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कहानी : कौए और उल्लू

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Jan 18, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 18 Jan 2014 14:29:07

बहुत पुरानी बात है, एक घने वन में एक विशाल बरगद का पेड़ कौओं की राजधानी था। हजारों कौए अपने परिवार के साथ उस पर पेड़ पर रहते थे। कौओं के राजा का नाम था मेघवर्ण।
बरगद के पेड़ के पास एक पहाड़ी थी, जिस पर असंख्य गुफाएं थीं। उन गुफाओं में उल्लू निवास करते थे, उनके राजा का नाम अरिमर्दन था। अरिमर्दन बहुत पराक्रमी राजा था। कौओं से उसकी पुरानी शत्रुता थी। वह कौओं से इतना चिढ़ता था कि किसी एक कौए को मारे बिना वह भोजन नहीं करता था।
कौओं के लगातार मारे जाने से उनके राजा मेघवर्ण को चिंता हुई। उसने कौओं की एक सभा इस समस्या पर विचार करने के लिए बुलाई। मेघवर्ण ने कहा कि मेरे भाइयों, उल्लुओं के आक्रमणों के कारण हमारा जीवन असुरक्षित हो गया है। हमारा शत्रु बहुत शक्तिशाली है। इसी के साथ वह अहंकारी भी है। हम पर रात को हमले किए जाते हैं। हम रात को देख नहीं पाते।  हम दिन में भी उन पर जाकर हमला नहीं कर पाते, क्योंकि वे गुफाओं के अंधेरों में सुरक्षित बैठे रहते हैं। इस संकट के समाधान के लिए मैने आप लोगों को बुलाया है, आप अपने विचार दें कि इस संकट से कैसे छुटकार पाया जाए।
एक डरपोक कौआ बोला हमें उल्लुओं से समझौता कर लेना चाहिए। वह जो शर्तें रखें, हम उन्हें स्वीकार करें। अपने से ताकतवर शत्रु से पिटते रहने में क्या तुक है?
बहुत-से कौओं ने कांओ कांओ करके इस बात पर विरोध प्रकट किया। मेघवर्ण का सेनापति चीखा, हमें उन दुष्टों से बात नहीं करनी चाहिए। सब उठो और उन पर आक्रमण कर दो। एक निराशावादी कौआ बोला, शत्रु बलवान हैं। हमें यह स्थान छोड़कर चले जाना चाहिए। एक बुजुर्ग कौए ने सलाह दी कि अपना घर छोड़ना ठीक नहीं होगा। हम यहां से गए तो बिल्कुल ही टूट जाएंगे। हमे यहीं रहकर और पक्षियों से सहायता लेनी चाहिए।
कौओं में सबसे चतुर व बुद्धिमान राजा का सलाहाकार स्थिरजीवी नामक कौआ था, जो चुपचाप बैठा सबके विचार सुन रहा था। राजा मेघवर्ण उसकी ओर मुड़ा महाशय, आप चुप हैं। मैं आपकी राय जानना चाहता हूं। स्थिरजीवी बोला महाराज, शत्रु शक्तिशाली हो तो छलनीति से काम लेना चाहिए। कैसी छलनीति? जरा साफ-साफ बताएं स्थिरजीवी बोला आप मुझे भला-बुरा कहिए और मुझ पर जानलेवा हमला कीजिए।' मेघवर्ण चौंका यह आप क्या कह रहे हैं स्थिरजीवी? स्थिरजीवी राजा मेघवर्ण के पास जाकर कान में बोला छलनीति के लिए हमें यह नाटक करना पड़ेगा। हमारे आसपास के पेड़ों पर उल्लू जासूस हमारी इस सभा की सारी कार्यवाही देख रहे हैं। उन्हें दिखाकर हमें फूट और झगडे़ का नाटक करना होगा। इसके बाद आप सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत पर जाकर मेरी प्रतीक्षा करें। मैं उल्लुओं के दल में शामिल होकर उनके विनाश का सामान जुटाऊंगा। घर का भेदी बनकर उनकी लंका ढाऊंगा।
फिर नाटक शुरू हुआ। स्थिरजीवी चिल्लाकर बोला मैं जैसा कहता हूं, वैसा कर राजा कर राजा के बच्चे। क्यों हमें मरवाने पर तुला हैं?
मेघावर्ण चीख उठा गद्दार, राजा से ऐसी बदतमीजी से बोलने की तेरी हिम्मत कैसे हुई? कई कौए एक साथ चिल्ला उठे इस गद्दार को मार दो।
राजा मेघवर्ण ने अपने पंख से स्थिरजीवी को जोरदार चोंच मारकर नीचे गिरा दिया और घोषणा की मैं विश्वासघाती स्थिरजीवी को कौआ समाज से निकाल रहा हूं। अब से कोई कौआ इस नीच से कोई संबंध नहीं रखेगा। आसपास के पेड़ों पर छिपे बैठे उल्लू जासूसों की आंखे चमक उठी। उल्लुओं के राजा को जासूसों ने सूचना दी कि कौओं में फूट पड़ गई हैं। मार-पीट और गाली-गलौज हो रही हैं। इतना सुनते ही उल्लुओं के सेनापति ने राजा से कहा  महाराज, यही मौका हैं कौओं पर आक्रमण करने का। इस समय हम उन्हें आसानी से हरा देंगे।
उल्लुओं के राजा अरिमर्दन को सेनापति की बता सही लगी। उसने तुरंत आक्रमण का आदेश दे दिया। बस फिर क्या था हजारों उल्लुओं की सेना बरगद के पेड़ पर आक्रमण करने चल दी। परन्तु वहां एक भी कौआ नहीं मिला।
मिलता भी कैसे? योजना के अनुसार मेघवर्ण सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत की ओर कूच कर गया था। पेड़ खाली पाकर उल्लुओं के राजा कहा हमारा सामना करने की बजाए भाग गए। ऐसे कायरों पर धिक्कार है। सारे उल्लू 'हू हू' की आवाज निकालकर अपनी जीत की घोषणा करने लगे। नीचे झाडि़यों में गिरा पड़ा स्थिरजीवी कौआ यह सब देख रहा था। स्थिरजीवी ने कांओ कांओ की आवाज निकाली। उसे देखकर जासूस उल्लू बोला अरे, यह तो वही कौआ है, जिसे इनके राजा ने नीचे गिराया था और अपमानित किया था।
उल्लुओं का राजा भी आया। उसने पूछा तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई स्थिरजीवी बोला मैं राजा मेघवर्ण का नीतिमंत्री था। मैंने उनको नेक सलाह दी कहा कि उल्लुओं का नेतृत्व इस समय एक पराक्रमी राजा कर रहे हैं। हमें उल्लुओं की अधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिए। मेरी बात सुनकर मेघवर्ण क्रोधित हो गया और मुझे फटकार कर कौओं की जाति से बाहर कर दिया। मुझे अपनी शरण में ले लीजिए।
अरिमर्दन सोच में पड़ गया। उसके स्याने नीतिमंत्री ने कान में कहा राजन, शत्रु की बात का विश्वास नहीं करना चाहिए। यह हमारा शत्रु हैं। इसे मार दो। एक चापलूस मंत्री बोला नहीं महाराज इस कौए को अपने साथ मिलाने में बड़ा लाभ रहेगा। यह कौओं के घर के भेद हमें बताएगा।
राजा को भी स्थिरजीवी को अपने साथ मिलाने में लाभ नजर आया, उल्लू स्थिरजीवी कौए को अपने साथ ले गए। अरिमर्दन ने उल्लू सेवकों से कहा स्थिरजीवी को मेहमान कक्ष में ठहराओ। इन्हें कोई कष्ट नहीं होना चाहिए।
स्थिरजीवी हाथ जोड़कर बोला महाराज, आपने मुझे शरण दी, यही बहुत हैं। मुझे अपनी गुफा के बाहर एक पत्थर पर सेवक की तरह ही रहने दीजिए। वहां बैठकर आपके गुण गाते रहने की ही मेरी इच्छा हैं। इस प्रकार स्थिरजीवी शाही गुफा के बाहर डेरा जमाकर बैठ गया।
गुफा में नीतिमंत्री सलाहकार ने राजा से फिर से कहा महाराज शत्रु पर विश्वास मत करो। उसे अपने घर में स्थान देना तो आत्महत्या करने समान है। अरिमर्दन ने उसे क्रोध से देखकर कहा तुम मुझे ज्यादा नीति समझाने की कोशिश मत करो। चाहो तो तुम यहां से जा सकते हो। नीतिमंत्री उल्लू अपने दो-तीन मित्रों के साथ वहां से सदा के लिए चला गया।  कुछ दिनों बाद स्थिरजीवी लकडि़यां लाकर गुफा के द्वार के पास रखने लगा, उसने उल्लू राजा से कहा सरकार, सर्दियां आने वाली हैं। मैं लकडि़यों की झोपड़ी बनाना चाहता हूं ताकि ठंड से बचाव हो।' धीरे-धीरे लकडि़यों का काफी ढेर जमा हो गया। एक दिन जब सारे उल्लू सो रहे थे तो स्थिरजीवी वहां से उड़कर सीधे ॠष्यमूक पर्वत पर पहुंचा, जहां मेघवर्ण और कौओं सहित उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। स्थिरजीवी ने कहा, अब आप सब निकट के जंगल से, जहां आग लगी है, एक-एक जलती लकड़ी चोंच में उठाकर मेरे पीछे आइए। कौओं की सेना चोंच में जलती लकडि़यां पकड़कर स्थिरजीवी के साथ उल्लुओं की गुफाओं में आ गई। सबने गुफा के द्वारा पर एकत्रित करके रखी गई लकडि़यों में आग लगा दी, सभी उल्लू जलने या दम घुटने से मर गए। राजा मेघवर्ण ने स्थिरजीवी को कौआ रत्न की उपाधि दी।

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