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-राधा कृष्ण भागिया-
महाभारत के भयंकर युद्ध का दृश्य। भारतवर्ष के लगभग सभी महान प्रतापी योद्धा एक-दूसरे को समाप्त करने को तैयार खड़े थे। पाप तब अपनी चरम सीमा पर पहंुच चुका था, तब अर्जुन और विश्व को भगवान श्री कृष्ण ने संसार की रक्षा के लिए यह संदेश दिया था-
'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।'
ठीक इसी तरह सिन्धु नदी के किनारे सिन्ध के लाखों पीडि़त हिन्दुओं के समक्ष जल से आकाशवाणी हुई कि 'हिन्दू भक्तो, तुम निश्चिन्त होकर अपने घर जाओ, अपने धर्म पर दृढ़ रहो, मैं शीर्घ ही नसरपुर मंे जन्म लूंगा और तुम्हारे सारे संकट दूर कर धर्म की स्थापना करुंगा।' यह कथा है कि करीब 900 वर्ष पहले, जब सिन्ध पर इस्लाम मजहब का राज हो चुका था। उस समय मकरब खान नाम का अत्यन्त अत्याचारी, अहंकारी, मतांध मुस्लिम सम्राट सिन्ध पर राज करता था, जो बाद में स्वयं को मरखशाह के नाम से बुलवाने लगा। वह कट्टर मुसलमान एवं यातना देने वाला था। उसने हिन्दुओं को समाप्त करने का आदेश जारी किया था कि सभी हिन्दू अपना धर्म छोड़कर इस्लाम मजहब स्वीकार करें। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो अपने भगवान को प्रत्यक्ष रूप में प्रमाणित करें नहीं तो जबरन उनका मतान्तरण कर दिया जाएगा।
यही नहीं, मतांतरण नहीं करने वालों को मार दिया जाएगा। इससे पूरे प्रान्त की जनता घबरा गई और चारों ओर खलबली मच गई। इससे भयभीत होकर सभी सिन्ध प्रान्त की हिन्दू संत मंडलियां सिन्धी पंचायती मंत्री से मिलीं। उन्होंने हाथ जोड़कर सात दिनों का समय मांगा, बड़ी आनाकानी के बाद उन्हें मरखशाह ने मात्र 3 दिन का समय दिया।
इस बीच सभी हिन्दू सिन्धु नदी के तट पर वरुण देवता से दया की गुहार करने लगे। किसी के हाथ मंे तबला, किसी के मंजीरा, किसी के हाथ में झंडे तो किसी के हाथ में ढोलक थी। माताएं-बहनें भजन-कीर्तन करने लगीं और भूखे-प्यासे बड़ों से लेकर बच्चों तक किसी ने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया। इस तरह तीन दिन बीत गए, लेकिन भक्तों का विश्वास नहीं डगमगाया और वे भक्ति के मार्ग पर डटे रहे और दया की विनती करते रहे। अंत में तीसरा दिन बीतने से पहले सिन्धु नदी में जोरदार उछाल आया और आकाशवाणी हुई कि ह्यहिन्दू भक्तों तुम सभी अपने घर जाओ, अपने धर्म पर दृढ़ रहो, तुम्हारे संकट दूर करने के लिए मैं सात दिन में नसरपुर में जन्म लूंगा।ह्ण इतना कहकर सिन्धु नदी में प्रकट हुई वरुण देव की वह छवि गायब हो गई।
आकाशवाणी सुनकर सभी हिन्दू नाच उठे और हर्षोल्लास से वरुण देव की जय-जयकार करते हुए अपने घर को चले गए। इस बीच भविष्यवाणी को मरखशाह के जासूसों ने भी सुना था और उन्होंने तुरंत सारी बात सम्राट को बता दी। यह सुनकर सम्राट ने नसरपुर में जन्म लेने वाले बच्चे पर निगरानी रखने का अपने जासूसों को आदेश दिया। ठीक सात दिन बाद सम्वत 1117 चैत्र शुल्क मास की दूसरी तिथि को नसरपुर में रतनलाल और देवकी के घर एक अत्यन्त रूपवान तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। वह बालक न रोया, न उसने मां का दूध पिया और न ही उसने पानी पिया।
सिन्धु नदी का जल जब उसके मुख में डाला गया, तब जाकर उसने अपनी क्रियाएं शुरू कीं। एक दिन मरखशाह का मंत्री बालक के जन्म लेने की सूचना मिलने पर नसरपुर पहंुच गया। वहां रतनलाल के घर जाकर उसने बच्चे को देखने की इच्छा प्रकट की। बच्चा सामने आने पर वह बड़े ध्यान से उसे देखने लगा। अचानक वह आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि वह बालक उसे 16 वर्ष का घोडे़ पर सवार सिपहसलार दिखाई पड़ने लगा। कुछ ही देर बाद उसे वह बालक सिन्धु नदी के किनारे एक सिद्ध पुरुष के रूप में बैठा प्रतीत हुआ।
इस सब के बाद मंत्री को आभास होने लगा कि भविष्यवाणी सिद्ध होने वाली है। फिर उसने रतनलाल से बच्चे को दरबार में सम्राट के समक्ष लेकर चलने के लिए कहा। रतनलाल ने मंत्री से उसके छोटे होने की बात कहकर अनुरोध किया और 15 दिन बाद बच्चे को स्वयं दरबार लेकर पहंुचने का वायदा कर दिया। इसके बाद मंत्री सिन्धु नदी के किनारे से गुजर रहा था कि अचानक उसने देखा कि वही छोटा सा बालक नदी की बीच धारा में प्रकट होकर अपनी सेना लेकर मरखशाह की ओर बढ़ रहा है। साथ ही सिन्दु नदी भी प्रलयंकारी रूप लेकर राजधानी की ओर प्रबल वेग से बढ़ रही है।
यह देखकर मंत्री वहीं रुक गया और हाथ जोड़कर बालक से बोला, ह्यहे शाहों के शाह, मैंने तो आपको अकेले बुलाया था, कृपया अपनी सेना को वापस भेज दीजिए।ह्ण यह सुनकर बालक, जिसका नाम झूलेलाल था, उसने तथास्तु कहा जिसके बाद सेना और वह गायब हो गए। इससे भयभीत मंत्री पूरी रात परेशान रहा और अगले दिन सुबह उठकर मरखशाह के दरबार में जा पहुंचा। इससे पहले की वह कुछ कह पाता कि मरखशाह उससे बोला कि कल शाम को तो चमत्कार ही हो गया तुम बच्चे को देखने और लाने गए थे। लेकिन बच्चा तो यहां आ पहंुचा और किसी सिपाही के रोकने से भी नहीं रुका। उसने अनेक रूप धारण किए और खिड़की से बाहर झांककर अपनी सेना भी दिखाई। फिर उसने अपना आक्रमणकारी रूप दिखाया और आगे बढ़ता गया। अचानक एक प्रकार की चेतावनी देकर संत की तरह शांत हो गया। उसने फिर उपदेश दिया कि ह्यमरखशाह हिन्दुओं को मत सताओ, सभी को अपने धर्म का पालन करने दो वरना तुम मुसीबत में पड़ जाओगे।ह्ण इसके बाद मरखशाह ने मंत्री से कहा कि अब किसी के धर्म मंे हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। उसी दिन से सम्राट ने हिन्दुओं को सताना और उनका मतांतरण बंद कर दिया। यह सुनकर जनता खूब प्रसन्न हुई और झूलेलाल, अमरलाल और जल देवता के नाम से जय-जयकार करने लगी।
यह एक कहानी है जिससे ज्ञात होता है कि संत झूलेलाल ने जल, ज्योति एवं वेदों की महिमा को बढ़ाया और शक्ति-भक्ति से धर्म का प्रचार किया। वरुण देवता को सिन्धी समाज एवं कच्छी लोहाणा समाज अपना इष्ट देवता मानकर पूजता है जिन्होंने राम-कृष्ण की तरह अपना कहा सच कर दिखाया।
लेकिन दुखद यह है कि लोग उनके आदेशों और उपदेशों को भूलते जा रहे है। उन्हांेने आकाशवाणी कर कहा था कि ह्यहिन्दू भाइयो, अपने घर जाओ और अपने धर्म पर अडिग रहो। संत झूलेलाल के उपदेश धर्म रक्षा का ऐसा उपदेश देते हंै कि जो समाज को सुसंगठित,धर्म-प्राण और शीलवान बनाए
रखता है। आज आवश्यकता है,संत झूलेलाल के संदेशों का अधिकाधिक प्रचार करने की।
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