रुद्रपुर में दंगा राजनीतिक साजिश
May 14, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

रुद्रपुर में दंगा राजनीतिक साजिश

by
Oct 8, 2011, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

राज्यों से

दिंनाक: 08 Oct 2011 15:36:26

उत्तराखण्ड/दिनेश

अहिंसा के प्रतीक गांधी जी के जन्मदिवस (2 अक्तूबर) के दिन उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर के जिला केन्द्र रूद्रपुर में असामाजिक तत्वों ने जमकर उत्पात मचाया, हिंसा पर उतारू भीड़ ने पुलिसकर्मियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा, बहुसंख्यक समुदाय के ऊपर पथराव किया, वाहनों को आग के हवाले किया, सरकारी व निजी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया। इतना सब होने के बाद पुलिस ने हवाई फायरिंग कर, कफ्र्यू लगाकर स्थिति को काबू में किया। इस हंगामे में चार लोगों की मौत हुई और दर्जनों लोग घायल हो गए।

विवाद की शुरूआत 1 अक्तूबर को भदईपुरा बस्ती के एक मंदिर में कुरान के रखे जाने की कथित खबर के बाद हुई। असामाजिक तत्वों द्वारा किए गए इस कृत्य की चौतरफा निंदा हुई। कांग्रेस के स्थानीय विधायक तिलकराज बेहड़ अल्पसंख्यक समुदाय के साथ प्रशासनिक अधिकारियों से मिले और दोषी लोगों की गिरफ्तारी के लिए चौबीस घंटे का समय दिया। प्रशासन ने इस तय सीमा को हल्के ढंग से लिया जबकि असामाजिक तत्व अपने मंसूबे पूरा करने की योजना पहले ही बना चुके थे। तय सीमा बीतते ही अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों ने भारी भीड़ के साथ सुबह होते ही पुलिस कोतवाली के पास स्थित इंदिरा चौक पर पत्थरबाजी, तोड़फोड़ शुरू कर दी। कोतवाली (रुद्रपुर) को आग के अवाले करने की कोशिश की गई। वहां जो भी थोड़े-बहुत पुलिसकर्मी थे, वे जान बचाकर इधर-उधर भागने लगे। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गणेश सिंह मर्तोलिया जब तक मौके पर पहुंचते, हिंसा बेकाबू हो चुकी थी। जिलाधिकारी पी.बी.आर.पुरुषोत्तम घटनास्थल से हटकर दूर चले गए, जिससे दंगाईयों का मनोबल और बढ़ गया। दूसरी तरफ बहुसंख्यक लोग भी अपनी सम्पत्ति की लूटपाट होती देख भारी संख्या में एकत्र हो गए। रम्पुरा क्षेत्र के लोगों ने एकत्रित होकर सबसे पहले कोतवाली को बचाया। फिर दोनों समुदायों के बीच सीधे-सीधे पथराव, आगजनी और फायरिंग की गूंज दिल्ली-नैनीताल राष्ट्रीय राजमार्ग पर दूर-दूर तक दिखाई देने लगी। 4 घण्टे तक दोनों समुदाय आमने-सामने रहे और पुलिस नदारद रही, यूं कहें कि मैदान छोड़कर भाग गई। बाद में पी.ए.सी. तथा रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों के पहुंचने पर पुलिस अधीक्षक मर्तोलिया ने फिर से मोर्चा संभाला और बेकाबू भीड़ को नियंत्रित करने की शुरूआत की। करीब दो घंटों की मशक्कत के बाद धारा 144 लगाकर स्थिति पर काबू पाया जा सका। तब तक रुद्रपुर शहर की करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति का नुकसान हो चुका था, चार लोग इस हिंसा में मारे जा चुके थे।

इस हिंसा की खबर पूरे इलाके में आग की तरह फैली तो आसपास के शहरों में भी पुलिस हरकत में आयी। हल्द्वानी से अपने समर्थकों के साथ रुद्रपुर आ रहे सपा जिलाध्यक्ष अब्दुल मतीन सिद्दीकी, बसपा नेता रईसुल खान को पुलिस ने रास्ते में रोककर एक विश्रामगृह में बैठा दिया। अगले दिन मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी स्वयं रुद्रपुर पहुंचे जहां उन्होंने स्थिति की समीक्षा की। यहां से देहरादून पहुंचते ही श्री खंडूरी ने उप महानिरीक्षक (डीआईजी), जिलाधिकारी (डीएम) और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) का तबादला कर दिया और घटना की जांच के लिए गढ़वाल मंडल के आयुक्त अजय नांबियाल की नियुक्ति कर दी। साथ ही मृतक के परिवार को एक एक लाख रु. की मुआवजा राशि दिए जाने की भी घोषणा मुख्यमंत्री ने की।

उधमसिंह नगर जिले में हर राजनीतिक दल की पैठ है। समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस में “मुस्लिम वोट बैंक” को लेकर जद्दोजहद होती रहती है। लगता है कि इस बार राजनीतिक दल दंगे की आग में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में सफल हो गए।

इस पूरे घटनाक्रम के पीछे एक गहरी साजिश उन राजनीतिक दलों की दिखाई दे रही है जो यहां अपना जनाधार खो रहे थे। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में 4-5 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस कारण अपने स्वार्थ के लिए कुछ राजनेता विभिन्न समुदायों को आपस में लड़ाने में लगे हुए हैं। इससे पहले ऐसी ही एक वारदात पीलीभीत-उत्तराखंड सीमा क्षेत्र के एक गुरुद्वारे में गुरू ग्रंथ साहिब जलाने की घटना से हुई थी। तब भी एक सप्ताह तक पूरे तराई क्षेत्र में तनाव रहा। हालांकि किसी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं हुई पर लोगों में भय व्याप्त रहा। इसके कुछ ही दिन बाद एक शनि मंदिर में कुरान रखे जाने और फिर उसे अपवित्र किए जाने की अफवाह से यह साफ है कि कुछ असामाजिक तत्व इस शांतिप्रिय पहाड़ी प्रदेश को अशांत करना चाहते हैं। अब तक उत्तराखंड में साम्प्रदायिक दंगों का कलंक नहीं लगा था, रुद्रपुर से इसकी शुरूआत हो गई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उधमसिंह नगर की पुलिस का खुफिया तंत्र एकदम नाकारा साबित हुआ। कोतवाली के पास दंगे की तैयारी इतने बड़े स्तर पर की गई थी, पर स्थानीय सूचना तंत्र इससे बेखबर रहा। ऐसी ही एक वारदात नैनीताल जिले की कालाढूंगी तहसील में भी हुई, भीड़ ने पूरी तैयारी के साथ थाना फूंक दिया, एक पुलिसकर्मी को जिंदा जला दिया, पर खुफिया तंत्र बेखबर रहा। दंगाइयों से निपटने के लिए पुलिस के प्रशिक्षण में भी कमी देखी गई। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा निर्णय लेने में देरी तथा जिलाधिकारी का मौके पर से मैदान छोड़ देने से भी दंगाइयों के हौसले बुलंद हुए।

एक बात और, उत्तराखंड में चुनाव नजदीक हैं। मैदानी इलाकों, खासतौर पर उधमसिंह नगर जिले में हर राजनीतिक दल की पैठ है। भाजपा, कांग्रेस के अलावा अब समाजवादी पार्टी और बसपा यहां अपना जनाधार तलाशने में जुटी है। समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस में “मुस्लिम वोट बैंक” को लेकर जद्दोजहद होती रहती है। लगता है कि इस बार राजनीतिक दल दंगे की आग में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक ने में सफल हो गए। 

राजस्थान/विवेकानन्द शर्मा

गोपालगढ़ के दंगे का सच

जिहाद के नारे से भड़का आक्रोश

पिछले महीने भरतपुर जिले के गोपालगढ़ में हुए साम्प्रदायिक दंगे के बाद हालात अभी भी चिंताजनक बने हुए हैं। गोपालगढ़ तथा आसपास के क्षेत्र से अनेक हिन्दू परिवार पलायन कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि 14 सितम्बर को इस क्षेत्र में जो आग लगी थी, उसकी राख के नीचे शोले अभी भी धधक रहे हैं। कुल मिलाकर यह प्रतीत हो रहा है कि जिस प्रकार कश्मीर में आतंकवाद के शुरूआती दिनों में कश्मीरी हिन्दुओं का वहां से पलायन हुआ और आज वह सम्पूर्ण क्षेत्र अलगाववाद की आग में जल रहा है, उसी प्रकार आने वाले दिनों में राजस्थान के लिए मेवात क्षेत्र बड़ा सिरदर्द बनने वाला है। उल्लेखनीय है कि गोपालगढ़ कस्बे में 13 सितम्बर की सायंकाल छुटपुट तनाव के बाद वहां की मस्जिद के मौलवी की ओर से जो अफवाह फैलाई गई, साथ ही जिहाद की घोषणा की गई, उसके कारण सारा माहौल गरमा गया।

इस पूरे फसाद की जड़ में कस्बे का वह पोखर (तालाब) है जिसे लगभग 42 वर्ष पूर्व एक मुस्लिम पटवारी ने कब्रिस्तान के रूप में दर्ज कर दिया था। लगभग 42 वर्ष पूर्व राजस्व रिकार्ड में की गई इस गौरकानुनी लिखा-पढ़ी के कारण ही कस्बे में तनाव का माहौल बना। मई, 2011 में कस्बे में लोगों को जानकारी हुई कि इस पोखर की पाल (किनारे) को पाटकर मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा समतल किया जा रहा है। इस पर वहां के ग्रामीणों ने एतराज जताया। बात बढ़ते-बढ़ते हिन्दू एवं मुस्लिम समाज के नवयुवकों में प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई। इस कारण दोनों समाज के युवकों में मारपीट भी हुई। इस मारपीट में वहां के मौलवी के बेटे भी शामिल थे। इस मारपीट के पश्चात 13 सितम्बर को सायंकाल से ही क्षेत्र में अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। मुस्लिम समाज ने आसपास के पूरे क्षेत्र में प्रचारित कर दिया कि गोपालगढ़ के मौलवी पर जानलेवा हमला किया गया, मौलवी के हाथ-पैर काट दिये गये तथा कुरान को जला दिया गया। इस अफवाह के बाद निकटवर्ती राज्य हरियाणा तथा आसपास के गांवों से मुस्लिम समाज के हजारों लोग हथियारों के साथ गोपालगढ़ की ओर कूच करने लगे।

14 सितम्बर की सुबह से ही मस्जिद से भड़काऊ भाषणों की आवाज आने लगी। हजारों हथियारबंद मुस्लिमों के एकत्र होने से क्षेत्र में भय व्याप्त हो गया। मस्जिद से मौलवी ने ऐलान किया कि जिहाद छिड़ गया है। इस ऐलान के बाद मस्जिद से फायरिंग शुरू हो गई। वहीं दूसरी ओर इस मामले में जो शांति के प्रयास किये जा रहे थे, उन पर पानी फिर गया। समझाने की नीयत से जो पुलिस दल अपने हथियार थाने में ही छोड़कर मस्जिद की ओर बढ़ रहा था, अपनी जान पर बनती देख उल्टे पैर दौड़कर वापस लौटा। उनको दौड़ाते हुए हमलावर थाने तक आ पहुंचे। तब पुलिस ने अपनी जान बचाने के लिए हथियार उठाकर मोर्चा संभाला। आमने-सामने हुई पुलिस और दंगाइयों की सीधी गोलीबारी में 9 दंगाई मारे गए।

राज्य सरकार को चाहिए कि शीघ्रातिशीघ्र पूरे क्षेत्र में अवैध हथियारों को जब्त करने के लिए कारगर अभियान चलाए, साथ ही मेवात क्षेत्र को एक और कश्मीर बनने से रोकने के लिए विचार किया जाना आवश्यक है।

इस पूरे घटनाक्रम के बाद जो सवाल खड़े होते हैं वे ये हैं कि मस्जिद से जो गोलीबारी हुई, उसकी रेंज लगभग 800 मीटर तक थी। इससे आशंका व्यक्त की जा रही है कि उपद्रवियों के पास एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियार भी थे। साथ ही प्रशासन ने पूरे प्रकरण की जानकारी होने के बाद भी जिस प्रकार की उदासीनता बरती, वह संदेहास्पद है। मस्जिद से माइक का दुरुपयोग किया गया तथा जिहाद का ऐलान किया गया, इस कारण माहौल अधिक तनावपूर्ण हो गया। ऐसे में भविष्य में यदि परिस्थितियों को बिगड़ने से रोकना है तो सरकार को कुछ कड़े कदम उठाने होंगे। पूरा मेवात क्षेत्र आतंक का गढ़ बना हुआ है। शाम होते ही दूसरे समुदाय के लोगों का अकेले निकलना सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। जब स्थिति तनावपूर्ण होती है तो भारी मात्रा में हथियारों के साथ उपद्रवियों का एकत्रित होना पूरे क्षेत्र की शांति के लिए अच्छा संकेत नहीं है। राज्य सरकार को चाहिए कि शीघ्रातिशीघ्र पूरे क्षेत्र में अवैध हथियारों को जब्त करने के लिए कारगर अभियान चलाए, साथ ही मेवात क्षेत्र को एक और कश्मीर बनने से रोकने के लिए विचार किया जाना आवश्यक है। 

उत्तर प्रदेश/ शशि सिंह

चुनाव का “मायावी जाल”

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती अब सामाजिक और भौगोलिक बंटवारे को नयी धार देकर फिर से सत्ता में आने की जुगत लगा रही हैं। अपनी इसी रणनीति के तहत उन्होंने पहले मुस्लिमों को, उसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली जाटों को आरक्षण देने के लिए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को पत्र लिखा। उत्तर प्रदेश के तीन और हिस्से (पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वांचल और बुंदेलखंड) किए जाने की भी वकालत की। साथ ही आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है। मायावती यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने स्थानीय भावनाओं को हवा देते हुए तीन नए जिलों की घोषणा कर उनका नामकरण भी कर दिया। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव अगले साल मार्च-अप्रैल में प्रस्तावित हैं। साढ़े चार साल सत्ता में रहते हुए मायावती ने एक तरफ राज्य के खजाने का दोहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो दूसरी ओर प्रदेश में माफियाराज को शह देकर आम जनता के मन में भय का वातावरण पैदा होने दिया। प्रदेश के हालात मुलायम सिंह के शासनकाल से भी बदतर हो गए हैं, जबकि मायावती ने मुलायम के “गुंडाराज” के खिलाफ जनता से वोट मांगा था। पर वह अपने वादों पर खरी नहीं उतरीं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसी केन्द्र की महत्वाकांक्षी योजना में बड़ा घोटाला हुआ और राजधानी लखनऊ में परिवार कल्याण विभाग के दो मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) और एक उपमुख्य चिकित्सा अधिकारी (डिप्टी सीएओ) को जान से हाथ धोना पड़ा। एक इंजीनियर को वसूली न देने पर बसपा विधायक ने पीट-पीटकर मार डाला।

ऐसे में अब नये जनादेश की तैयारी में जुटी मायावती ने नया एजेंडा तैयार किया है। पिछली बार मुलायम सिंह का गुंडाराज मुख्य चुनावी मुद्दा था तो अब राज्य का बंटवारा और स्थानीय भावनाओं को केन्द्र में रखकर चुनावी ताना-बाना बुना जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-बहुल इलाकों में राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह का प्रभाव माना जाता है। वहीं जातिवाद का जहर बोने वाले मुलायम सिंह आगरा मण्डल को अपना गढ़ मानते हैं। इन इलाकों में मुसलमान भी बहुसंख्या में हैं। इसलिए पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति को केन्द्रित करते हुए मुख्यमंत्री ने अलग राज्य का नारा दिया है। हालांकि अपने पूरे शासनकाल में वह इस निमित्त एक प्रस्ताव तक विधानसभा में नहीं लायीं। इसलिए उनके राज्य के बंटवारे की घोषणा पर भाजपा, सपा के साथ कांग्रेस ने हमला बोलना शुरू कर दिया है। राज्य भाजपा के अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही कहते हैं कि अब राज्य के बंटवारे की बात केवल चुनावी प्रपंच है। अगर मुख्यमंत्री गंभीर थीं तो पहले ही इस प्रस्ताव को विधानसभा में क्यों नहीं प्रस्तुत किया गया? रालोद के अध्यक्ष अजित सिंह भी कहते हैं कि इस संदर्भ में विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर केन्द्र को क्यों नहीं भेजा?

मायावती ने साढ़े चार के कार्यकाल में कोई प्रभावी कार्य नहीं किया

राज्य में माफिया, गुंडों और भ्रष्टाचारियों का बोलबाला

महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं में वृद्धि

अब राज्य के बंटवारे और नए जिलों के निर्माण से बरगलाने की कोशिश

खस्ताहाल हैं पुराने बने जिले

मुस्लिमों के साथ जाटों को आरक्षण का लालच और छोटे राज्यों की वकालत चुनावी रणनीति का हिस्सा

मायावती ने वोट राजनीति के तहत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तीन नए जिलों की घोषणा कर दी। अपने अब तक के सभी कार्यकालों में वह 18 नए जिले बना चुकी हैं पर इन सभी जिलों में अभी तक आधारभूत सुविधाएं तक नहीं जुटाई जा सकीं। अधिकतर जिलों में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के कार्यालय और आवास अब तक किराए के भवनों में चल रहे हैं। नए जिलों की घोषणा भी माया की चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। उन्होंने हाल ही में अपने राज्यव्यापी दौरे के पहले ही दिन मुजफ्फरनगर की शामली तहसील को जिला घोषित करते हुए इसका नामकरण प्रबुद्धनगर किया। इसमें शामली और कैराना तहसीलों को शामिल किया। उन्होंने गाजियाबाद जिले की हापुड़ तहसील को मुख्यालय बनाते हुए उसका नाम पंचशीलनगर रखा। इसमें हापुड़, गढ़मुक्तेश्वर और धौलाना को शामिल किया गया है। इसी के साथ मुख्यमंत्री ने मुरादाबाद की संभल तहसील को मुख्यालय बनाते हुए उसका नाम भीमनगर रख दिया। इसमें संभल, चंदौसी और गुन्नौर तहसीलों को शामिल किया गया है। हालांकि संभल को जिला घोषित करने के बाद वहां भारी आंदोलन शुरू हो गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें मुरादाबाद का हिस्सा बने रहने में ज्यादा लाभ है। अलग जिला बनने से उनके आर्थिक और व्यापारिक लाभ प्रभावित होंगे।

मायावती ने अपने चार बार के मुख्यमंत्रित्वकाल में 18 नए जिलों का गठन इस तर्क के साथ किया कि प्रशासन की छोटी इकाई होने के कारण जनता को सहूलियत होगी। कहने में तो यह बात ठीक लगती है लेकिन व्यवहार में ऐसा हो नहीं पाया। जिन जिलों का गठन किया गया उनमें कई तो डेढ़ दशक पहले बनाए गए थे, लेकिन आज तक उन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया है। केवल पुलिस प्रमुख और जिलाधिकारी तैनात कर देने से जिले की आवश्यकता तो पूरी नहीं होती। मायावती द्वारा बनाए गए करीब-करीब सभी जिलों में बिजली, पानी, सड़क जैसी आधारभूत आवश्यकताओं के लिए लोग तरस रहे हैं। ऐसे में तीन और जिलों के बन जाने के बाद हालात सुधरेंगे, ऐसा नहीं लगता। हां, यह स्थानीय जनभावनाओं को भुनाने का एक राजनीतिक प्रयास जरूर लगता है।

मायावती ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों और अजित सिंह के प्रभाव वाले जाट-बहुल इलाकों को खास ध्यान में रखा। यूं तो जाट समुदाय प्रदेश में छह-सात प्रतिशत है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनकी जनसंख्या 17 प्रतिशत है। उनकी संख्या मेरठ और रुहेलखंड इलाके में भी काफी है। 55 विधानसभा तथा 10 लोकसभा सीटों पर वे जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। इनकी संख्या मथुरा में 40 तथा बागपत में 30 प्रतिशत है। बागपत लोकसभा सीट से  खुद अजित सिंह तथा मथुरा से उनके पुत्र जयंत सिंह सांसद हैं। इसी प्रकार सहारनपुर, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, ज्योतिबा फुले नगर, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, बदायूं, मेरठ, बुलंदशहर तथा बागपत में मुसलमान बहुसंख्या में हैं। इसीलिए मुख्यमंत्री मायावती ने चुनाव नजदीक देख मुसलमानों तथा जाटों के लिए आरक्षण संबंधी “मायावी जाल” फेंका है।

केरल/ प्रदीप कृष्णन

यह है कम्युनिस्टों की असलियत

अपने एक बुजुर्ग की
सलाह तक नहीं सुन सकते!

कम्युनिस्ट या कहें कि वामपंथी अपने वैचारिक विरोधियों से किस हद तक शत्रुता करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। पश्चिम बंगाल और केरल में ऐसे सैकड़ों-हजारों उदाहरण मिल जाएंगे जब वामपंथियों ने अपने वैचारिक विरोधियों पर हिंसक हमले किए, उनकी हत्या की। हिंसक हमले करने में वाममोर्चे का प्रमुख धड़ा कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (माक्र्सवादी) यानी माकपा सबसे आगे है। पर ऐसा भी नहीं कि माकपा या कम्युनिस्ट अपने वैचारिक विरोधियों के विरोध को ही नहीं सहन कर पाते, बल्कि कम्युनिस्ट तो अपने भीतर से उठने वाली सुधार की बातों या किसी वरिष्ठ वामपंथी द्वारा आत्मविश्लेषण के सुझावों को भी सहन नहीं कर पाते, उसका बहिष्कार कर देते हैं, इस हद तक उतर आते हैं कि उसकी जान पर बन आती है। ऐसे में वे न तो उसकी उम्र देखते हैं, न उसके द्वारा पार्टी के लिए किए गए कार्य का महत्व याद रखते हैं। इसका ताजा उदाहरण है केरल में माकपाईयों द्वारा अपने वयोवृद्ध नेता बर्लिन कुंहंनाथन नैयर के साथ किया जा रहा व्यवहार। कथित रूप से उदारवादी माने जाने वाले केरल के माकपाईयों ने 86 वर्षीय बर्लिन को एक प्रकार से अपने जाति-समूह से बहिष्कृत कर रखा है। वामपंथियों की नजर में विद्रोही वे हैं जिनसे दूर रहना चाहिए, क्योंकि वे “कम्युनिस्टों का स्वर्ग” बनने की मार्ग की सबसे बड़ी बाधा हैं।

उल्लेखनीय है कि केरल की माकपा ने अपने ही वयोवृद्ध नेता बर्लिन का अघोषित रूप से बहिष्कार कर रखा है, जिन्हें सन् 2005 में ही “पार्टी को सलाह देने” के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। पर बर्लिन अब एक बार फिर चर्चा में इसलिए हैं क्योंकि पार्टी के ही एक दूसरे वयोवृद्ध नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन ने उनके घर जाकर उनसे मुलाकात कर ली है। बढ़ती आयु के कारण होने वाली शारीरिक कठिनाइयों और अनेक रोगों से पीड़ित 86 वर्षीय बर्लिन से उनके समकक्ष एक वरिष्ठ नेता अच्युतानंदन की शिष्टाचार भेंट भी माकपाइयों को सहन नहीं हो पा रही है। इसीलिए केरल माकपा में अच्युतानंदन का विरोधी खेमा इस बात को तूल दे रहा है कि बर्लिन से मुलाकात कर उन्होंने पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन किया है। सन् 2005 के बाद से यह तीसरा अवसर है जब माकपाईयों ने बर्लिन को अपनी जाति-समाज से बेदखल कर दिया है। 2005 में उन्होंने पार्टी संगठन में नई सोच की बकालत की थी तो उसके बाद अपनी आत्मकथा “पॉलीचेजहुथू” में भी उन्होंने पार्टी की कुछ नीतियों की आलोचना की थी। अब अच्युतानंदन द्वारा उनसे की गई शिष्टाचार भेंट के विरोध को देखते हुए उन्हें कहना पड़ा, “यह देखकर बहुत पीड़ा हो रही है कि कम्युनिस्ट पार्टी काल-वाह्य हो चुके सामंतवादी तरीके अपना रही है।” हालांकि माकपाई नेताओं का कहना है कि बर्लिन 2005 से ही पार्टी से अलग हो चुके हैं और उनके बहिष्कार की बात बेसिर-पैर की व मीडिया की देन है। जबकि सचाई यह है कि बर्लिन जिस कन्नूर जिले में रहते हैं वह कम्युनिस्टों का गढ़ कहा जाता है, जहां का हर गांव “पार्टी गांव” माना जाता है, पर वहां रहने वाला कोई भी पार्टी कार्यकर्ता शिष्टाचारवश भी अपने एक वृद्ध राजनेता से मिलने नहीं जा सकता। यहां तक कि पार्टी के वरिष्ठतम राजनेता व पूर्व मुख्यमंत्री अपने सहयोगी रहे बर्लिन से उनके स्वास्थ्य संबंधी कारणों से मिलने तो गए, पर उनके यहां खाना नहीं खाया, “क्योंकि पार्टी ने इसकी मनाही कर रखी है”, ऐसा उन्होंने स्वयं बताया।

यह है कम्युनिस्टों की असलियत, जहां पार्टी कार्यकर्ताओं से भरे पड़े एक जिले में एक बुजुर्ग अपने ही कार्यकर्ताओं से डरा-सहमा-सा
जी रहा है।

पार्टी के भीतर हुक्का-पानी बंद किए जाने से आहत वयोवृद्ध माकपाई बर्लिन ने अच्युतानंदन के उनसे हालचाल पूछने आने पर पार्टी में हो रहे विरोध के लिए नव-उदारवादी कहे जाने वाले नेता पिनरई विजयन को आड़े हाथों लिया। यहां तक कि उन्होंने राज्य इकाई के सचिव विजयन को पूंजीवाद और साम्राज्यवाद का “दत्तक पुत्र” तक कह डाला। यह भी कहा कि अगले वर्ष अप्रैल में होने वाली पार्टी की 20वीं कांग्रेस में बदलाव के लिए नए संघर्ष की शुरुआत होगी। बर्लिन के इस सार्वजनिक वक्तव्य से भड़के पार्टी नेतृत्व ने अच्युतानंदन से इस विद्रोही नेता की सार्वजनिक तौर पर निंदा करने को कहा, जैसा कि उन्होंने किया भी। हालांकि बर्लिन अच्युतानंदन द्वारा उनसे मिलने के बाद सार्वजनिक तौर पर की गई निंदा से जरा-भी आहत नहीं हुए, क्योंकि वे जानते हैं कि अच्युतानंदन को यदि पार्टी में रहना है तो उन्हें निर्देशों का पालन करना ही होगा।

अब स्थिति यह हो गई है कि एक 86 वर्षीय अनेक रोगों से पीड़ित वृद्ध की जान-माल की रक्षा के लिए राज्य सरकार को पुलिस बल तैनात करना पड़ा है, क्योंकि उन्हें अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से ही खतरा है। बर्लिन ने पुलिस को बताया था कि उन्हें पिछले कुछ हफ्तों से रात-दिन धमकी भरे फोन आते हैं। धमकी देने वाले कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं की भाषा इतनी अभद्र होती है कि वे उसे सार्वजनिक रूप से दोहरा भी नहीं सकते। “मैं 86 साल का हूं, क्या मुझे जीने का अधिकार नहीं? क्या मुझे किसी पार्टी की निंदा करने का मौलिक अधिकार नहीं? माकपा मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है?” वयोवृद्ध माकपाई नेता ने पूछा। इस बीच मुख्यमंत्री ओमेन चांडी द्वारा कन्नूर के पुलिस अधीक्षक को दिए गए निर्देश के बाद बर्लिन के घर पर सुरक्षा चाक-चौबंद कर दी गई है, क्यांकि खुफिया सूत्रों ने बर्लिन पर हमला होने की आशंका जताई थी। यह है कम्युनिस्टों की असलियत, जहां पार्टी कार्यकर्ताओं से भरे पड़े एक जिले में एक बुजुर्ग अपने ही कार्यकर्ताओं से डरा-सहमा-सा जी रहा है।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

भोपाल लव जिहाद : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम पहुंची भोपाल, 2 दिन करेगी जांच, पीड़िताओं से अपील

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में छंटनी

माइक्रोसॉफ्ट में छंटनी, 6000 कर्मचारी होंगे प्रभावित, नौकरी का संकट, क्या AI बना वजह

सबक लें, ’डंप’ से बचें

Israel Hamas War Benjamin Netanyahu

नेतन्याहू का ऐलान: जब तक हमास का अंत नहीं होता, गाजा में युद्ध नहीं रोकेगा इजरायल

पाकिस्तान उच्चायोग का एक अधिकारी भारत से निष्कासित, ‘पर्सोना नॉन ग्राटा’ घोषित, भारतीय सेना की जानकारी लीक करने का आरोप

मप्र-महाराष्‍ट्र सरकार की पहल : देश को मिलेगा 5 ज्योतिर्लिंगों का सर्किट, श्रद्धालु एक साथ कर पाएंगे सभी जगह दर्शन

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

भोपाल लव जिहाद : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम पहुंची भोपाल, 2 दिन करेगी जांच, पीड़िताओं से अपील

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में छंटनी

माइक्रोसॉफ्ट में छंटनी, 6000 कर्मचारी होंगे प्रभावित, नौकरी का संकट, क्या AI बना वजह

सबक लें, ’डंप’ से बचें

Israel Hamas War Benjamin Netanyahu

नेतन्याहू का ऐलान: जब तक हमास का अंत नहीं होता, गाजा में युद्ध नहीं रोकेगा इजरायल

पाकिस्तान उच्चायोग का एक अधिकारी भारत से निष्कासित, ‘पर्सोना नॉन ग्राटा’ घोषित, भारतीय सेना की जानकारी लीक करने का आरोप

मप्र-महाराष्‍ट्र सरकार की पहल : देश को मिलेगा 5 ज्योतिर्लिंगों का सर्किट, श्रद्धालु एक साथ कर पाएंगे सभी जगह दर्शन

भाजपा

असम पंचायत चुनाव में भाजपा की सुनामी में बहे विपक्षी दल

Muslim Women forced By Maulana to give tripple talaq

उत्तराखंड : मुस्लिम महिलाओं को हज कमेटी में पहली बार मिला प्रतिनिधित्त्व, सीएम ने बताया- महिला सशक्तिकरण का कदम

वाराणसी में संदिग्ध रोहिंग्या : बांग्लादेशियों सत्यापन के लिए बंगाल जाएंगी जांच टीमें

राहुल गांधी

भगवान राम पर विवादित टिप्पणी, राहुल गांधी के खिलाफ MP–MLA कोर्ट में परिवाद दाखिल

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies