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इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हमारे समाज में आज भी शारीरिक विकलांगता को अभिशाप समझा जाता है। इसी मानसिकता के चलते केवल सार्वजनिक जीवन में ही नहीं बल्कि घर-परिवार में भी विकलांग व्यक्तियों की उपेक्षा की जाती है। यहां तक कि कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में तो विकलांगता को पूर्वजन्म के कर्मों का फल मानकर व्यक्ति को तिरस्कृत किया जाता है। इसके बावजूद पुरातन काल से लेकर वर्तमान समय तक अनेक ऐसी विभूतियां हुर्इं जिन्होंने बुलंद हौंसले, मजबूत मन और पक्के इरादे से शारीरिक अक्षमता का अतिक्रमण कर अद्भुत उपलब्धियां हासिल कीं। इतिहास ऐसे अनेक विलक्षण उदारणों से भरा पड़ा है। “कमजोर तन मजबूत मन” में ऐसी ही कुछ विकलांग विभूतियों के प्रेरक जीवन को संकलित किया गया है। पुस्तक के लेखक विनोद कुमार मिश्र ने बचपन में ही पोलियो से पीड़ित होने के बाद भी न सिर्फ इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर प्रतिष्ठित नौकरी प्राप्त की बल्कि विज्ञान और तकनीकि विषय से संबंधित अनेक विषयों पर बहुत-सी पुस्तकें भी लिखी हैं।पुस्तक में अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित बहुत से विकलांग व्यक्तियों की असाधारण उपलब्धियों का वर्णन किया गया है। इसके साथ ही उनके जीवन के ऐसे रोचक प्रसंगों की चर्चा की गई है। जिनसे प्रेरित होकर उनका कायाकल्प हो गया। “विश्व के विकलांग वैज्ञानिक” अध्याय के अन्तर्गत प्रसिद्ध अंग्रेज गणितज्ञ निकोलस सैंडर्सन, ब्रोल लिपि के आविष्कारक ग्राहम बेल, दुनिया को 1300 से अधिक अविष्कार प्रदान करने वाले थॉमस एडीसन, ब्राहृाण्ड और खगोल शास्त्र के अनेक रहस्यों से पर्दा उठाने वाले स्टीफन हाकिंग्स जैसे बेमिसाल वैज्ञानिकों के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है। इसी प्रकार “विकलांग साहित्यकारों का योगदान” शीर्षक अध्याय में दीर्घतमा, सूरदास, जायसी, निकोलाई आस्त्रोवस्की, मलयालम कवि वल्लतोल और उड़िया लेखक भीमा भोई जैसे अप्रतिम रचनाकारों के साहित्यिक अवदान को रेखांकित किया गया है। इसी क्रम में होमर मरिया, वान पैराडी, बीथोवन, कृष्णचंद डे और रवींद्र जैन जैसे संगीतकारों द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों को भी पुस्तक में संकलित किया गया है। इसी तरह विश्वविख्यात योद्धाओं, राजनीतिज्ञों और खिलाड़ियों के विषय में भी संक्षिप्त जानकारी दी गई है। इसमें समाहित “विकलांग समाजसेवी” शीर्षक अध्याय से समीक्ष्य कृति और भी महत्वपूर्ण बन पड़ी है। वह इसलिए क्योंकि इसमें ऐसे व्यक्तियों के बारे में बताया गया है जो स्वयं शारीरिक रूप से कमजोर थे फिर भी दूसरों की सहायता के लिए आगे आए। इसमें क्लूथा मेकेंजी, बाबा आम्टे, मेरी वर्गीस और मेजर एचपीएस अहलूवालिया जैसे कुछ समाज सेवकों के बारे में बताया गया है। द विभूश्रीपुस्तक का नाम – कमजोर तन मजबूत मन लेखक – विनोक कुमार मिश्र प्रकाशक – किताबघर प्रकाशन 24, अंसारी रोड़ दरियांगंज, दिल्ली मूल्य-80 रु. पृष्ठ-8026
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