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मुजफ्फर हुसैन
यह शीर्षक पढ़कर कुछ लोग चौंक सकते हैं, क्योंकि आज की दुनिया ने इंसान के काम और नाम को अपने मत-पंथ की सीमाओं में बांध लिया है। इतना ही नहीं बेचारी भाषा भी धर्म से बंध गई है। प्रार्थना और इबादत में भला क्या अंतर है? एक व्यक्ति जब दो-चार भाषाएं सीख लेता है तब उसे मालूम होता है कि जो मैंने बाईिबल में पढ़ा था वही तो वेद में है। मनुष्य स्वयं का दोष और स्वयं की नासमझी यदि किसी विशेष मजहब के ग्रंथ पर लाद दे तो बेचारा वह धर्म ग्रंथ कर ही क्या सकता है? एक महामानव जब दूसरे देश और दूसरे धर्मग्रंथ में अपने स्वयं की आवाज सुनता है तब उसे महसूस होने लगता है कि यह आवाज वही है जिसे हम परम सत्य के शब्द से विभूषित करते हैं। इसलिए मोहम्मदानंद भी वही है जो रामानंद है और धर्मानंद है।
सम्पूर्ण विश्व इन दिनों स्वामी विवेकानंद की 50वीं जयंती मना रहा है। 11जनवरी 2014 को वे शब्द फिर से दुनिया में गूंजेंगे जो शिकागो की धर्म सभा में स्वामी जी ने ह्यभाइयो और बहनोह्ण शब्द कहकर उच्चारित किए थे। धर्म किसी एक देश और पंथ का नहीं हो सकता है, वह तो सम्पूर्ण मानवता का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए हमारे पंथ, वर्ग और जातियां उसके सामने बौनी हो जाती हैं। गीता, बाईिबल और कुरान की वाणी को स्वामी जी ने इंसानियत की वाणी बनाकर समस्त दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया। स्वामी जी के असंख्य उदाहरण ईसाई और यहूदियों के साथ जुड़े हुए हैं, लेकिन क्या उन्होंने मुसलमानों को भी प्रभावित किया यह सवाल आज भी पूछा जाता है। विश्व में ऐसे असंख्य प्रसंग और उदाहरण हैं जो मुस्लिम बंधुओं से जुड़े हुए हैं। स्वामी जी को इस्लाम के सिद्धांत कितने प्रिय थे और मुस्लिम बंधुओं से उनका कितना घनिष्ठ सम्बंध था इसके जब हम कुछ उदाहरण पढ़ते हैं तो लगता है यह किसी इंसान की नहीं, बल्कि जगत के रचयिता का दर्शन है। देश की बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान जिन छोटे-छोटे वाक्यों में स्वामी जी ने किया वह अद्भुत है। एक ऐसा ही प्रसंग उनके शिष्य मोहम्मदानंद का है।
स्वामी विवेकानंद मई 1898 में अपने विदेशी शिष्यों को साथ लेकर भारत दर्शन यात्रा पर निकले थे। उनके साथ उनके चार भारतीय शिष्य सदानंद, सूर्यानंद, स्वरूपानंद और निरंजनानंद भी थे। 13 मई, 1898 को यह यात्री दल नैनीताल पहुंचा, जहां खेतड़ी महाराज अजीत सिंह के साथ रहा। स्वामी जी के दर्शनार्थ वहां कार्यरत स्थानीय तहसीलदार भी आए। संयोग से वे मुस्लिम थे और उनका नाम मोहम्मद था। जब वे पहली बार स्वामी जी से मिले तो उनसे अत्यधिक प्रभावित हुए थे। इसके पश्चात् तो तहसीलदार को जहां अवसर मिलता वे स्वामी जी के दर्शन करने चले जाते थे। उनके साथ न केवल बातचीत करते थे, बल्कि जो भी सवाल मन में उठते थे उनका स्पष्टीकरण भी कर लिया करते थे। उन्हें आश्चर्य तब होता था जब वे उनके प्रश्नों का उत्तर देते हुए हदीस और कुरान को उद्धृत किया करते थे। यहां चार दिन रुकने के बाद दोपहर में यात्री दल अल्मोड़ा के लिए रवाना हुआ। ऊंची पहाडि़यों व नीची घाटियों से होकर चीड़ एवं देवदार के वृक्ष पार करते हुए रात्रि में भी यह दल आगे बढ़ता रहा। हिंसक पशुओं से बचने व मार्ग ढूंढ़ने के लिए उन्होंने मशालें जला रखी थीं। तहसीलदार मोहम्मद भी इस दल के साथ स्वामी जी और उनके साथियों को अल्मोड़ा पहुंचाने के लिए साथ आए थे।
अल्मोड़ा के पास पहुंचते ही तहसीलदार मोहम्मद ने स्वामी जी से विदा लेने की अनुमति मांगी। श्रद्धा से ओत-प्रोत होकर तहसीलदार स्वामी जी से बोले…. स्वामी जी आगे आने वाले काल में यदि कोई भी व्यक्ति आपको अवतार या भगवान की अनुपम कृति कह कर पुकारेगा तो वह पहला व्यक्ति मैं स्वयं कहलाऊंगा। यद्यपि मैं मुसलमान हूं और मेरा मजहब इस्लाम मुझे पूजा करने की आज्ञा नहीं देता, लेकिन मैं आपकी पूजा करने में भी संकोच नहीं करूंगा। स्वामी जी ने उन्हें आशीर्वाद देकर विदा किया और अल्मोड़ा में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़े। इसके पश्चात जब तक तहसीलदार जीवित रहे तब तक वे स्वयं को स्वामी जी का शिष्य मोहम्मदानंद कहकर ही अपने आप का परिचय देते। इसके पश्चात् उन्होंने अपनी ह्यनेम प्लेटह्ण पर इन शब्दों को अंकित करके लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। नाम की उस तख्ती पर लिखा था स्वामी विवेकानंद का एक तुच्छ शिष्य… मोहम्मदानंद।
उपरोक्त घटना यह दर्शाती है कि स्वामी जीअपने आप में पारस पत्थर के समान थे। जो उनके निकट आता था वह ईश्वर की भक्ति से ओत-प्रोत हो जाता था। यह ऐसा आनंद है जो चिरस्थायी भी है और चिरंजीवी भी।
आजादी के बाद भी हिन्दू और मुस्लिम समस्या का समाधान नहीं हुआ है। यह समस्या दीमक की तरह भारत को खाए जा रही है। पिछले 66 वर्षों में हिन्दू-मुस्लिम दंगों ने देश की अस्मिता को तार-तार कर दिया है। सवाल यह है कि क्या इस समस्या का कोई स्थायी हल है? भारत सरकार इस सम्बंध में असंख्य कानून बना चुकी है और अनगिनत आयोग स्थापित कर चुकी है, लेकिन अब तक कोई स्थायी हल सामने नहीं आया है। चूंकि इस समस्या का सम्बंध राष्ट्रीय एकता से है इसलिए इस पर आए दिन कोई न कोई बहस होती रहती है। स्वामी जी के समय में भी यह समस्या थी। तब उनसे पूछा गया कि क्या इस समस्या से छुटकारा सम्भव है? तब स्वामी जी ने इसका जो समाधान बताया है वह हमारी आंखें खोल देने वाला है। यदि भारत सरकार और भारत के हिन्दू-मुस्लिम स्वामी जी की दृष्टि से इसका चिंतन करें तो निश्चित ही इसका समाधान बड़ी सरलता से हो सकता है। इस सम्बंध में उनके एक पत्र को उद्धरित करना अनिवार्य है।
नैनीताल के मोहम्मद सरफराज हुसैन ने स्वामी जी को एक पत्र लिखा था जिसमें यह पूछा था कि इस्लाम और हिन्दुत्व के टकराव को किस प्रकार समाप्त किया जा सकता है? मूलभूत बात तो सरफराज ने यह पूछी है कि उनकी दृष्टि में भारत में हिन्दूृ-मुस्लिम समस्या का समाधान किस प्रकार से हो सकता है? 10 जून, 1898 को अल्मोड़ा से स्वामी जी ने सरफराज हुसैन को इस पत्र का उत्तर प्रेषित किया था। उक्त पत्र को राम कृष्ण मठ नागपुर से प्रकाशित पुस्तक में संकलित किया गया है। यह पुस्तक मराठी में प्रकाशित की गई है जिसका शीर्षक है… ह्यस्वामी विवेकानंदांची पत्रेंह्ण
स्वामी जी ने अपना पत्र प्रिय मित्र के सम्बोधन से प्रारम्भ किया है। अपने देश के प्रति जो प्रेम और जागरूकता सरफराज ने व्यक्त की थी उसके प्रति स्वामी जी ने आनंद व्यक्त किया है। अपने पत्र में स्वामी जी ने लिखा है, वास्तविकता तो यह है कि धर्म और विचार के सम्बंध में अद्वैतवाद ही अंतिम सत्य है। इसी अद्वैतवाद की भूमिका के आधार पर ही हम सभी धर्म एवं सम्प्रदायों की ओर प्रेम की दृष्टि से देख सकते हैं।
इस अद्वैतवाद को तुम वेदांत का तत्वज्ञान कहो अथवा कुछ और कहो, पिछले लम्बे समय से ज्ञान सम्पन्न मानव जाति का यही धर्म रहा है ऐसा मेरा विश्वास है। हिन्दुत्व, हिब्रू एवं अरब जाति से प्राचीन होने के कारण अद्वैत सिद्धांत की खोज का श्रेय इसी को जाता है। किन्तु समस्त मानव जाति को अपने स्वयं की आत्मा के रूप में देखने और समझने वाला अद्वैतवाद हिन्दुओं के बीच कभी विकसित नहीं हुआ। इसलिए मैं निश्चित रूप से यह कह सकता हूं वेदान्त के सिद्धान्त कितने ही सूक्ष्म और सुन्दर हों फिर भी वह जब तक इस्लाम की समता के साथ जोड़ नहीं दिए जाते तब तक वह साधारण मानव के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं होते। जिस स्थान पर वेद नहीं, बाईिबल नहीं और कुरान भी नहीं उस स्थान पर हमें मानव जाति को लेकर जाना है।
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