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जम्मू-कश्मीर/ विशेष प्रतिनिधि
सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार जरूरी
नई दिल्ली के शासकों की अस्पष्ट नीतियों के कारण पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में पाकिस्तान ने अवैध निर्माण तो कर ही लिए हैं, साथ ही उन निर्माण कार्यों के लाभ से भी कश्मीर के लोगों को वंचित किया जा रहा है। इन निर्माण कार्यों में मंगला बांध परियोजना सर्वाधिक चर्चित है। उल्लेखनीय है कि भारत-पाकिस्तान सम्बंधों में सुधार करने के लिए नदी जल बंटवारे की एक संधि 1960 में हुई, क्योंकि कश्मीर पर अपना हक जताने के लिए पाकिस्तान यह तर्क दे रहा था कि पाकिसतान में बहने वाली तीनों बड़ी नदियां- चिनाब, झेलम और सिंधु कश्मीर के रास्ते बहती हैं इसलिए कश्मीर पाकिस्तान के लिए जीवन रेखा का स्थान रखता है। इस तर्क की काट के तौर पर प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के निर्देश पर एक संधि की गई, जिसे सिंधु जल संधि की संज्ञा दी गई। इस संधि के द्वारा चिनाब, सिंधु और झेलम नदी के पानी पर पाकिस्तान का अधिकार माना गया जबकि राबी, सतलुज और ब्यास अर्थात पंजाब से बहने वाली नदियों पर भारत का अधिकार माना गया।
इस सिंधु जल संधि के पश्चात पाकिस्तान ने 1947 से अपने अवैध कब्जे वाले कश्मीर में 1962 में एक बड़े बांध का निर्माण शुरू किया और 1967 में इस बांध का निर्माण पूर्ण हुआ। इसके कारण पाकिस्तान को न केवल सिंचाई के लिए सुविधाएं प्राप्त हुईं बल्कि बड़े पैमाने पर पन-बिजली भी उत्पन्न होने लगी। किन्तु अवैध रूप से कब्जे में रखे गए भारत के इस भू-भाग पर पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से निर्मित किए गए इस बांध के विरुद्ध दिल्ली की सरकार ने आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साध ली। इस चुप्पी का परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान ने उस कश्मीर की जनता के साथ एक विचित्र-सा व्यवहार शुरू कर दिया। मंगला बांध के निर्माण से उत्पन्न होने वाली बिजली के बदले कश्मीर सरकार कोई रायल्टी नहीं दी जाती है। यद्यपि सूबा सरहद में बनाए गए तखेला बांध से उत्पन्न होने वाली बिजली के लिए वहां की प्रांतीय सरकार को 15 पैसे प्रति यूनिट की दर से रायल्टी दी जाती है। एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष उसे 15 अरब रुपए दिए जाते हैं। इस हिसाब से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को कम से कम 25 अरब रुपए वार्षिक बिजली की रायल्टी मिलनी चाहिए, जबकि सिंचाई के लिए लगान की राशि अलग मिलनी चाहिए, जो कुछ मिलाकर अब तक 27 खरब रुपए तक हो सकती है। इससे भी बढ़कर आश्चर्य की बात यह है कि मंगला बांध से उत्पन्न होने वाली बिजली इस राज्य के लोगों को 4.35 रुपए प्रति यूनिट की दर से दी जा रही है, जबकि पाकिस्तान में 2.22 रुपए प्रति यूनिट दी जाती है।
सिंधु जल संधि से भारत, विशेषकर जम्मू के हितों को भी बहुत क्षति पहुंची है। राज्य विधानसभा के भीतर और बाहर इस सिंधु जल संधि का कई बार उल्लेख भी होता है। इससे राज्य को होने वाले नुकसान का केन्द्र सरकार मुआवजा मांगने की बातें भी उड़ाई जाती हैं किन्तु अलगाववादी तो दूर, मुख्यधारा के दल और नेता भी यह मांग नहीं करते कि देश को नुकसान पहुंचाने वाली इस सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार किया जाए, क्योंकि पाकिस्तान ने कश्मीर के एक बड़े भू-भाग का केवल अवैध रूप से अतिक्रमण कर रखा है अपितु वहां की स्थानीय जनता के अधिकारों तथा हितों का भी हनन कर उन्हें पाकिस्तान के हितों के लिए गैरकानूनी तरीके से प्रयोग किया जा रहा है।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के इस भू-भाग को भारत अपने मानचित्र में दर्शाता है, संसद में उसके सदस्य इस भू-भाग की वापसी का संकल्प लेते हैं, जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के लिए 24 सीटें आरक्षित हैं, 1947 में पाकिस्तान के आक्रमण के समय जान बचाकर दूसरे क्षेत्रों में आए कश्मीर के इस भू-भाग के लोगों का अब तक पुनर्वास सिर्फ इसलिए नहीं किया गया है कि जब यह क्षेत्र फिर भारत का अंग बनेगा तो ये लोग वापस अपने घर लौटेंगे। पर जिसे हम अपना मानते और कहते हैं, उस भू-भाग पर पाकिस्तान मनमानी करता है, अपने हितों के लिए निर्माण करता है और हम चुप्पी साधे बैठे हैं। यदि सिंधु जल संधि न हुई होती तो पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर से बहने वाली इन सदानीरा नदियों पर अपना हक न जताता, भारत भी इन नदियों पर बांध का निर्माण कर सकता था। तब पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर में बांध का निर्माण न कर पाता। यानी आज भी पाकिस्तान को जो रोशनी मिल रही है वह भारत से बहने वाली नदियों के कारण मिल रही है। इसलिए सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करना समय की आवश्यकता है, ताकि इस देश और राज्य के हितों की अनदेखी न हो। द
वैश्विक ताकतें कश्मीर को
समस्या बनाए रखना चाहती हैं
-प्रो. काशीनाथ पण्डित
गत 31 दिसम्बर को हिमाचल प्रदेश्ा विश्वविद्यालय के एकीकृत हिमालयी अध्ययन संस्थान की ओर से जम्मू-कश्मीर की समस्या पर एक दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में कश्मीर विश्वविद्यालय के मध्य एश्ािया अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेश्ाक प्रो. काश्ाीनाथ पण्डित ने प्रस्ताविक उद्बोधन भाषण देते हुए कहा कि समस्या को उलझाए रखने में और इसे समस्या बनाए रखने में अनेक विदेश्ाी श्ाक्तियों का हस्ताक्षेप भी है। चीन कश्मीर के मामले में इसलिए रुचि ले रहा है ताकि वह पाकिस्तान के माध्यम से भारत की घेराबन्दी कर सके। अमरीका और अन्य साम्राज्यवादी श्ाक्तियां नहीं चाहतीं कि गिलगित और बालतिस्तान भारत में रहें, क्योंकि इससे भारत की सीमाएं अफ्गानिस्तान और रूस के साथ जा लगेंगी। भारत को कमजोर बनाए रखने के लिए भी ये विदेश्ाी श्ाक्तियां कश्मीर के मामले में पाकिस्तान की पीठ ठोंकती रहती हैं।
विश्वविद्यालय की भीमराव अम्बेडकर पीठ के अध्यक्ष प्रो. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने इस अवसर पर कहा कि 1994 में भारतीय संसद में सर्व सम्मति से पारित प्रस्ताव के अनुसार कश्मीर समस्या का हल पाकिस्तान में गए हिस्से को मुक्त करवाना है। उन्होंने कहा दुर्भाग्य से भारत सरकार कश्मीर के लोगों से संवाद भी “एजेन्टों” के माध्यम से करती है फिर वह एजेन्ट चाहे श्ोख अब्दुल्ला रहे हों या फिर आमिर कासिम। केन्द्र सरकार ने कश्मीर में महाराजा हरिसिंह के स्थान पर अब्दुल्ला घराने को स्थापित करके नई राजश्ााही स्थापित कर दी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ए.डी.एन. बाजपेयी ने कहा कि सरकार को समस्या के समाधान के लिए कश्मीर के लोगों के साथ-साथ जम्मू और लद्दाख के लोगों से भी बातचीत करनी चाहिए। संस्थान के निदेश्ाक प्रो0 एस.पी. बंसल ने बताया कि हिमालय जागृति वर्ष में संस्थान ऐसे अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करेगा।
इससे पूर्व 30 दिसम्बर को पंजाब विश्वविद्यालय के गांधी भवन के हिमाचल रिसर्च इन्स्टीट्यूट की ओर से इसी विषय पर आयोजित गाष्ठी में बोलते हुए प्रो. काश्ाीनाथ पण्डित ने कहा कि यह समस्या संवाद के साथ-साथ बल प्रयोग से ही हल हो सकती है। वह बल चाहे बुध्दि बल हो, ज्ञान बल हो अथवा सैन्य बल हो।द प्रतिनिधि
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