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मा.गो. वैद्यमा.गो. वैद्यराजस्थान के संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह में प्रशिक्षणार्थियों का मार्गदर्शन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने कवि भर्तृहरि की एक उक्ति “वाराङ्गनेव नृपनीतिरनेक रूपा” का उल्लेख किया था। इस पर माकपा नेता डी. राजा और कांग्रेस के प्रवक्ता आनन्द शर्मा की खिसियानी प्रतिक्रिया “आज तक” चैनल पर देखने-सुनने को मिली। इस बात का बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतने बड़े राजनीतिक दलों के उच्च पदस्थ नेतागण इतने उथले हो सकते हैं। वैसे आजकल तो संदर्भ को समझे बिना किसी श्लोक का कोई भाग उठाकर उस पर हायतौबा मचाने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। ऐसे समय में मनुस्मृति की उक्ति “न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति” के इस वाक्य से मनु को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की जाती है। आखिर मनु ने किस संदर्भ में ये शब्द कहे थे? यह वाक्य जिस श्लोक का एक चतुर्थांश मात्र है, उसके पहले तीन भागों में क्या कहा गया है? उसका संदर्भ क्या है? इन सारी बातों पर तनिक भी विचार किए बिना मनु पर टूट पड़ने वाले विद्वानों और विदूषियों के वक्तव्य भी पढ़ने को मिले। मनु ने उस श्लोक में महिलाओं को कर्तव्यों का स्मरण नहीं दिलाया है वरन स्त्री के संदर्भ में पुरुषों के कर्तव्यों की जानकारी दी है। मनु ने कहा है कि “बाल्यकाल में पिता को कन्या की रक्षा करनी चाहिए, यौवन काल में पति को और वृद्धावस्था में पुत्रों को उसकी रक्षा करनी चाहिए। स्त्री को उसकी अपनी जिम्मेदारी पर नहीं छोड़ना चाहिए।” मनुस्मृति के आलोचक कुल्लूकभट ने “रक्षति” का अर्थ रक्षेत यानी रक्षा की जानी चाहिए, यही बताया है। असाधारण योग्यता वाली महिलाओं को यदि अपवाद समझा जाए तो मनु का कहना ठीक ही सिद्ध हुआ है। पर इसका अर्थ यह नहीं है कि मनुस्मृति में कुछ बातें कालबाह्र, या निंदनीय नहीं हैं। ऐसी बातों पर होने वाली आलोचनाओं पर अधिक विवाद नहीं होना चाहिए।राजनीति का स्वरूपइसी संदर्भ में “वारांगनेव नृतनीतिरनेकरूपा” का भी अर्थ लिया जाना चाहिए। यह उक्ति भर्तृहरि की है, जो स्वयं राजा था और उसे नृपनीति यानी राजनीति की समझ तो थी ही। यह श्लोक “नीतिशतकम्” ग्रंथ से उद्धृत है। प्राचीन संस्कृत साहित्य में “नीति” का अर्थ “राजनीति” लगाया गया है। “नीतिवचनामृत,” “कामंदकनीतिसार”, ये ग्रंथ राजनीति पर आधारित हैं। पर “नीतिशतक” में केवल राजनीति न होकर सर्वसाधारण, व्यक्तिगत और सामाजिक नीति व्यवहार पर अधिक ध्यान दिया गया है। जिस श्लोक की इन दिनों चर्चा है वह मूल श्लोक इस प्रकार है-सत्याऽनृता च परुषा प्रियवादिनी च,हिंस्रा दयालुरपि चार्थपरा वदान्या।नित्यव्यया प्रचुरनित्यधनागमा च,वाराङ्गनेव नृपनीतिरनेक रूपा।।” -(नीतिशतक, 46)इस श्लोक का शब्दश: अर्थ है, “कभी सच तो कभी झूठ बोलने वाली, कभी कठोर तो कभी मीठा बोलने वाली, कभी हिंसक तो कभी दयालु होने वाली, कभी धनलोलुप तो कभी उदार, कभी खर्चीली तो कभी सम्पत्ति जमा करने वाली-इस प्रकार की राजनीति-वारांगना यानी वेश्या जैसी अनेक रूप धारण करती है।” अब इसमें भर्तृहरि या सुदर्शन जी का क्या दोष है? यह तो डी. राजा और आनन्द शर्मा ही बताएं कि राजनीति में वे खुद कभी सच और कभी झूठ बोलते हैं या नहीं? ऐसा कहना गलत हो तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से ही पूछ लें कि उन्होंने कपास के लिए 2700रु. प्रति Ïक्वटल का भाव देने की बात कही थी या नहीं? क्या यह झूठ नहीं था? पहले कहा कि बिजली मुफ्त देंगे और फिर वचन से मुकर गए। स्वयं मुख्यमंत्री ने बाद में कहा था कि चुनाव प्रचार के दौरान ऐसी बातें करनी ही पड़ती हैं। पर इसका यह अर्थ भी नहीं लगाया जा सकता कि विलासराव देशमुख और पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे हर समय झूठ ही बोलते रहते हैं, अनेक बार ये सच भी बोलते हैं। राजनीति में कभी कठोर होना पड़ता है तो कभी प्रेमपूर्वक बहलाना भी पड़ता है। राजकाज चलाना हो तो कभी विपरीत परिस्थिति में गोली भी चलानी पड़ती है। आनन्द शर्मा के दल ने क्या कभी गोलियां चलवाई ही नहीं? मुम्बई में “हुतात्मा” और नागपुर में “गोवारी” स्मारक क्यों बने? राजकाज में कभी कर लगाने पड़ते हैं तो कभी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए तिजोरी खोल देनी पड़ती है। राजनीति में ऐसे ही परस्पर विरोधी व्यवहार करने पड़ते हैं।बहुमूल्य उपदेशभर्तृहरि ने वास्तविकता का ही वर्णन किया है। उसका एक बहुमूल्य उपदेश भी है। वह कहता है “हे राजा! जिस भूमि पर तू राज्य करता है उसे तू एक गाय ही समझ। उसका दोहन करना हो तो उसके बछड़े जैसी जनता का पालन-पोषण कर। जनता रूपी यह बछड़ा यदि स्वस्थ रहा तो यह भूमि भी कल्पलता समान सारी चीजें उपलब्ध कराएगी।” भर्तृहरि ने एक गंभीर संकेत भी दिया है, “भ्रष्ट मंत्रियों (अर्थात गलत सलाहकारों) के कारण राज्य का नाश भी होता है।” कितना सच और सटीक है यह। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के प्रधानमंत्री रामचन्द्र काक नामक व्यक्ति थे, जिनकी पत्नी अंग्रेज महिला थी। उन्होंने महाराजा को स्वतंत्र रहने की सलाह दी थी और महाराजा ने उसे स्वीकार कर पाकिस्तान का आक्रमण झेला। काक को बर्खास्त करने के बाद मेहरचंद महाजन प्रधानमंत्री बने और कश्मीर भारत में विलीन हो गया। यह बात भले ही इतिहास की हो फिर भी राज्य का निर्माण कैसे और क्यों हुआ, प्रजातंत्र के शक्ति-स्थान तथा दुर्बलताएं कौन-सी होती हैं, विदेश नीति कैसी होनी चाहिए, मित्र कौन हो सकता है-इन सारी बातों का विचार होना जरूरी है।तलपटगत दिनों आल इंडिया मुस्लिम त्यौहार कमेटी के अध्यक्ष डा. ओसाफ शाहमीरी खुर्रम की अध्यक्षता में हुई मजलिस-ए-शूरा की बैठक में काले हिरण के शिकार के आरोपी नवाब मंसूर अली खां पटौदी की जीवनशैली को मजलिस-ए-शूरा ने गैर इस्लामी घोषित कर दिया। मजलिस-ए-शूरा ने पटौदी को कौम से बाहर करने का ऐलान किया है। अब कोई भी मुसलमान उनसे या उनके परिवार से कोई भी सामाजिक सम्बंध नहीं रखेगा और वक्फ एक्ट का उल्लंघन करने के अपराध में उन्हें शाही औकाफ के मुतावल्ली (ट्रस्टी) के पद से भी बेदखल करवाया जाएगा।NEWS
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