश्वास वाली, बहुमत वाली संसद हो, उनका यह मनोरथ तो पूर्ण हो गया किन्तु अब उनका कहना था कि मेरी और महंत अवैद्यनाथ जैसे संतों की सांसें राम मन्दिर निर्माण की प्रतीक्षा में चल रही हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने आचार्य गिरिराज किशोर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आचार्य जी का नाम बहुत पहले से सुना था, प्रत्यक्ष रूप से उन्हें विहिप में आने के बाद ही देखा। वे कुशल संगठन शिल्पी थे। उन्हें व्यक्ति को पहचानने की परख थी और उनको देखकर आत्मबल का आभास होता था। किसी भी लिए गये संकल्प या तय कार्यक्रम को परिणति तक पहुंचाने का उनमें अपूर्व कौशल था। नकारात्मकता न तो उनके कार्य में और न ही वाणी में कहीं दिखाई पड़ती है। सहचित्त की भावना उनके व्यवहार में थी। वटवृक्ष अदृश्य हो जाते हैं किन्तु उनकी छाया बनी रहती है। यह परिवार में भी होता है और संगठन में भी। आचार्य जी ने जीकर जो हमें सिखाया है उसे जीकर हमें अगली पीढ़ी तक पहुंचाना होगा। तभी उनकी तपस्या फलदाई होगी और हमें देखकर उनकी आत्मा को आनन्द की अनुभूति होगी, यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
इस श्रद्धांजलि सभा में अन्य विशिष्ट महानुभावों के अतिरिक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी, श्री दत्तात्रेय होसबले, केन्द्रीय मंत्री डा. नजमा हेपतुल्ला, उमा भारती, भाजपा महासचिव मुरलीधर राव, संजय जोशी, विजय गोयल, भाजपा नेता विजेन्द्र गुप्ता, डा. अनिल जैन, सांसद प्रवेश वर्मा, विधायक अनिल शर्मा, डा. मीनाक्षी शर्मा आदि उपस्थित थे। श्रद्धांजलि सभा का संचालन विहिप के मीडिया सेंटर से जुड़े श्री प्रकाश शर्मा ने और धन्यवाद दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष श्री रिखब चंद
जैन ने दिया। प्रस्तुति : सूर्य प्रकाश सेमवाल
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